उत्तर प्रदेश में सामाजिक बदलाव की नई इबारत लिखी जा रही है। यहां धर्मों के बंधन को तोड़कर रिजवाना की शादी शाहजहांपुर के राजकुमार से, नूरी का विवाह अलीगढ़ के बबलू से, सीमा का गठबंधन उमेश कुमार दीक्षित और सबा की शादी हरदोई के विजय सिंह के साथ संपन्न हो गई।
धर्मों का बंधन किसी के जीवन की खुशियां नहीं छीन सकता है। यह बात लखनऊ में हुए एक आयोजन में साबित हो गई। यहां एक सामूहिक विवाह समारोह में बिना मां बाप की 31 बालिग लड़कियों की शादी कराई गई।
यह आयोजन लखनऊ में महानगर के कल्याण भवन में हुआ। जिसका आयोजनकर्ता था उत्तर प्रदेश का समाज कल्याण और महिला कल्याण विभाग।
इस विवाह समारोह को पूरे विधि-विधान से संपन्न कराया गया। सभी 31 जोड़ों का विवाह स्पेशल मैरेज एक्ट के तहत कराया गया। इसमें से 27 हिंदू लड़कियां थी, जबकि 4 मुस्लिम लड़कियां थी।
इन सभी का विवाह सनातन पद्धति से ही संपन्न हुआ। वैदिक मंत्रों के बीच सबके सात फेरे हुए, मालाएं बदली गईं और सिंदूरदान भी हुआ।
इस विवाह में किसी को कोई आपत्ति नहीं हुई। सभी लड़कियों ने विवाह के पहले अपने दूल्हों से मुलाकात की। इसके बाद पूरी तरह सोच समझ कर विवाह संपन्न कराया गया।
चारो मुस्लिम लड़कियों सहित सभी 31 लड़कियों ने विवाह के पहले अपने संभावित पतियों से मुलाकात की और पूरी तरह सोचने समझने के बाद ही विवाह के लिए हामी भरी।
इसमें से सभी को अपने पतियों की आर्थिक स्थिति और धर्म के बारे में अच्छी तरह मालूम था। जिसके बाद पूरी तरह सोच विचार करके उन्होंने विवाह के लिए हामी भरी।
बिना मां-बाप की इन बच्चियों को 6 से 10 साल की उम्र में इस शेल्टर होम में लाया गया था। इसके बाद जब वह बालिग हो गईं, तो उनके विवाह की प्रक्रिया शुरु की गई। यह सभी लड़कियां जाति धर्म के बंधन से मुक्त हैं।
इसके लिए अखबार में इश्तेहार दिए गए। कई लड़कों ने इनसे विवाह के लिए आवेदन दिए। जिसमें से उचित लड़कों का चुनाव किया गया।
फिर सामूहिक विवाह समारोह में इन सभी की शादी कराई गई।