कुंभ मेला, भारतीय संस्कृति की सनातन यात्रा

By Anshuman Anand  |  First Published Sep 1, 2018, 6:45 PM IST

युवा लेखक और निर्देशक हर्षित जैन ने कुंभ मेले के हर पहलू को अपनी शॉर्ट फिल्म “कुंभ, भारतीय संस्कृति की सनातन यात्रा” में समेटा है। एक घंटे नौ मिनट की यह डॉक्यूमेन्ट्री बहुत शानदार तरीके से बनाई है। उच्च स्तरीय कैमरा वर्क, बढ़िया वॉयस ओवर, जरुरत के मुताबिक इस्तेमाल किए गए बेहद स्पष्ट ग्राफिक इस डॉक्यूमेन्ट्री को दर्शनीय बना देते हैं।  

मानवीय सभ्यता का सबसे बड़ा आयोजन है कुंभ मेला, जिसमे करोड़ो लोग हिस्सा लेते हैं। कुंभ मेला स्वत:स्फूर्त होता है। इसके लिए किसी को औपचारिक निमंत्रण नहीं दिया जाता और ना ही किसी एक व्यक्ति या संस्था के हाथ में इसकी जिम्मेदारी होती है। कुंभ मेले का आयोजन जन सहभागिता से होता है और यही बात इसकी खूबसूरती को और बढ़ा देती है। 

युवा लेखक और निर्देशक हर्षित जैन ने कुंभ मेले के हर पहलू को अपनी शॉर्ट फिल्म “कुंभ, भारतीय संस्कृति की सनातन यात्रा” में समेटा है। एक घंटे नौ मिनट की यह डॉक्यूमेन्ट्री बहुत शानदार तरीके से बनाई है। उच्च स्तरीय कैमरा वर्क, बढ़िया वॉयस ओवर, जरुरत के मुताबिक इस्तेमाल किए गए बेहद स्पष्ट ग्राफिक इस डॉक्यूमेन्ट्री को दर्शनीय बना देते हैं।  

कुंभ मेला पूरे भारत का प्रतिनिधित्व करता है। जहां कहीं भी कुंभ मेला लगता है, उसमें भाग लेने के लिए पूरब, पश्चिम, उत्तर, दक्षिण हर दिशा से भारतीय उसमें इकट्ठा होते हैं। हर्षित जैन ने यह डॉक्यूमेन्ट्री के लिए विजुअल इकट्ठा करते समय इस बात का खास ख्याल रखा है, कि उनके कैमरे में राजस्थानी, तमिल, पंजाबी, नॉर्थ-ईस्ट, हिमाचली हर दिशा से आए भारतीयों की तस्वीरें कैद हो जाएं। यह बताता है कि उन्होंने कितने समर्पण और मेहनत के साथ यह डॉक्यूमेन्ट्री तैयार की है। 

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सनातन धर्म प्रकृति उपासना पर आधारित धर्म है। कुंभ मेले में इसका अवलोकन हर कदम पर होता है। डॉक्यूमेन्ट्री के एक बड़े हिस्से में सनातन धर्म की प्रकृति उपासना की परंपरा के बादे में दर्शाया गया है। 

विजुअल्स और वॉयस ओवर के बीच में जिन विद्वानों की साउंड बाइट इस्तेमाल की गई है, उसमें से ज्यादातर विदेशी मूल के विद्वान है या फिर वह सम्मानित भारतीय हैं, जिनकी राय महत्व रखती है। यह सभी लोग कुंभ मेले और भारतीय संस्कृति से अभिभूत दिखते हैं। जिससे इस डॉक्यूमेन्ट्री का वजन बढ़ जाता है और इसे देखने वालों पर गहरा प्रभाव छोड़ती है।  

डॉक्यूमेन्ट्री का एक हिस्सा कुंभ मेले में महिलाओं की सहभागिता पर भी है। जिसमें बताया गया है कि कैसे भारतीय संस्कृति स्त्री पुरुष के बीच भेद नहीं करती है। कुंभ मेले के दौरान शास्त्रार्थ और ज्ञान बांटने की प्राचीन परंपरा रही है। कुंभ मेले का एक उद्देश्य ज्ञानार्जन भी है। इसीलिए कुंभ मेले में धार्मिक साहित्य के बड़े बड़े स्टॉल लगाए जाते हैं। जिसे डायरेक्टर हर्षित और उनकी टीम ने बेहद खूबसूरती से उभारा है।

सामाजिक भेदभाव के लिए बदनाम भारतीय समाज कुंभ मेले के समय एक सूत्र में बंधा हुआ दिखता है। हिंदू धर्म में कुंभ के समय जातियों के बंधन टूट जाते हैं। सब एक साथ पवित्र स्नान करते हैं। 

कुंभ मेला बड़ी आर्थिक गतिविधि का केन्द्र माना जाता है। पैसे का टर्नओवर बहुत ज्यादा होता है। आम लोगों को रोजगार के अवसर उपलब्ध होते हैं। सांस्कृतिक आदान प्रदान होता है। गायन,वादन, नृत्य, नाटक की अखिल भारतीय संस्कृति का प्रदर्शन होता है। हर्षित ने सब कुछ अपनी इस डॉक्यूमेन्ट्री में समेट दिया है। इसे देखते हुए कैसे घंटे भर का समय निकल जाता है वह पता ही नहीं चलता। 

डॉक्यूमेन्ट्री की समाप्ति जिस कुंभ-कुंभ के गाने से होती है, वह बेहद सुमधुर है और उसमें एक क्षेत्रीयता है। जो कि आखिर तक दर्शकों को बांधे रखती है। 
 

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