नेहरू और इंदिरा हुए फेल, क्या मोदी के लिए खुलेगा इस क्लब का दरवाजा?

By Rahul Misra  |  First Published May 23, 2019, 11:35 AM IST

यह काम अभी भी अधूरा है लेकिन राजनीतिक जानकारों का मानना है कि बीते पांच साल के दौरान भारत ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर एक सशक्त देश होने की छवि पर गंभीरता से काम किया है और अब संयुक्त राष्ट्र को कारगर बनाने के लिए बेहद जरूरी है कि सुरक्षा परिषद का विस्तार करने हुए भारत को स्थायी जगह दी जाए।

सत्रहवीं लोकसभा चुनाव के नतीजे आना शुरू हो चुके हैं। शुरुआती रुझानों में केन्द्र में सत्तारूढ़ एनडीए गठबंधन की नरेन्द्र मोदी सरकार एक बार फिर सत्ता की तरफ मजबूती से बढ़ रही है। अपने पांच साल के कार्यकाल के दौरान नरेन्द्र मोदी सरकार ने भारतीय जनता पार्टी के एजेंडे पर काम करते हुए भारत को सुरक्षा परिषद का स्थाई सदस्य बनाने की दिशा में बड़ा योगदान किया है।
 
हालांकि यह काम अभी भी अधूरा है लेकिन राजनीतिक जानकारों का मानना है कि बीते पांच साल के दौरान भारत ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर एक सशक्त देश होने की छवि पर गंभीरता से काम किया है और अब संयुक्त राष्ट्र को कारगर बनाने के लिए बेहद जरूरी है कि सुरक्षा परिषद का विस्तार करने हुए भारत को स्थायी जगह दी जाए।

खासबात है कि बीते पांच साल के दौरान बतौर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने लगभग 100 देशों की यात्रा की और सरकार के इस एजेंडे पर काम किया है। प्रधानमंत्री मोदी ने 25 सितंबर 2015 को संयुक्त राष्ट्र की जनरल एसेंब्ली को संबोधित करते हुए दावा किया है कि संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद का मौजूदा ढांचा 21वीं सदी की चुनौतियों से लड़ने के लिए कारगर नहीं है। लिहाजा, अंतरराष्ट्रीय हित में इस संस्था को अधिक प्रभावी बनाने के लिए इसका विस्तार करने और सुरक्षा परिषद में भारत को जगह देने की दलील दी।

क्या मोदी ने क्रैक कर लिया है कोड

खासबात है कि सुरक्षा परिषद में चार सदस्य अमेरिका, रूस, फ्रांस और यूनाइटेड किंगडम ने भारत को स्थायी सदस्यता देने पर अपनी रजामंदी दी है लेकिन संयुक्त राष्ट्र में भारत का लगातार विरोध करने वाला चीन इस विस्तार के विरोध में है। वहीं मोदी सरकार के कार्यकाल के दौरान चीन में राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने आधिकारिक बयान जारी कर भारत को सुरक्षा परिषद में शामिल किए जानें का समर्थन करने का दावा किया है। 

हालांकि चीन के इस बयान के बावजूद भारतीय विदेश मंत्रालय का मानना है कि चीन के साथ कूटनीतिक स्तर पर और काम किए जाने की जरूरत है। हाल में जिस तरह भारत ने चीन के राष्ट्रपति शी जिंनपिंग की उनके कार्यकाल की सबसे महत्वाकांक्षी परियोजना वन बेल्ट बन रोड पर आपत्ति खड़ी करते हुए चीन को साफ संकेत दिया है कि बिना के मौजूदगी के उसकी यह परियोजना कभी सफल नहीं हो सकती है। 

वैश्विक मामलों के जानकारों का दावा है कि इस संकेत से यह भी साफ है कि आजादी के बाद से  अभी तक यह पहला मौका है जब भारत संयुक्त राष्ट्र में स्थायी सदस्यता के इतने करीब है। वहीं अमेरिका और चीन के बीच जारी ट्रेड वॉर के बीच भारत के लिए अब और आसान है कि वह इस मुद्दे पर चीन की सहमति लेने का दबाव बना सके।

क्लब के गेट पर खड़ा भारत

गौरतलब है कि 1947 में संयुक्त राष्ट्र का सदस्य बनने वाला आजाद भारत 1950 में पहली बार सुरक्षा परिषद का अस्थायी सदस्य बना। इसके बाद बीते 7 दशकों के दौरान भारत कुल 7 बार सुरक्षा परिषद में शामिल हो चुका है. 

संयुक्त राष्ट्र की सुरक्षा परिषद में अमेरिका, रूस, फ्रांस, चीन और यूनाइटेड किंगडम शामिल हैं। वैश्विक व्यवस्था में इन देशों को पी-5 (Permanent Five) की संज्ञा दी गई है। भारत ने भी इस एलीट क्लब में शामिल होने की लंबी कवायद की है अब देखना ये है कि केन्द्र में चुन कर आने वाली नई सरकार क्या इस कवायद में देश का परचन लहराने में सफल होगी।

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