धर्मनगरी मथुरा में इन दिनों बंदरों का भारी आतंक है। हर रोज श्रद्धालुओं को बंदर काट लेते हैं। यहां के अस्पतालों में हर रोज 100 बंदर काटने के मरीज आ रहे हैं।
मथुरा. कान्हा की नगरी मथुरा में बंदरों के हमले से भयभीत होकर लोग पलायन कर रहे हैं। यहां गोविंद बाग में बंदरों ने एक बजुर्ग पर हमला कर उसे जमकर काटा। वहीं, एक महिला पर बंदरों के झुंड ने हमला कर उसकी पीठ पर बैठ गए। बचाव के प्रयास में बंदरों ने उसे भी काटा है। दोनों गंभीर रूप से घायल हुए हैं। इस हमले का सीसीटीवी सामने आया है। जिला अस्पताल के आंकड़ों के मुताबिक, हर दिन 100 लोग बंदर व कुत्तों के हमले में घायल होकर इलाज के लिए पहुंचे रहे हैं। इसमें आधे से अधिक बंदरों के हमले के पीड़ित होते हैं। लेकिन स्थानीय प्रशासन कोई ठोस कदम नहीं उठा रहा है।
गोविंद बाग इलाके में रहने वाले बृजमोहन ने बताया कि, उनके 93 वर्षीय पिता घर के बाहर टहल रहे थे, तभी बंदरों के झुंड ने हमला कर दिया। पैरों व हाथों पर जमकर नोचा है। जिससे वे लहुलूहान हो गए। इसी तरह की एक महिला की पीठ पर बंदर बैठ गए। विरोध करने पर हमला कर काटा है। पूरा मामला एक घर में लगे सीसीटीवी में कैद हुआ है। बृजमोहन ने बताया कि, बंदरों के आतंक के चलते लोग अपने घरों में कैद रहते हैं। जीना मुहाल है। बंदरों के आतंक के चलते उन्होंने अपने बेटे को पढ़ाई के लिए कोटा शिफ्ट कर दिया है। वे बताते हैं कि, बंदरों के आतंक से लोग अब भयभीत रहते हैं।
संयुक्त चिकित्सालय के चिकित्सा अधिकारी डॉक्टर पीयूष चौबे ने बताया कि, हर दिन अस्पताल में सौ लोग बंदर व कुत्ते के काटने से घायल होकर इलाज के लिए पहुंचते हैं। कुछ लोग तो बुरी तरह जख्मी होते हैं। जिनके घावों पर टांके लगाना पड़ता है। जबकि डॉग या मंकी बाइट में टांके लगाना वर्जित है। लेकिन खून के बहाव को रोकने के लिए ऐसा करना पड़ता है। अनुमान के अनुसार हर दिन 50 लोग बंदरों के हमले में घायल होकर यहां आते हैं।
वन विभाग के पाले में गेंद
डीएम द्वारा विगत दिनों निगम अधिकारियों से जब पूछा गया तो संयुक्त नगर आयुक्त ने बताया कि निगम द्वारा टेंडर प्रक्रिया प्रारंभ की गई थी परंतु टेंडर से पूर्व निगम द्वारा वन विभाग से एनओसी मांगी गई, वन विभाग के अधिकारियों ने एनओसी नहीं दी जिसके चलते नगर निगम की बंदर पकड़ने की प्रक्रिया आगे नहीं बढ़ पा रही है। संयुक्त नगर आयुक्त ने बताया कि निगम बंदरों को पकड़कर कहां छोड़ा जाएगा इसका निर्णय वन विभाग द्वारा किया जाना है।