आतंकवाद, जंग से ज्यादा इस वजह से जा रही है जवानों की जान...

 |  First Published Jul 15, 2018, 6:22 PM IST

जीवनशैली से संबंधित रोगों के चलते कड़े सैन्य अभ्यास के साथ तालमेल बिठाने में हो रही दिक्कतों के चलते सेना बड़ी संख्या में जवानों को खो रही है। सड़क हादसों में भी काफी जवान जान गंवा रहे हैं। 'माय नेशन' की एक्सक्लूसिव रिपोर्ट।

हर साल सेना के 1500 जवान सड़क हादसों और जीवनशैली से संबंधित रोगों के चलते जान गंवा देते हैं। आतंकवाद रोधी ऑपरेशन, पाकिस्तान के साथ नियंत्रण रेखा पर हताहत होने वाले जवानों की संख्या इस आंकड़े का 15 प्रतिशत भी नहीं है। 

हाल ही में जवानों को संबोधित करते हुए सेना प्रमुख जनरल बिपिन रावत ने कहा था कि 'हम हर साल दो बटालियनें गैर शारीरिक गतिविधियों के चलते खो रहे हैं। हमें इसे दुरुस्त करना होगा।' 

सूत्रों ने 'माय नेशन' को बताया कि बड़ी संख्या में जवान सड़क हादसों और जीवनशैली से जुड़े रोगों की वजह से जान गंवा रहे हैं। वे सेना के कड़े शारीरिक अभ्यास से तालमेल नहीं बिठा पा रहे हैं। 

जहां तक सड़क हादसों की बात है, सेना के शीर्ष सूत्रों के अनुसार, देश के उत्तरी हिस्सों में ऐसी घटनाएं ज्यादा हुई हैं। यहां जवान छुट्टी के दौरान मोटरसाइकिल चलाते समय दुर्घटनाओं के शिकार हुए हैं। आमतौर पर सीमाई क्षेत्रों और कम ट्रैफिक वाले इलाकों में ज्यादा समय रहने के कारण उन्हें हाईवे पर मोटरसाइकिल चलाने का अभ्यास नहीं होता। ऐसे में वे हाईवे पर ट्रक और तेजी से चलने वाले वाहनों से टकराकर जान गंवा देते हैं। 

सूत्रों ने बताया कि जवानों को मोटरसाइकिल और दूसरे वाहन चलाते समय होने वाले हादसों से बचाने के लिए संवेदनशील बनाए जाने की जरूरत है। 

सूत्रों के अनुसार, जीवनशैली से जुड़े रोगों ने भी कड़े प्रशिक्षण के दौरान कई युवाओं की जान ली है। उन्होंने अभ्यास के दौरान दिल का दौरा पड़ने से जान गंवा दी। इसके अलावा, मधुमेह, धूम्रपान और तनाव भी जवानों की मौत का कारण बन रहे हैं। 

सूत्रों के अनुसार, हाल के दिनों में देश भर में ब्रिगेडियर और कर्नल स्तर के कई अधिकारियों की मौत के मामले भी सामने आए हैं। इन सभी की मौत की वजह बहुत अधिक मात्रा में धूम्रपान करना रहा है। 

अधिकारियों के मुताबिक, जीवनशैली से जुड़ी दिक्कतों से होने वाली मौतों को कम करने के लिए सेना की ओर से कई कदम उठाए गऐ हैं। सभी को फिट रखने पर खासा जोर दिया जा रहा है। (अजीत दुबे की रिपोर्ट)

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