बिहार में यूपीए महागठबंधन से वाम दलों के बाहर होने से देशद्रोह के मामले में फंसे जेएनयू के पूर्व अध्यक्ष कन्हैया कुमार की राजनैतिक पारी शुरू करने की उम्मीदों पर पानी फिर गया है।
नई दिल्ली/पटना।
बिहार में यूपीए महागठबंधन से वाम दलों के बाहर होने से देशद्रोह के मामले में फंसे जेएनयू के पूर्व अध्यक्ष कन्हैया कुमार की राजनैतिक पारी शुरू करने की उम्मीदों पर पानी फिर गया है। कन्हैया कुमार के जेएनयू देशद्रोह मामले में कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने भी समर्थन किया था लेकिन अब राहुल गांधी ने कुमार से किनारा कर लिया है।
बिहार में यूपीए महागठबंधन में अभी तक सीटों का बंटवारा नहीं हो सका है। कांग्रेस राज्य में 12 सीटें चाहती हैं जबकि राजद उसे महज 10 सीटें देने के पक्ष में हैं। कांग्रेस का तर्क है कि उसने 2014 के लोकसभा चुनाव में 12 सीटों पर चुनाव लड़ा था और तब भी राज्य में उसका गठबंधन राजद के साथ था। लिहाजा उसे उसी आधार पर टिकट दिया जाना चाहिए। राज्य में कांग्रेस को 40 में से 11 लोकसभा मिल सकती हैं। क्योंकि राजद अब वाम दलों को गठबंधन में जगह देने के पक्ष में नहीं है।
राजद पहले चाहता था कि वाम दलों और बसपा को भी गठबंधन में शामिल किया जाए और उन्हें एक—एक सीट दी जाए। लेकिन अब वाम दल गठबंधन में शामिल होकर चुनाव नहीं लड़ेगा। वाम दलों की तरफ से जेएनयू छात्रसंघ के पूर्व अध्यक्ष कन्हैया को बेगूसराय से महागठबंधन का उम्मीदवार बनाने की बात चल रही है। भाकपा ने काफी पहले ही शीर्ष नेतृत्व को कन्हैया का नाम भेज दिया था। हालांकि वाम दल कन्हैया को बेगूसराय से प्रत्याशी बना रहे हैं। लेकिन राज्य में कोई जनाधार न होने के कारण कन्हैया कुमार चुनाव लड़ने के पक्ष में नहीं है। क्योंकि राज्य में कन्हैया कुमार को भाजपा गठबंधन और यूपीए महागठबंधन से टक्कर मिलेगी।
गौरतलब है कि बुधवार को ही दिल्ली में राजद और कांग्रेस नेताओं की लंबी बैठकें हुईं जिनमें सीटों के बंटवारे को लेकर हफ़्तों से चले आ रहे गतिरोध को दूर करने पर चर्चा हुई। अगर बात 2014 के लोकसभा चुनाव की करें तो भाजपा ने 22 सीटें जीती थीं। लोजपा को 6 सीटें मिली थीं, वहीं राजद को मात्र 4 सीटें मिली थीं। जदयू ने 2 सीटें और कांग्रेस ने 2 सीटें जीती थीं वहीं वाम दल अपना खाता भी नहीं खोल पाए थे।