कुछ राजनीतिक दल अपने विपक्षी उम्मीदवार के मोबाइल नंबर से वोटर को कॉल कर रहे हैं. हालांकि यह कॉल इंटरनेट टेलीफोनी के जरिए किया जा रहा है. वहीं इस फोन के जरिए वोटर से प्रतिद्ंवदी को वोट देने की अपील की जा रही है. गौरतलब है कि इंटरनेट टेलीफोनी का गलत इस्तेमाल करते हुए किसी व्यक्ति को फोन करते हुए उसे आप अपनी पसंद का नंबर दिखा सकते हैं.
लोकसभा चुनाव 2019 के प्रचार में राजनीतिक दल न सिर्फ टेक्नोलॉजी का सहारा लेते हुए वोटरों तक अपनी पहुंच में इजाफा कर रहे हैं, बल्कि इंटरनेट का गलत इस्तेमाल करते हुए अपने प्रतिद्वंदी की निगेटिव कैंपेनिंग भी कर रहा है.
चुनाव में किस्मत आजमा रहे नेताओं की आईटी प्रमोशन टीम दिनरात अपने उम्मीदवार का संदेश और उपलब्धियां वोटर को गिना रहे हैं. कुछ राजनीतिक दल टेक्नोलॉजी का गलत इस्तेमाल करते हुए वोटर को प्रभावित करने का काम कर रहे हैं.
एक्सपर्ट्स का दावा है कि कुछ राजनीतिक दल अपने विपक्षी उम्मीदवार के मोबाइल नंबर से वोटर को कॉल कर रहे हैं. हालांकि यह कॉल इंटरनेट टेलीफोनी के जरिए किया जा रहा है. वहीं इस फोन के जरिए वोटर से प्रतिद्ंवदी को वोट देने की अपील की जा रही है.
गौरतलब है कि इंटरनेट टेलीफोनी का गलत इस्तेमाल करते हुए किसी व्यक्ति को फोन करते हुए उसे आप अपनी पसंद का नंबर दिखा सकते हैं.
अपने प्रतिद्वंदी से इस तरह परेशान होने वाले एनसीपी के स्टेट प्रेसिडेंट जयंत पाटिल हैं. जयंत पाटिल महाराष्ट्र के सांगली से पार्टी के उम्मीदवार हैं. पाटिल का दावा है कि उनके चुनाव क्षेत्र में लोगों को उनके मोबाइल से फोन किया गया. फोन करने वाले ने प्रतिद्वंदी उम्मीदवार वंचित बहुजन अघाणी पार्टी के गोपीचंद पाडलकर के पक्ष में वोट डालने के लिए कहा गया.
पाटिल की शिकायत पर पुलिस मामले की जांच कर रही है. एक्सपर्ट्स का कहना है कि इस तरह का फोन इंटरनेट का गलत इस्तेमाल करने हुए किया जा रहा है. साइबर एक्सपर्ट्स का कहना है कि कई वीओआपी प्रोवाइडर फ्री और पेड कॉलिंग सर्विस मुहैया करा रहे हैं.
इस सर्विस के तहत कॉलर की पहचान को बदला जा सकता है. सर्विस में ग्राहकों को मोबाइल एप्लीकेशन की दिया जाता है. एक्सपर्ट्स का कहना है कि इंटरनेट के नियमों का उल्लंघन करते हुए वोटर को वह नंबर दिखाया जाता है जो आप उसे दिखाना चाहते हैं.
गौरतलब है कि एक दशक पहले 26/11मुंबई आतंकी हमले के समय पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर में बैठे लश्कर के आकाओं ने इंटरनेट टेलीफोनी का सहारा लेते हुए 10 आतंकियों से संपर्क साध रखा था. सुरक्षा एजेंसियों को आज भी इंटरनेट टेलीफोनी को ट्रैक करने में महारत नहीं हासिल है.