लगातार चुनाव में मिल रही हार के बाद पार्टी का कार्यकर्ता हताश है। यही नहीं इस बार लोकसभा चुनाव में पार्टी के परंपरागत मतदाताओं ने भी पार्टी को वोट नहीं दिया। मुस्लिम वोटर इस बार बीएसपी की तरफ चला गया है। जिसके कारण बीएसपी राज्य में दस सीटें जीतने में कामयाब रही। फिलहाल पार्टी के सामने सबसे बड़ी समस्या आगामी उपचुनाव हैं।
समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव राज्य की 12 विधानसभा की सीटों पर होने वाले उपचुनाव से दूरी बनाना चाहते हैं। क्योंकि पार्टी के भीतर से जो खबरें छन छन आ रही हैं उसके मुताबिक अखिलेश यादव पार्टी के हताश व कमजोर संगठन के जरिए उपचुनाव में नहीं उतरना चाहते हैं।
जबकि लोकसभा चुनाव में उनकी सहयोगी रही बीएसपी ने तो इसके लिए तैयारियों भी शुरू कर दी हैं और बीएसपी पहली बार उपचुनाव में अपनी किस्मत आजमा रही है। जबकि बीजेपी तो पहले ही इलेक्शन मूड में है। लोकसभा चुनाव के परिणाम के बाद समाजवादी पार्टी वो उत्साह नहीं देखने को मिल रहा है।
जो आमतौर पर एसपी कार्यकर्ताओं में देखने को मिलता था। इसका सबसे बड़ा कारण लोकसभा चुनाव में पार्टी को सम्मानजनक सीट न मिलना है। लोकसभा चुनाव में पार्टी को महज पांच सीटें मिली थी। जबकि उसकी सहयोगी पार्टी बीएसपी को दस सीटें मिली थी।
अगर देखें तो पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष के तौर पर अखिलेश के नेतृत्व में पार्टी की दूसरी बड़ी हार है। इससे पहले विधानसभा चुनाव भी अखिलेश के नेतृत्व में लड़े गए थे। लेकिन पार्टी सत्ता में रहने के बावजूद महज 47 सीटें ही ला पायी। जिसके बाद पार्टी की जबरदस्त किरकिरी भी हुई।
लगातार चुनाव में मिल रही हार के बाद पार्टी का कार्यकर्ता हताश है। यही नहीं इस बार लोकसभा चुनाव में पार्टी के परंपरागत मतदाताओं ने भी पार्टी को वोट नहीं दिया। मुस्लिम वोटर इस बार बीएसपी की तरफ चला गया है। जिसके कारण बीएसपी राज्य में दस सीटें जीतने में कामयाब रही।
फिलहाल पार्टी के सामने सबसे बड़ी समस्या आगामी उपचुनाव हैं। इन चुनावों के लिए हालांकि पार्टी ने स्थानीय नेताओं के नाम मांगे हैं। लेकिन पार्टी के कार्यकर्ता ओर नेताओं में वो जोश नहीं दिख रहा है। जो पार्टी के कार्यकर्ताओं में हुआ करता था। हालांकि 12 विधानसभा की सीटों में से एसपी के पास महज एक ही सीट थी जबकि एक सीट बीएसपी के पास थी।
जिसमें उसके विधायक लोकसभा के लिए चुने गए हैं। फिलहाल अखिलेश यादव पार्टी के संगठन में बदलाव की रणनीति तैयार कर हैं। जिसके तहत वह जिला अध्यक्ष से लेकर राष्ट्रीय स्तर पर पार्टी के पदाधिकारियों की जिम्मेदारियों में फेरबदल करेंगे। राजनीति के जानकारों का भी कहना है कि उपचुनाव एसपी के लिए कोई खास अच्छी खबर नहीं ला रहे हैं। क्योंकि इन चुनाव में पार्टी को इस बार दो प्रतिद्वंदियों से लड़ना है। लिहाजा ज्यादा सीटों पर जीत की उम्मीद नहीं है।