जहां लोकसभा चुनाव 2014 में प्रधानमंत्री मोदी को सबसे बड़ी ताकत युवाओं से मिली वहीं 2019 के चुनावों में हिंदी भाषी राज्यों में महिला वोटरों का समर्थन मिला है। इसके चलते जहां कृषि क्षेत्र की चुनौतियों के चलते किसान और बेरोजगारी की समस्या के चलते युवा वोटर नाराज रहे वहीं महिला वोटरों ने इस नाराजगी से हुए नुकसान की भरपाई कर दी।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी अपने दूसरे कार्यकाल की शुरुआत करने जा रहे हैं। इसके लिए जहां वह अपनी नई कैबिनेट के गठन की प्रक्रिया को शुरू कर रहे हैं वहीं उनके सामने भारतीय अर्थव्यवस्था की मौजूदा चुनौतियों की पूरी लिस्ट है जिसे ध्यान में रखते हुए नए कैबिनेट का गठन किया जाना है।
जहां लोकसभा चुनाव 2014 में प्रधानमंत्री मोदी को सबसे बड़ी ताकत युवाओं से मिली वहीं 2019 के चुनावों में हिंदी भाषी राज्यों में महिला वोटरों का समर्थन मिला है। इसके चलते जहां कृषि क्षेत्र की चुनौतियों के चलते किसान और बेरोजगारी की समस्या के चलते युवा वोटर नाराज रहे वहीं महिला वोटरों ने इस नाराजगी से हुए नुकसान की भरपाई कर दी।
इसके लिए मोदी सरकार के पहले कार्यकाल के दौरान महिलाओं को ध्यान में रखते हुए केन्द्र सरकार की आधा दर्जन से अधिक योजनाएं शामिल हैं। इनके अलावा, सरकार का तीन तलाक के मुद्दे पर पहल मुस्लिम महिला वोटरों को भी लुभाने में कारगर रहा। लिहाजा इन नतीजों से एक बात साफ है कि अब अपने पांच साल के कार्यकाल के दौरान प्रधानमंत्री मोदी को अपनी आर्थिक नीति को केन्द्र में रखते हुए आगे बढ़ना है जिससे वह 2024 में होने वाले अगले लोकसभा चुनाव में अपने लिए तीसरी पारी सुनिश्चित कर सकें.
आर्थिक स्थिति को मजबूत करने के लिए कुछ खास मुद्दों को देखें तो अगले पांच साल के दौरान मोदी सरकार को शहरों में युवाओं के लिए रोजगार के साथ-साथ ग्रामीण इलाकों में युवाओं के लिए रोजगार, किसानों की आमदनी को बढ़ाना और लघु और मध्यम श्रेणी के कारोबार को मजबूत करने की चुनौती है। इन सभी काम को करने के लिए केन्द्र सरकार को वित्तीय कोष की दरकार है जिसे वह या तो टैक्स बढ़ाकर अथवा निजी और विदेशी निवेश लाकर सकता है।
चूंकि देश में सरकार की विवेचना में मध्यम वर्ग का अहम योगदान रहता है लिहाजा टैक्स बढ़ाने का विकल्प केन्द्र सरकार के पास सीमित है। ऐसे में वह कुछ खास काम जो मोदी सरकार अगले पांच साल तक कर सकती है जिससे वह 2024 में होने वाले चुनावों में किसी की नाराजगी के चलते नुकसान न उठाए-
1. लघु और मध्यम वर्ग की कंपनियों को बढ़ावा: रोजगार सृजन में लघु और मध्यम कंपनियों का खास महत्व है। इनका विकास करने के लिए सरकार को अहम कदम उठाने की जरूरत है। केन्द्र सरकार के लिए बेहद जरूरी है कि आने वाले दिनों में राष्ट्रीय खपत में सुधार लाए जिससे नए रोजगार पैदा होने के साथ-साथ सरकार के राजस्व में इजाफा हो। लिहाजा अगले पांच साल तक केन्द्र सरकार को ग्रामीण को छोटे शहरों को इंफ्रा और स्किल डेवलपमेंट के केन्द्र में रखने की जरूरत है। इन क्षेत्रों में लघु और मध्यम कंपनियां स्थित हैं और रोजगार का सीधा फायदा पहुंचाती हैं।
2. केन्द्र सरकार को अपने प्रशासनिक ढांचे के निचले स्तर पर भ्रष्टाचार के सभी रास्तों को बंद करने के लिए कानून में व्यापक फेरबदल करने की जरूरत है। इस प्रशासनिक सुधारों से लघु और मध्यम कंपनियों का सीधा फायदा पहुंचेगा और घरेलू निवेश के क्षेत्र में ईज ऑफ डूईंग बिजनेस का फायदा मिलेगा। वहीं भ्रष्टाचार के रास्तों को बंद करने से छोटे शहरों में स्टार्टअप के लिए माहौल में बड़ा सुधार होगा और रोजगार में इजाफा आसानी से किया जा सकेगा।
3. कृषि मार्केट में सुधार सरकार की सबसे बड़ी चुनौती है। मोदी सरकार को दूसरी बार सत्ता की चाभी मिलने पर कवायद करनी होगी कि कृषि बाजार को राज्य सरकारों के दबाव और राजनीति से बाहर निकाले। दरअसल, कृषि बाजार मौजूदा समय में पूरी तरह राज्य की राजनीति और क्षेत्रीय ट्रेडरों के कार्टलाइजेशन पर चलती हैं। इसके चलते जहां सरकार को राजस्व का नुकसान होता है वहीं किसान को उसकी मेहनत का पूरा फल नहीं मिलता. लिहाजा, इस कार्यकाल में प्रधानमंत्री मोदी को सख्ती अथवा संविधान संशोधन के जरिए कृषि बाजार को मजबूत करने की कवायद करने की जरूरत है।
4. केन्द्र सरकार को पांच साल के दौरान गैर-मेट्रो शहरों में फैक्ट्री और सर्विस सेक्टर की कंपनियों में निवेश करने की जरूरत है। इस कवायद से बड़ो शहरों से भार कम होगा और लोगों को छोटे शहरों और ग्रामीण इलाकों से पलायन करने से रोका जा सकेगा। लिहाजा, यह कदम संतुलित विकास के लिए बेहद जरूरी है।
5. सामाजिक सुरक्षा का ढांचा खड़ा करने के लिए केन्द्र सरकार को बड़े निवेश का रास्ता साफ करने की जरूरत है। इसके लिए बड़े घरेलू निवेश की जरूरत है जिससे हेल्थकेयर, एजुकेशन जैसे उपक्रम मजबूत हों और ग्रामीण इलाकों और नैशनल हाईवे के इर्दगिर्द इन सुविधाओं को स्थापित करने के लिए कॉरपोरेट सोशल फंडिग का रास्ता लिया जा सकता है।