यूपी में एनडीए के बड़े कुनबे से भाजपा की मुश्किलें बढ़ी, सीट बंटवारे को लेकर सहयोगियों की उम्मीद बरकरार

By Team MyNation  |  First Published Apr 3, 2019, 11:05 AM IST

उत्तर प्रदेश में भाजपा की अगुवाई वाले एनडीए का कुनबा बढ़ गया है। लेकिन सीटों के बंटवारे पर अभी भी असमंजस बरकरार है। सहयोगी दलों अपने खाते की सीटों के लिए इंतजार करना पड़ रहा है, वहीं भाजपा के साथ राज्य में आए नये दल भी सीटों की उम्मीद लगाए हुए हैं। 

उत्तर प्रदेश में भाजपा की अगुवाई वाले एनडीए का कुनबा बढ़ गया है। लेकिन सीटों के बंटवारे पर अभी भी असमंजस बरकरार है। सहयोगी दलों अपने खाते की सीटों के लिए इंतजार करना पड़ रहा है, वहीं भाजपा के साथ राज्य में आए नये दल भी सीटों की उम्मीद लगाए हुए हैं। अभी तक राज्य में भाजपा ने 63 प्रत्याशियों की घोषणा कर दी है।

राज्य की 80 लोकसभा सीटों में भाजपा ने 63 सीटों पर प्रत्याशी घोषित कर दिये हैं और अभी 17 सीटों पर प्रत्याशियों की घोषणा होनी है। जिसके कारण सहयोगी दलों को उम्मीद है कि 17 सीटों में कुछ सीटें उनके खातों में भी जाएगी। हाल ही में निषाद पार्टी ने उत्तर प्रदेश में भाजपा के साथ मिलकर चुनाव लड़ने के फैसला किया है। अब सभी सहयोगी दलों को बेशब्री से इंतजार कर रहे हैं। लेकिन पार्टी ने प्रत्याशियों के नामों की घोषणा नहीं की है जबकि कई सीटों पर चौथे चरण की नामांकन प्रक्रिया भी शुरु हो चुकी। इनमें हाई प्रोफाइल सीट झांसी, गोरखपुर व डिप्टी सीएम केशव मौर्य की फूलपुर सीट है।

वहीं अभी तक संतकबीरनगर, देवरिया व जौनपुर सीट पर भी प्रत्याशियों की घोषणा नहीं हुई है। पार्टी ने 2014 के लोकसभा चुनाव में अपना दल (स) को ही दो सीटें मिर्जापुर व प्रतापगढ़ को समझौते में दिया था। बाकी 78 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे औरा इनमें सहयोगी दल की दोनों सीटों को मिलाकर भाजपा 73 सीटें जीती थी।  हाल ही में एनडीए का हिस्सा बने निषाद पार्टी व एकलव्य समाज पार्टी सीटों के लिए उम्मीद लगाए हुए है। जबकि ओपी राजभर की पार्टी सुभासपा को अभी भागीदारी का इंतजार है।

गोरखपुर उपचुनाव में निषाद पार्टी सपा-बसपा गठबंधन का हिस्सा थी और सपा के टिकट पर प्रवीण निषाद को टिकट मिला था और वह जीतने में कामयाब भी रहे। लेकिन इस बार सपा ने उनका टिकट काट दिया है। निषाद पार्टी के डा. संजय निषाद ने सीट शेयरिंग में धोखा का आरोप लगाकर भाजपा के पाले में आ चुके हैं। वहीं भाजपा की पुरानी सहयोगी अपना दल (एस) भी अपनी दूसरी सीट के इंतजार में है।

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