भारत के इस कूटनीतिक कदम से सकते में पाकिस्तान

By Ajit K DubeyFirst Published Sep 7, 2018, 4:34 PM IST
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चाबहार पोर्ट का प्रबंधन भारत को मिलना पाकिस्तान की ग्वादर पोर्ट पॉलिसी का जवाब माना जा रहा है। चीन ने ग्वादर बंदरगाह को संचालन के लिए चीन को सौंप रखा है। ग्वादर और चाबहार बंदरगाह महज 80 किलोमीटर की दूरी पर हैं। 

लंबी वार्ता और अंतरराष्ट्रीय प्रतिबंधों के चलते हुई देरी के बाद अब चाबहार पोर्ट भारत को मिलने वाला है। ईरान ने कहा है कि वह अगले महीने तक सामरिक रूप से अहम चाबहार बंदरगाह अंतरिम समझौते के तहत भारतीय कंपनी को संचालन के लिए सौंप देगा। 

नीति आयोग द्वारा आयोजित ‘मोबिलिटी शिखर सम्मेलन’ में हिस्सा लेने आए ईरान के सड़क एवं शहरी विकास मंत्री अब्बास अखोंदी ने कहा,  ‘अंतरिम समझौते के तहत हम अब चाबहार बंदरगाह प्रबंधन के लिये भारतीय कंपनी को सौंपने को तैयार हैं।’ इस पोर्ट का प्रबंधन भारत को मिलना पाकिस्तान की ग्वादर पोर्ट पॉलिसी का जवाब माना जा रहा है। चीन ने ग्वादर बंदरगाह को संचालन के लिए चीन को सौंप रखा है। ग्वादर और चाबहार बंदरगाह महज 80 किलोमीटर की दूरी पर हैं। 

'माय नेशन' बता रहा है चाबहार पोर्ट से भारत को कौन-कौन से बड़े फायदे होंगे -

1. सबसे बड़ा फायदा यह होगा कि भारत पाकिस्तान को बाइपास करते हुए सीधे अफगानिस्तान तक अपना माल पहुंचा सकता है। अफगानिस्तान के जरिये भारत को सेंट्रल एशिया और रूस तक जमीनी पहुंच हासिल हो जाएगी। 

2. भारत अरब सागर और ग्वादर बंदरगाह पर चीन की मौजूदगी का जवाब दे सकता है। चीन सैन्य मौजूदगी के दम पर अरब सागर में अपनी गतिविधियां बढ़ा रहा है। 

3. ईरान से भारत को आने वाले कच्चे तेल की ढुलाई लागत में कमी आएगी। इससे भारत ईरान से होने वाली तेल खरीद बढ़ा सकता है। ईरान को तेल आयात के बदले में भारत कृषि उपज और इंजीनियरिंग सेवाएं उपलब्ध करा सकता है। 

4. ईरान के रास्ते अफगानिस्तान पहुंचने से भारत जरंज-डेलाराम रोड का इस्तेमाल कर सकता है। भारत ने 2009 में अफगानिस्तान के गारलैंड हाईवे तक पहुंचने के लिए इस सड़क का निर्माण कराया था। यह अफगानिस्तान के चार बड़े शहरों -हेरात, कंधार, काबुल और मजार-ए-शरीफ तक संपर्क उपलब्ध कराती है। 

5. इस पोर्ट का संचालन भारत को मिलने से दोनों देशों के बीच संबंधों में मजबूती आएगी। इससे दोनों के बीच वाणिज्यिक और सामरिक संबंध सुधरेंगे। अफगानिस्तान में पाकिस्तान परस्त तालिबान दोनों का ही साझा दुश्मन है। पिछले कुछ दशक से भारत और अफगानिस्तान तालिबान के खिलाफ नार्दर्न एलायंस के नेताओं का समर्थन कर रहे हैं। 

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