सही था विधानसभा भंग करने का फैसला, दिल्ली सज्जाद लोन को चाहती थी सीएमः सत्यपाल मलिक

By Gursimran Singh  |  First Published Nov 27, 2018, 4:27 PM IST

जम्मू-कश्मीर के गवर्नर बोले, संविधान उन्हें यह अधिकार देता है कि वह बिना किसी की मंजूरी लिए विधानसभा को भंग करने का फैसला ले सकें। 

जम्मू-कश्मीर के राज्यपाल सत्यपाल मलिक के एक खुलासे से सियासी बवाल खड़ा हो गया है। उन्होंने कहा है कि विधानसभा भंग करने का फैसला उन्होंने खुद लिया था। इसमें दिल्ली की राय शामिल नहीं थी। अगर राज्य में विधानसभा की स्थिति को लेकर दिल्ली की राय सुनी गई होती तो पीपुल्स कांफ्रेंस के प्रमुख सज्जाद लोन राज्य के नए मुख्यमंत्री बन गए होते। 

नई दिल्ली में एक यूनिवर्सिटी के कार्यक्रम में हिस्सा लेते हुए मलिक ने कहा कि जम्मू-कश्मीर का संविधान उन्हें यह अधिकार देता है कि वह बिना किसी की मंजूरी लिए विधानसभा को भंग करने का फैसला ले सकें। 

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पीपुल डेमोक्रेटिक पार्टी की प्रमुख महबूबा मुफ्ती पर हमला बोलते हुए मलिक ने कहा कि वह अब यह कह रही हैं कि राज भवन में उस दिन कोई भी फैक्स रिसीव करने के लिए उपलब्ध नहीं था। जबकि श्रीनगर से जम्मू के लिए कई उड़ानें आती हैं। वह चाहतीं तो खुद आ सकती थीं।  उन्होंने कहा, 'पीडीपी के जम्मू में कुछ ही सदस्य हैं। कांग्रेस के प्रतिनिधि जम्मू में ज्यादा हैं। राज्य में सरकार बनाने का दावा करने के लिए वे राजभवन आ सकते थे। मैं तो रात दो बजे तक भी फोन पर उपलब्ध रहता हूं। मेरे दरवाजे हर समय सबके लिए खुले हैं।'

उन्होंने यह भी कहा कि मैं कोई चपरासी नहीं हूं। ईद के दिन ऑफिस में कोई नहीं था। महबूबा मुफ्ती क्या चाहती हैं कि राज्यपाल फैक्स मशीन के पास बैठे रहते और उनके फैक्स का इंतजार करे। मलिक ने कहा, 'मैं समझता हूं कि यह अज्ञानता है। इसे देखना ही नहीं चाहिए। उसी दिन उमर अब्दुल्ला और महूबबा मुफ्ती दोनों कह रहे थे कि हमारी जीत हो गई। हम चाहते थे असेंबली भंग हो जाए। ऐसा हो गया, हम जीत गए। दूसरे भी नहीं बना पाए, यह भी जीत है।' 

जम्मू-कश्मीर में सरकार बनाने के लिए नेशनल कांफ्रेंस, पीडीपी और कांग्रेस के बीच महागठबंधन की सुगबुगाहट के बीच अचानक राज्यपाल सत्यपाल मलिक ने विधानसभा भंग कर दी थी। इसके बाद से ही राज्यपाल विपक्ष के निशाने पर हैं। 

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