‘सोनिया गांधी ने 2004 में सत्ता पाने के लिए राजीव गांधी के हत्यारों से हाथ मिलाया’

By Siddhartha RaiFirst Published May 7, 2019, 9:11 PM IST
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कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी ने जब स्व.राजीव गांधी को पीएम मोदी द्वारा भ्रष्ट बताए जाने पर कर्म के सिद्धांत की दुहाई दी तब उनके अपने परिवार के कर्मों पर सवाल उठना लाजिमी हो जाता है। ऐसा आरोप है कि उन्होंने श्रीलंका के आतंकी संगठन लिट्टे से डीएमसंबंध विकसित किए, जिसने राजीव गांधी की हत्या कराई। ताकि साल 2004 में डीएमके को अपने गठबंधन में खींच सकें।

जब कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी ने जब स्व.राजीव गांधी को पीएम मोदी द्वारा भ्रष्ट बताए जाने पर कर्म के सिद्धांत की दुहाई दी तब उनके अपने परिवार के कर्मों पर सवाल उठना लाजिमी हो जाता है। ऐसा आरोप है कि उन्होंने श्रीलंका के आतंकी संगठन लिट्टे से डीएमसंबंध विकसित किए, जिसने राजीव गांधी की हत्या कराई। ताकि साल 2004 में डीएमके को अपने गठबंधन में खींच सकें।

इतिहास के इन पन्नों को राष्ट्रवादी विचारक एस गुरुमूर्ति ने पलटा। उन्होंने ट्विट्स की एक श्रृंखला जारी की, जिसमें उन्होंने साल 2008 में छपे अखबार के एक आर्टिकल का हवाला दिया। जिसमें यह दावा किया गया है कि राजीव गांधी की विधवा सोनिया गांधी ने राजनीति के लिए अपने पति की मौत का सौदा कर लिया।

माय नेशन से विशेष तौर पर बातचीत करते हुए गुरुमूर्ति ने कहा कि सोनिया गांधी ने राजीव गांधी के हत्यारे वी. प्रभाकरण से मुलाकात की थी, जिससे कि वह डीएमके और कांग्रेस का गठबंधन सुनिश्चित कर सकें। यह तब हुआ जब 1997 में उन्होंने डीएमके को सत्ता से बाहर करने के लिए गुजरात सरकार गिरा दी थी। क्योंकि राजीव गांधी हत्याकांड की जांच के लिए बनी जैन कमीशन की रिपोर्ट में डीएमके की भूमिका संदिग्ध पाई गई थी।

‘श्रीलंका के द आईलैण्ड अखबार  में मेरे कुछ सूत्रों से मुझे जानकारी प्राप्त हुई कि सोनिया गांधी जब राजनीति में प्रवेश करने वाली थीं, तब वह लिट्टे की तरफ से किसी तरह का खतरा नहीं चाहती थीं। उन्होंने कहा कि हत्यारों को मौत की सजा नहीं होनी चाहिए और उन्होंने उन्हें माफ भी कर दिया। दूसरी बात कि वह उनका समर्थन करें।’ गुरुमूर्ति ने कहा कि उन्हें यह जानकारी अपने विश्वस्त सूत्रों से मिली है और वह इसके बारे में कुछ भी बता नहीं सकते।

‘सोनिया गांधी ने जैसे एडवर्डो फलेरो को प्रभाकरण के पास भेजा और उसकी मां पाउलो माइनों एलटीटीई के नुमाइंदे एन्टन बालासिंघम से जिस आसानी से लंदन में मिल पाई, वह सिर्फ एक कॉल करने से संभव नहीं था। इसके पीछे जरुर बहुत प्रभावशाली  लोग होंगे और इन लोगों का संबंध पहले भी लिट्टे से रहा होगा। वो कौन लोग हैं? ’ गुरुमूर्ति ने यह सवाल छोड़ दिया। 

‘अगर आप अपने पति के हत्यारों से समझौता कर सकती हैं, तब आपके कर्मों को क्यों छिपाते हैं। उन्होंने अपने पति की मौत का राजनैतिक समझौता किया।’

‘उन्होंने 1998 में बनी मल्टी डिसिप्लिनरी मॉनिटरिंग एजेन्सी(MDMA) से जांच नहीं कराई। उन्होंने यूपीए शासनकाल में भी इसकी जांच को परवान चढ़ने नहीं दिया।’

गुरुमूर्ति ने आगे जोड़ा ‘यह कर्म ज्यादा बुरा था।’

यह अधिक घृणित कर्म है।

वहीं गुरुमूर्थि ने इस मामले में कई ट्वीट किए। एक ट्वीट में लिखा- सोनिया की राजनीति में एंट्री के साथ पति के हत्यारों को सजा दिलाने प्रतिबद्धता हवा हो गई। इसके बाद वह अपने पति के हत्यारों के साथ शांति की संभावनाएं तलाशती हैं। सोनिया ने हत्या के मास्टरमाइंट लिट्टे की मदद मांगी जिससे डीएमके का एनडीए से यूपीए में पलायन कराया जा सके। याद रहे कि एनडीए से यूपीए में इस पलायन की 2004 के लोकसभा चुनावों में अहम भूमिका थी।

गुरुमूर्ति ने अपने अन्य ट्वीट में लिखा कि सोनिया गांधी ने 1999 में तत्कालीन राष्ट्रपति के आर नारायणन को निजी तौर पर कहा था कि न वो और न ही उनके बच्चे राहुल और प्रियंका यह चाहते हैं कि राजीव के हत्यारों को फांसी की सजा दी जाए। गुरुमूर्ति ने कहा कि महिला आयोग की पूर्व प्रमुख मोहिनी गिरि ने फ्रंटलाइन मैगजीन को खुलासा किया। (हिंदू मैगजीन के अंक नवंबर 5-18, 2005 का हवाला दिया।)

एक अन्य ट्वीट में गुरुमूर्ति ने कहा कि जब 1997 में सोनिया ने डीएमके के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की मांग की थी तब वह राजनीति में नहीं थीं। हालांकि तत्कालीन कांग्रेस अध्यक्ष सीताराम केसरी को कुर्सी से हटाने के बाद सोनिया ने सबसे पहला फैसला पति के कातिलों से दोस्ती करने का किया।

गुरुमूर्ति ने कहा कि संभव है कि सोनिया और उनकी मां द्वारा लिट्टे से माफी मांगने की प्रक्रिया दिसंबर 2003 में डीएमके से हुए गठबंधन से काफी पहले शुरू हो चुकी हो। 

जनवरी 2004 में सोनिया ने करुणानिधी से मुलाकात की और गठबंधन और मजबूत कर लिया। वहीं 1997 में अमेठी में सोनिया ने संकेत दिया कि डीएमके लिट्टे का समर्थक है। गुरुमूर्ति ने दावा किया कि सोनिया गांधी ने 1997 में यूपीएफ की सरकार इसलिए गिरा दी क्योंकि वह चाहती थीं कि जैन कमीशन के सामने स्थापित हो कि डीएमके राजीव गांधी की हत्या के षणयंत्र में था।
 

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