चार साल में मोबाइल फोन को आयात करने की जगह देश में ही बनाने पर जोर दिया गया। 2017-18 में करीब 22.5 करोड़ मोबाइल हैंडसेट देश में बने या असेंबल किए गए।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की 'मेक इन इंडिया' पहल को लेकर उनके विरोधी भले ही कुछ भी कहें, लेकिन हकीकत यह है कि इससे देश के मैन्यूफैक्चरिंग सेक्टर में क्रांतिकारी बदलाव आ रहा है। इंडिया सेल्यूलर एंड इलेक्ट्रॉनिक एसोसिएशन (आईसीईए) की एक रिपोर्ट के अनुसार, पिछले 4 साल में मोबाइल हैंडसेट और पुर्जे बनाने वाली कई कंपनियों ने देश भर में 120 से ज्यादा नई यूनिटें लगाई हैं। अलग-अलग राज्यों में लगी इन यूनिटों में 4.5 लाख से अधिक लोगों को रोजगार मिला। देश में मोबाइल हैंडसेट का उत्पादन बढ़ा। इससे 3 लाख करोड़ रुपये से अधिक की विदेशी मुद्रा बचाने में मदद मिली है।
रिपोर्ट के अनुसार, सरकार ने पिछले 4 साल में मोबाइल फोन आयात करने की जगह देश में ही बनाने पर जोर दिया। मोबाइल मैन्युफैक्चरिंग कंपनियों को कारोबार के लिए सुगम माहौल दिया गया। नतीजा यह हुआ कि दुनिया की सभी दिग्गज मोबाइल कंपनियों ने अपनी यूनिटें लगाने के लिए भारत का रुख किया। आईसीईए के अनुसार, '2017-18 में भारत में करीब 22.5 करोड़ मोबाइल हैंडसेट बनाए गए या असेंबल किए गए। यह भारतीय बाजार की कुल खपत का 80% है।' वित्त वर्ष 2014-15 में देश की कुल खपत के लगभग 78 प्रतिशत मोबाइल विदेशों से आयात किए गए थे।
आईसीईए के अनुसार, मार्च 2019 तक भारत में मोबाइल मैन्युफैक्चरिंग का कारोबार बढ़कर 1.65 लाख करोड़ रुपये पहुंचने का अनुमान है। अब सालाना लगभग 29 करोड़ मोबाइल बनकर तैयार होंगे। इससे मोबाइल आयात में भारी गिरावट आने की संभावना है।
आईसीईए के अध्यक्ष पंकज महिंद्रू के मुताबिक, मोबाइल हैंडसेट के मामले में भारत लगभग आत्मनिर्भर होने के करीब है। मौजूदा वित्त वर्ष 2018-19 की पहली दो तिमाही में भारत का मोबाइल मैन्युफैक्चरिंग बाजार लगभग 75000 करोड़ रुपये का हो जाएगा। जल्द ही रिलायंस भी जियो मोबाइल हैंडसेट का निर्माण भारत में करने जा रही है। उन्होंने कहा, ज्यादातर अंतरराष्ट्रीय ब्रांड और मोबाइल निर्माताओं की भारत पर नजर है। भारत दुनिया का सबसे तेजी से बढ़ता स्मार्टफोन बाजार है।