सरकार के इस फैसले के बाद पेस मेकर, हार्ट वॉल्व, लेंस से लेकर आर्टिफिशियल हिप सहित करीब 400 से ज्यादा कृत्रिम मानव अंगों की कीमतों में कमी आएगी, जबकि अभी तक बाजार में उपलब्ध इन अंगों की कीमत काफी ज्यादा है.
-कृतिम मानव अंगों को मिलेगा दवा का दर्जा और 50 फीसदी तक कम हो सकती हैं कीमतें
केन्द्र की मोदी सरकार जल्द ही आम जनता को एक और राहत देने जा रही है. केन्द्र सरकार कृत्रिम मानव अंगों को दवा की श्रेणी में लाने की दिशा में काम कर रही है और ऐसा माना जा रहा है कि इस महीने केन्द्र सरकार इसके लिए नए नियम बनाकर कृत्रिम मानव अंगों को दवा की श्रेणी में जा सकती है, इस के लिए नियम बन जाने के बाद कृत्रिम मानव अंगों की बाजार में कीमतें काफी कम हो जाएंगी.
देश में कृत्रिम मानव अंगों की कीमतें अन्य विदेशों की तुलना में ज्यादा है. लिहाजा केन्द्र सरकार ने इनकी कीमतों को कम करने के लिए एक कार्य योजना तैयार की है. इस के तहत कृत्रिम मानव अंगों को दवा की श्रेणी में लाया जाएगा और इससे इन अंगों की कीमतों में जबरदस्त कमी आएगी. ऐसा माना जा रहा ह कि सरकार की इस कोशिश से करीब 50 फीसदी तक कीमतों में कमी आएगी. सरकार के इस फैसले के बाद पेस मेकर, हार्ट वॉल्व, लेंस से लेकर आर्टिफिशियल हिप सहित करीब 400 से ज्यादा कृत्रिम मानव अंगों की कीमतों में कमी आएगी, जबकि अभी तक बाजार में उपलब्ध इन अंगों की कीमत काफी ज्यादा है.
केन्द्र सरकार के द्वारा नए बन जाने के बाद कोई भी दुकानदार इसके लिए ज्यादा कीमतों को नहीं ले पाएगा. केन्द्र की मोदी सरकार इसके लिए ड्रग्स एंड कॉस्मेटिक्स एक्ट में बदलाव करने जा रही है. ऐसा माना जा रहा है कि केंद्रीय स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय जनवरी में ही इसके लिए नोटिफिकेशन जारी कर सकता है. इसके लिए नोटिफिकेशन जारी होने के बाद सरकार इसकी क्वालिटी और कीमतों पर नियंत्रण रख सकेगी और कंपनियां ग्राहकों से ज्यादा से ज्यादा कीमतों को नहीं वसूल पाएंगी। अभी तक कंपनियां कृत्रिम मानव अंगों के लिए कई गुना कीमतें वसूल रही हैं.
भारत में आज भी ज्यादातर कृत्रिम अंग विदेशों से आयात किये जाते हैं और इनकी कीमत भी ज्यादा है.
वहीं इन अंगों को 15 से 20 बार प्रयोग के बाद बेकार हो जाते हैं. आमतौर पर इन्हें सिलिकॉन पॉलीमर के जरिए बनाया जाता है. वहीं रोबोटिक्स की सहायता से दैनिक कार्यों में मानव द्वारा असली अंगों की तरह प्रयोग किया जा सकता है. सरकार के इस फैसले के बाद विदेशी कंपनियों को भारत में इन उत्पादों को बेचने के लिए सरकार से अनुमति लेनी होगी. देश में हर साल करीब 45 हजार करोड़ रुपए का कृत्रिम मानव अंगों का कारोबार है और इसमें मुनाफा काफी है. इसके कारण जरूरतमंद मरीज इन कृत्रिम अंगों को नहीं लगा पाते हैं.