असल में लोकसभा चुनाव में एसपी और बीसएसी गठबंधन हुआ था। लेकिन चुनाव परिणाम आने के बाद बीएसपी ने एसपी के साथ अपना गठबंधन तोड़ दिया है। विधानसभा चुनाव के बाद राज्य में 2017 में लोकसभा के हुए उपचुनाव से एसपी और बीएसपी के बीच नजदीकियां बननी शुरू हो गयी थी और बीएसपी ने इन चुनावों के लिए एसपी को मौखिक तौर पर समर्थन दिया था।
उत्तर प्रदेश विधानसभा का सत्र शुरू होने वाला है। इस बार सदन में 12 विधायक नहीं दिखेंगे जो अपनी आवाज से जनता की बात उठाते थे और सरकार को कठघरे में खड़ा करते थे। वो मंत्री और विधायक भी नहीं दिखेंगे जो विपक्ष दलों के आरोप का काउंटर करते थे। लेकिन इन सबके बीच इस बार फिर करीब डेढ़ के बाद समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी के विधायकों की दूरियां भी इस बार सदन में देखने को मिलेगी। पिछले डेढ़ साल से एसपी-बीएसपी सरकार के खिलाफ मिलकर विधानसभा में मोर्चा खोले रहती थी, लेकिन इस बार वह दोस्ती नहीं दिखेगी।
असल में लोकसभा चुनाव में एसपी और बीसएसी गठबंधन हुआ था। लेकिन चुनाव परिणाम आने के बाद बीएसपी ने एसपी के साथ अपना गठबंधन तोड़ दिया है। विधानसभा चुनाव के बाद राज्य में 2017 में लोकसभा के हुए उपचुनाव से एसपी और बीएसपी के बीच नजदीकियां बननी शुरू हो गयी थी और बीएसपी ने इन चुनावों के लिए एसपी को मौखिक तौर पर समर्थन दिया था।
जिसका परिणाम ये हुआ कि दो लोकसभा सीटों पर एसपी के प्रत्याशी जीते और एक पर रालोद का प्रत्याशी जीता। बीएसपी की सैद्धांतिक सहमति का असर विधानसभा में देखने को मिला। एसपी और बीएसपी के विधायकों ने प्रदेश की योगी सरकार को जमकर घेरा और सदन में हंगामा काटा। जिसको लेकर राज्यपाल ने भी विपक्षी दलों की निंदा की। लेकिन सदन में विपक्षी एकता नजर आयी।
लेकिन अब लोकसभा चुनाव परिणाम के बाद बीएसपी के एसपी के साथ चुनाव गठबंधन तोड़ने का असर विधानसभा में दिखेगा। क्योंकि जिस जोश और उत्साह से एसपी और बीएसपी के विधायक सरकार को घेरते थे, उसकी उम्मीद कम ही की जा रही है। क्योंकि मायावती ने भी अखिलेश के खिलाफ जबरदस्त बयान दिए हैं। विधानसभा में एसपी के 47 और बीएसपी के 19 विधायक हैं।
लेकिन इस बार गठबंधन टूटने के बाद पहली बार दोनों दल के विधायक एक दूसरे से फिर से दुश्मनों के तौर पर रूबरू होंगे। क्योंकि पिछले डेढ़ साल से चली आ रही दोस्ती अब टूट चुकी है। फिलहाल राज्य में गठबंधन टूटने पर बीजेपी काफी खुश है।
क्योंकि अब सदन के साथ ही बाहर उसे चुनौती देने वाले राजनैतिक दलों की हैसियत कम हो गयी है। इस बार सांसद हो जाने के कारण रीता बहुगुणा जोशी, सत्यदेव पचौरी और एसपी बघेल सदन में नहीं दिखेंगे। तो एसपी के फायर ब्रांड नेता आजम खां भी नहीं दिखेंगे।