पाकिस्तान में पढ़ाई करने वाले वह वैज्ञानिक जिनकी वजह से बैंगलुरु आया ISRO

By Anshika Tiwari  |  First Published Aug 24, 2023, 1:48 PM IST

 भारत के चंद्रायान-3 मिशन ने चांद के साउथ पोल पर लैंडिंग कर इतिहास रच दिया है।‌ पीएम मोदी ने इसरो के वैज्ञानिकों को बधाई दी है, लेकिन क्या आप जानते हैं जिस बेंगलुरु ऑफिस से इसरो ने यह इतिहास रचा है उसे बेंगलुरु लाने वाला कौन था?

नेशनल डेस्क। भारत के चंद्रायान-3 मिशन ने चांद के साउथ पोल पर लैंडिंग कर इतिहास रच दिया है।‌ हिंदुस्तान दुनिया का ऐसा पहला देश बन गया है‌ जिसने चंद्रमा के दक्षिणी सतह पर सॉफ्ट लैंडिंग की हो। ‌इस ऐतिहासिक कदम के लिए पीएम मोदी ने इसरो के वैज्ञानिकों को बधाई दी है, लेकिन क्या आप जानते हैं जिस बेंगलुरु ऑफिस से इसरो ने यह इतिहास रचा है उसे बेंगलुरु लाने वाला कौन था?

ISRO में सतीश धवन का अहम योगदान

दरअसल हम बात कर रहे हैं, सतीश धवन की। जिनके नाम पर सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र है। श्रीनगर में जन्मे सतीश धवन की परवरिश लाहौर में हुई तो पढ़ाई विदेश में । 1951 में वह वापस भारत लौट आए और एक वरिष्ठ वैज्ञानिक अधिकारी के तौर पर भारतीय विज्ञान संस्थान में शामिल होने के लिए बेंगलुरु आ गए। इसके बाद भी उनकी प्रगति नहीं रुकी और करीब एक दशक बाद 42 साल की उम्र में उन्होंने आईआईएससी के सबसे कम उम्र के निदेशक के तौर पर कार्यभार का जिम्मा अपने कंधों पर लिया। उन्होंने भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम में बड़ा योगदान दिया और वह इसरो के तीसरे अध्यक्ष भी थे। सतीश धवन ने सैटलाइट कम्युनिकेशन और लॉन्च व्हीकल पर रिसर्च की थी।

विक्रम साराभाई की मौत से लगा झटका

प्रोफेसर सतीश धवन भारत को अंतरिक्ष की नई बुलंदियों पर लेकर जाना चाहते थे। आईआईएमसी में कई विषयों पर रिसर्च करने के लिए केंद्रों की स्थापना की गई।‌ जिसमें विज्ञान और प्रौद्योगिकी के अनुप्रयोग के लिए ग्रामीण क्षेत्र से और सेंटर फॉर इकोलॉजिकल साइंस भी शामिल थे। बात उस वक्त की है जब 70 की दशक में उन्होंने इस संस्था को और बढ़ाने के लिए प्रतिभाशाली लोगों की भर्ती शुरू की लेकिन इस अंतरिक्ष कार्यक्रम को तब बड़ा झटका लगा जब 30 दिसंबर 1971 को इसरो के संस्थापक विक्रम साराभाई का दिल का दौरा पड़ने से 52 वर्ष की उम्र में निधन हो गया।

सतीश धवन ने इंदिरा गांधी से किया था अनुरोध

बता दें, अंतरिक्ष के लिए इसरो का विचार 1962 में विक्रम साराभाई ने दिया था। 1969 में इसरो ने आकर ले लिया लेकिन 1971 में साराभाई के चले जाने के बाद तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने प्रोफेसर सतीश धवन को अध्यक्ष पद पर नियुक्त किया। इस दौरान धवन ने इंदिरा गांधी से दो अनुरोध किए थे। ‌पहला था इसरो का मुख्यालय बेंगलुरु में होगा। जो 1940 में एयरोनॉटिक्स लिमिटेड की स्थापना के बाद और आईआईएससी की स्थापना के बाद होगा। दूसरा था कि उन्हें आईएससी के निदेशक के रूप में बने रहने की अनुमति दी जाएगी इस पर इंदिरा गांधी सहमत हो गई और इसरो बेंगलुरु आ गया।

सतीश धवन के कार्यकाल में दो उपग्रह‌‌ हुए स्थापित

सतीश धवन 1981 में आईआईएससी और 1984 में इसरो से रिटायर हुए। वे 2002 में अपनी मृत्यु तक भारतीय अंतरिक्ष आयोग के अध्यक्ष रहे। उनके कार्यकाल के दौरान भारत के पहले दो उपग्रह आर्यभट्ट 1975 में और भास्कर 1979 को पृथ्वी के चारों ओर कक्षा में स्थापित किया गया था। 

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