कांग्रेस के दिग्गज नेता सज्जन कुमार को उम्रकैद की सजा सुना दी है। सज्जन कुमार को 31 दिसंबर तक सरेंडर करना है। सज्जन कुमार को सजा दिलाने में एक वकील एचएस फुल्का की बड़ी भूमिका है। फुल्का ने सज्जन कुमार को सजा दिलाने और कोर्ट में केस लड़ने के लिए पंजाब में कैबिनेट मंत्री के दर्ज से भी इस्तीफा दे दिया था और वह इस मामले में फीस भी नहीं लेते हैं।
-तीस साल से नहीं ली सिख मामलों के लिए फीस
दिल्ली हाईकोर्ट ने आज 1984 में हुए सिख विरोधी दंगों में कांग्रेस के दिग्गज नेता सज्जन कुमार को उम्रकैद की सजा सुना दी है। सज्जन कुमार को 31 दिसंबर तक सरेंडर करना है। सज्जन कुमार को सजा दिलाने में एक वकील एचएस फुल्का की बड़ी भूमिका है। फुल्का ने सज्जन कुमार को सजा दिलाने और कोर्ट में केस लड़ने के लिए पंजाब में कैबिनेट मंत्री के दर्ज से भी इस्तीफा दे दिया था और वह इस मामले में फीस भी नहीं लेते हैं।
सज्जन कुमार और सहयोगियों को सजा दिलाने के बाद आज फुल्का और उनकी टीम और चश्मदीद गवाहों ने जश्न मनाया। फुल्का इस केस में पहले से ही जुड़े थे। इस केस के प्रति फुल्का की संजीदगी को इसी बात से समझा जा सकता है कि पंजाब विधानसभा चुनाव के बाद वह नेता विपक्ष बने थे। क्योंकि आम आदमी पार्टी राज्य में सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी बनी थी और उन्हें सदन में विपक्ष का नेता बनाया गया था। लेकिन उन्होंने विपक्ष के पद से इस्तीफा दे दिया था। आम आदमी पार्टी ने राज्य में 20 सीटों पर जीत दर्ज की थी।
असल कुछ लोगों का कहना था कि जस्टिस नरूला कमेटी में वह सदस्य सचिव के पद पर हैं और कोई भी व्यक्ति दो पदों पर नहीं रह सकता है। इसके लिए दिल्ली बार काउंसिल ने भी शिकायत की थी। इस कमेटी का गठन 1993 में नरसंहार की जांच के लिए किया गया था और उन्हें जनवरी 2001 में केंद्र सरकार का काउंसल बना दिया गया था। हालांकि पंजाब विधानसभा चुनाव के लिहाजा फुल्का ने कैबिनेट का दर्जा छोड़कर इस केस को लड़ने का फैसला किया।
एक सफल वकील फुल्का को एक ऐसे वकील के तौर पर जाना जाता है अगर वह जान लें कि उनका क्लाइंट गलत है तो वह उसका केस नहीं लेते हैं। फुल्का और मनजिंदर सिंह सिरसा ने सज्जन कुमार के दोषी ठहराए जाने के बाद दिल्ली हाईकोर्ट के बाहर जश्न मनाया। फुल्का ने 2014 में आम आदमी पार्टी के टिकट से लोकसभा चुनाव भी लड़ा था लेकिन उन्हें हार का सामना करना पड़ा। फुल्का पिछले करीब 30 सालों से लगातार एडवोकेट के तौर पर सिखों का पक्ष रखते आ रहे हैं और उन्होंने इसके लिए कोई फीस भी नहीं ली है।