कांग्रेस बेनकाब, सज्जन कुमार को 1984 के सिख नरसंहार में उम्रकैद

By Gopal KrishanFirst Published Dec 17, 2018, 11:24 AM IST
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सिख विरोधी दंगे में आज दिल्ली हाईकोर्ट ने निचली अदालत के फैसले को बदलते हुए कांग्रेस के पूर्व सांसद सज्जन कुमार को उम्रकैद की सजा सुनाई है। सज्जन कुमार पर एक बार फिर से मुकदमा चलेगा। कोर्ट ने अपनी तल्ख टिप्पणी करते हुए अपने फैसले में कहा कि 1947 के विभाजन में देश को देश को दंश झेलना पड़ा था और फिर 37 साल बाद ऐसा हुआ। कोर्ट ने कहा कि सिख नरसंहार को राजनैतिक संरक्षण मिला था।

विभाजन में दंश झेलना के बाद फिर 37 साल बाद सिख विरोधी दंगों में ऐसा हुआ-हाईकोर्ट

इंदिरा गांधी की हत्या के बाद एक नवंबर 1984 का मामला.

सिख विरोधी दंगे में आज दिल्ली हाईकोर्ट ने निचली अदालत के फैसले को बदलते हुए कांग्रेस के पूर्व सांसद सज्जन कुमार को उम्रकैद की सजा सुनाई है। सज्जन कुमार पर एक बार फिर से मुकदमा चलेगा। कोर्ट ने अपनी तल्ख टिप्पणी करते हुए अपने फैसले में कहा कि 1947 के विभाजन में देश को देश को दंश झेलना पड़ा था और फिर 37 साल बाद ऐसा हुआ। असल में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या के बाद एक नवंबर 1984 को दिल्ली के कैंट इलाके में दो परिवारों के पांच लोगों की हत्या करने के मामले में यह फैसला आया है।

दिल्ली हाईकोर्ट ने 1984 सिख दंगा मामले में कांग्रेस नेता सज्जन कुमार को उम्रकैद की सजा सुनाई है। वहीं कांग्रेस पार्षद बलवान खोखर, रिटायर्ड नेवी अफसर  कैप्टन भागमल , गिरधारी लाल की उम्रकैद की सज़ा को बरकरार रखा है और बाकी दो दोषियों पूर्व एमएलए महेंद्र यादव, किशन खोखर को तीन साल की सज़ा को बढ़ा कर 10 साल कर दिया है। कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि 1947 के विभाजन में देश को देश को दंश झेलना पड़ा था और फिर 37 साल बाद ऐसा हुआ। दिल्ली में हजारों लोग मारे गए थे और इनको(दोषियों)राजनीतिक संरक्षण था। जस्टिस एस मुरलीधर और जस्टिस विनोद गोयल  29 अक्टूबर को कोर्ट ने फैसला सुरक्षित रख लिया था।

हाईकोर्ट इस मामले में 11 सिंतबर से ही लगातार सुनवाई कर रहा था। बता दें कि पिछले 31 जुलाई को सुनवाई के दौरान 84 के सिख दंगा पीड़ितों की ओर से पेश वरिष्ठ वकील एच एस फुल्का ने कहा था कि सिख दंगों के 34 सालों के बाद भी उन्हें न्याय नहीं मिला है। इसलिये कोर्ट इस मामले की रोजाना सुनवाई करे ताकि पीड़ितों को जल्द से जल्द न्याय मिल सके। 

ज्ञात हो कि दिल्ली कैंट इलाके के राजपुर में 1 नवंबर 1984 को हजारों लोगों की भीड़ ने दिल्ली कैंट इलाके में सिख समुदाय के लोगो पर हमला कर दिया था। इस हमले में एक परिवार के तीन भाइयों नरेंद्र पाल सिंह, कुलदीप और राघवेंद्र सिंह की हत्या कर दी गई। वही एक दूसरे परिवार के गुरप्रीत और उनके बेटे कहर सिंह की मौत हो गई थी। दिल्ली पुलिस ने 1994 में ये केस बंद कर दिया था, लेकिन नानावटी कमीशन की रिपोर्ट के आधार पर 2005 में इस मामले में केस दर्ज किया गया। इस मामले में पांच लोगों की हत्या के आरोप में पूर्व नेवी अधिकारी भागमल के अलावा, कांग्रेस के पूर्व पार्षद बलवान खोखर, गिरधारी लाल सहित दो अन्य को निचली अदालत ने दोषी करार दिया था।

वहीं निचली अदालत ने कांग्रेस नेता सज्जन कुमार को बरी कर दिया था। इन दोषियों ने निचली अदालत के फैसले के खिलाफ दिल्ली हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी। जिसके बाद सीबीआई ने निचली अदालत द्वारा बरी किये जाने के फैसले को दिल्ली हाइकोर्ट में चुनौती दी थी। कहा था कि इन दोषियों ने दंगों को योजनाबद्ध तरीके से अंजाम दिया है। लिहाजा कोर्ट दोषियों की याचिका खारिज करें और सज्जन कुमार को भी इस मामले में सजा सुनाये। भारत सरकार की ऑफिशियल रिपोर्ट के मुताबिक पूरे भारत में इन दंगों में कुल 2800 लोगों की मौत हुई थी। जिनमें से 2100 मौतें केवल दिल्ली में हुई थीं। CBI जांच के दौरान सरकार के कुछ कर्मचारियों का हाथ भी 1984 में भड़के इन दंगों में सामने आया था। इंदिरा गांधी की हत्या के बाद उनके बेटे राजीव गांधी प्रधानमंत्री बने थे।

हाईकोर्ट का फैसला आने के बाद अब कांग्रेस की मुश्किलें बढ़ गयी हैं। क्योंकि सज्जन कुमार कांग्रेस के दिग्गज नेता माने जाते हैं। वहीं सिख विरोधी दंगे में मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री के पद की शपथ ले रहे कमलनाथ का नाम भी है। लिहाजा भाजपा को इसे एक बड़ा मुद्दा बनाएगी। इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने राफेल डील में भाजपा को क्लीन चिट दी थी। जिसके बाद कांग्रेस के हाथ से ये मुद्दा निकल गया था। 

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