ऐसा हुआ तो देश से नक्सली हो जाएंगे खत्म

By Anshuman Anand  |  First Published Sep 14, 2018, 3:38 PM IST

राष्ट्रीय जांच एजेन्सी यानी एनआईए(NIA) ने नक्सलियों की फंडिंग यानी आर्थिक तंत्र पर वार करने की योजना बनाई है। इसके लिए छह महीने तक जांच करके एक रिपोर्ट तैयार की गई है। आइए आपको बताते हैं सरकार की रणनीति के बारे में विस्तार से-

नई दिल्ली- केन्द्र सरकार ने नक्सलवाद के खात्मे के लिए कमर कस ली है। अब इनके खिलाफ आर-पार की लड़ाई की तैयारी चल रही है। सरकारी एजेन्सियां इसके लिए तेजी से अपना होमवर्क पूरा कर रही हैं। 

राष्ट्रीय जांच एजेन्सी यानी एनआईए(NIA) ने नक्सलियों की फंडिंग यानी आर्थिक तंत्र पर वार करने की योजना बनाई है। इसके लिए छह महीने तक जांच करके एक रिपोर्ट तैयार की गई है। पिछले कुछ महीनों से नक्सली फंडिंग के 10 मामलों की सघन जांच की गई, जिसमें कई लोगों से पूछताछ हो चुकी है। 

इसमें नक्सल प्रभावित 90(नब्बे) जिलों में नक्सलियों माओवादियों के वित्तीय तंत्र के बारे में अहम सूचनाएं जुटाई गई हैं। एजेन्सी द्वारा जुटाई गई जानकारी के मुताबिक नक्सली जमीन-जायदाद, सोना-चांदी और उद्योग धंधे में अपने पैसों का निवेश करते हैं। 

एनआईए(NIA) की रिपोर्ट में यह भी बताया गया है, कि कभी कभी माओवादी अपना पैसा छुपाने के लिए बिल्कुल देसी तकनीक भी इस्तेमाल करते हैं। वह करेंसी को ठूंस-ठूंसकर पॉलिथीन में लपेट देते हैं और उसे लोहे के मजबूत बक्से में रखकर घने जंगलों में गढ्ढा खोदकर दबा देते हैं।
  
कई बार नक्सली शहरों में रहने वाले अपने साथियों के पास पैसा रख देते हैं, और उसे तभी मंगाते हैं जब उन्हें जरुरत पड़ती है। पिछले दिनों गिरफ्तार हुए कई शहरी नक्सली इस तरह के मामलों में शामिल रहे हैं। 
नक्सलियों के यह शहरी समर्थक माओवादियों के पैसों को सोने के बिस्किट, बैंक फिक्स-डिपॉजिट और जमीन जायदाद में खपा देते हैं। इस तरह के निवेश से पैसा बढ़ता भी रहता है। 
उदाहरण के तौर पर सीपीआई माओवादी नेता सुधाकर और माधवी ने 50 लाख रुपए और आधा किलो सोना एक ठेकेदार के जरिए अपने परिवार के पास भेजे थे। जिसके बारे में सरकारी एजेन्सियों को पता चल गया। 
सीपीआई माओवादी नेता संदीप यादव ने साल 2016 में नोटबंदी के दौरान 15 लाख रुपए बदलने के लिए अपने एक परिचित को दिया, जिसे जब्त कर लिया गया। 

खबर है कि नक्सलियों के ऐसे शुभचिंतकों, फंड मैनेजरों और उनसे संबंध रखने वाले कारोबारियों की पहचान का काम तेजी से चल रहा है। जल्दी ही उनपर भी कार्रवाई हो सकती है। पिछले दिनों हुई शहरी नक्सलियों की गिरफ्तारियां इसी सिलसिले की एक कड़ी हैं।  

एक अनुमान के मुताबिक नक्सली अर्थतंत्र 100 से 120 करोड़ रुपए सालाना का है। लेकिन इस बारे में कई और भी अनुमान हैं। जैसे 2009 में छत्तीसगढ़ के डीजीपी ने कहा था, कि नक्सली देशभर में वसूली करके 2000 करोड़ रुपए जुटाते हैं। 
साल 2010 में पूर्व गृह सचिव जी.के.पिल्लई ने बताया, कि नक्सलियों का कुल वित्तीय तंत्र 1400 करोड़ रुपए का है। 2007 में सीपीआई माओवादी पोलितब्यूरो सदस्य ने बताया था कि उनका बजट 60 करोड़ का है। 
इस बारे में एनआईए(NIA) वास्तविक आंकड़े इकट्ठा कर रही है। 

नक्सली आम तौर पर अपने प्रभाव क्षेत्र में कारोबारियों से टैक्स वसूलते हैं, जिसे लेवी कहा जाता है। इसके अलावा सरकारी ठेकेदारों, क्रशर मालिकों, ट्रांसपोर्टर से भी नक्सली पैसे वसूलते हैं। 
साथ ही नक्सली की आय का एक बड़ा साधन लूट भी है, जैसे 2008 में नक्सलियों ने रांची के आईसीआईसीआई बैंक से 5 करोड़ रुपए लूटे।  
कई बार नक्सली एटीएम में पैसे भरने वाली गाड़ियों को भी लूट लेते हैं। इसलिए गृह मंत्रालय ने नक्सली इलाकों में शाम चार बजे के बाद एटीएम भरने वाली कैशवैन की आवाजाही पर रोक लगा दी है। 

केन्द्र सरकार ने 31 मार्च 2019 से पहले कम से कम 20 और जिलों को नक्सल मुक्त कराने का लक्ष्य बनाया है। गृह मंत्रालय ने छत्तीसगढ़, झारखंड, ओडिशा, बिहार, पश्चिम बंगाल, महाराष्ट्र, तेलंगाना, आंध्र प्रदेश के 20 ऐसे जिलों की पहचान की है जिसे इस साल तक नक्सल मुक्त करना है।

इसीलिए सरकार ने नक्सलियों के अर्थतंत्र पर चोट करने का फैसला किया है। जल्दी ही इसके परिणाम नजर आने लगेंगे।  

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