खाद्यान्न उत्पादन के लिए हरित क्रांति, दुग्ध उत्पादन के लिए सफेद क्रांति, सी-फूड उत्पादन के लिए नीली क्रांति के बाद अब बायो क्रांति का वक्त आ गया है। देश इस दिशा में तेजी से आगे बढ़ता जा रहा है। जल्दी ही वह समय आ जाएगा जब देश बायोफ्यूल यानी जैविक ईंधन के मामले में बड़ी कामयाबी हासिल कर लेगा।
खाद्यान्न उत्पादन के लिए हरित क्रांति, दुग्ध उत्पादन के लिए सफेद क्रांति, सी-फूड उत्पादन के लिए नीली क्रांति के बाद अब बायो क्रांति का वक्त आ गया है। देश इस दिशा में तेजी से आगे बढ़ता जा रहा है। जल्दी ही वह समय आ जाएगा जब देश बायोफ्यूल यानी जैविक ईंधन के मामले में बड़ी कामयाबी हासिल कर लेगा।
पिछले दिनों सुर्खियों में रही कुछ खबरों पर नजर डालें तो पता चलेगा कि आने वाली बायो क्रांति के शुरुआती लक्षण अभी से दिखने लगे हैं। पहली खबर थी, कि नागपुर की एक सरकारी एजेन्सी ने टॉयलेट का पानी ट्रांसपोर्ट कंपनी को बेचकर 78 करोड़ रुपए कमाए। इस गंदे पानी से बायो सीएनजी तैयार हो रही है जिससे नागपुर शहर में 50 एसी बसें चलाई जा रही हैं।
इस बायो सीएनजी की प्रोसेसिंग की कीमत 16 रुपए प्रति लीटर पड़ रही है, जो कि 65 रुपए कीमत वाले डीजल का महज एक चौथाई है। गंदे पानी से निकलने वाली मीथेन से सीएनजी बनाकर जल्दी ही देश के 26 शहरों में बसें चलाई जाएंगी। इसके लिए पेट्रोलियम मंत्रालय के अंदर आने वाली तेल और गैस कंपनियों से एक करार किया गया है।
दूसरी खबर है एविएशन यानी विमानन उद्योग से जुड़ी। देश में पहली बार देहरादून से दिल्ली के बीच बायो फ्यूल से हवाई जहाज उड़ाया गया। भारत ऐसा करने वाला दुनिया का चौथा देश बन गया है। अगर देश में बायो फ्यूल का उत्पादन बढ़ता है, तो इस सस्ते ईंधन से विमानन कंपनियों का घाटा कम होगा और विदेश के आयात किए जाने वाले पेट्रोलियम ईंधन पर हमारी निर्भरता कम होगी।
इससे विदेशी मुद्रा की भी बचत होगी। और सबसे बड़ी बात यह है कि यह पर्यावरण के लिए सुरक्षित है। दुनिया भर में होने वाले कार्बन प्रदूषण में एविएशन इंडस्ट्री का योगदान ढाई(2.5) प्रतिशत का है। अगर वायुयानों में बायो फ्यूल का प्रयोग बढ़ता है तो इससे धरती माता की सेहत को बेहद फायदा होगा।
तीसरी खबर है रोजगार से जुड़ी। देशभर में दस हजार करोड़ की लागत से 12 बायोमास रिफाइनरी बनाने का काम चल रहा है। एक रिफाइनरी में 1000 से 1500 लोगों को सीधे तौर पर रोजगार मिलेगा। अगर उत्पादन से लेकर डिस्ट्रीब्यूशन तक की कड़ी को जोड़ लिया जाए तो नई उभरती हुई बायोमास इंडस्ट्री से लगभग डेढ़ लाख युवाओं को रोजगार मिलने की उम्मीद बंधती है।
इन तीन बड़ी ही अहम खबरों ने यह संकेत दिया है कि देश में बायो क्रांति का आगाज हो चुका है। इसके नतीजे हमें आने वाले दो साल के अंदर दिखने लगेंगे। अभी हाल ही में 10 अगस्त को बायो फ्यूल डे मनाया गया। इस मौके पर प्रधानमंत्री ने जानकारी दी, कि 2014 में मोदी सरकार के सत्ता में आने से लेकर अब तक यानी चार सालों में 140 करोड़ लीटर का रिकॉर्ड इथेनॉल उत्पादन किया गया, जिसे अगले चार सालों में बढ़ाकर 450 करोड़ लीटर करने का लक्ष्य रखा गया है।
जैविक कचरे से तैयार किए गए इस इथेनॉल से 4 हजार करोड़ की विदेशी मुद्रा की बचत हुई है। यह बचत अगले चार सालों में बढ़कर 12 हजार करोड़ तक पहुंच जाएगी। दरअसल गन्ने और दूसरे तरह के खेती के कचरे से इथेनॉल बनाना अटल बिहारी सरकार की महत्वकांक्षी योजना थी। लेकिन यूपीए सरकार बनने के बाद इसपर कोई ध्यान नहीं दिया गया।
साल 2014 में जब मोदी सरकार आई तो इथेनॉल उत्पादन के लिए बकायदा रोडमैप बनाकर काम शुरु किया गया। स्वच्छ उर्जा के लिए मोदी सरकार बी-3 यानी बायोमास, बायोफ्यूल और बायोएनर्जी के नीति पर काम कर रही है। जिसके सकारात्मक परिणाम अब दिखने शुरु हो गए हैं।
इस नीति के तहत खेती के कचरा, घर से निकलने वाला कूड़ा, पशुओं का गोबर, मंडियों में सड़ते हुए फल और सब्जियां, जंगलों में सड़ने वाली पत्तियां और घास से जैविक ईंधन या बायोमास बनाए जाने की योजना है। सरकार की यह योजना सिर्फ ईंधन तैयार करने या विदेशी मुद्रा बचाने तक ही सीमित नहीं है। बल्कि इस योजना का का लाभ हर-एक भारतीय को होगा। क्योंकि बायो एनर्जी पर्यावरण को सुरक्षित रखती है।
जब बायो क्रांति अपने चरम पर होगी तो इसका सबसे बड़ा फायदा देश के प्रदूषण स्तर पर दिखेगा। जो कि आम आदमी से जीवन से जुड़ा हुआ है। क्योंकि हम जानते हैं कि स्वच्छ हवा और साफ पानी हर भारतीय का अधिकार है।