ये हैं राजनीतिक दलों के मजबूत गढ़, विपक्ष ने भी कसी कमर

By Team MyNation  |  First Published Mar 28, 2019, 5:01 PM IST

मौजूदा चुनाव में कई राजनीतिक दलों के गढ़ हैं जहां विपक्षी दल दांव लगा रहे हैं और उम्मीद की जा रही है कि इन चुनावों में एक रोचक मुकाबला देखने को मिलेगा।

लोकसभा चुनाव 2019 का बिगुल बज चुका है। इस बार चुनाव बेहद दिलचस्प होने की उम्मीद है। जहां राष्ट्रीय स्तर पर मुकाबले में दोनों राष्ट्रीय पार्टियां बीजेपी और कांग्रेस बड़ी जीत का दावा कर रही है वहीं 2014 के चुनाव नतीजों के साथ मौजूदा चुनाव की तैयारी को देखते हुए लगता है कि आगामी चुनाव इसलिए भी दिलचस्प है क्योंकि राजनीतिक दल इस बार एक—दूसरे के गढ़ में घुसकर टक्कर देने की तैयारी में हैं।

हालांकि विपक्षी दल के गढ़ में घुसने का ट्रेलर 2014 के लोकसभा चुनाव में दिखा था जहां बीजेपी ने उत्तर प्रदेश में कांग्रेस के गढ़ में घुसकर अमेठी से मौजूदा कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी के खिलाफ अपनी फायर ब्रांड नेता स्मृति ईरानी को मैदान में उतारा था। हालांकि स्मृति ईरानी राहुल गांधी से चुनाव में हार गईं लेकिन अमेठी में 2014 के चुनाव का आंकड़ा साफ दिखा रहा है कि राहुल गांधी अपने गढ़ में हार से बाल-बाल बचे।

मौजूदा चुनाव में भी कई राजनीतिक दलों के गढ़ हैं जहां विपक्षी दल दांव लगा रहे हैं और उम्मीद की जा रही है कि इन चुनावों में एक रोचक मुकाबला देखने को मिलेगा।

नागपुर में फिर यू-टर्न?

नागपुर हमेशा से आरएसएस का गढ़ रहा है। हालांकि चुनावी राजनीति में इसे कांग्रेस का गढ़ कहा गया। लेकिन 2014 के लोकसभा चुनावों में बीजेपी नेता और केन्द्रीय मंत्री नितिन गडकरी ने कांग्रेस उम्मीदवार को पटखनी दी और फिर महाराष्ट्र विधानसभा चुनावों में बीजेपी ने नागपुर की सभी 6 विधानसभा सीटों पर कब्जा कर भगवा फहरा दिया। गौरतलब है कि कांग्रेस के कद्दावर नेता विलास मुक्तेमवार ने कांग्रेस को इस सीट पर लगातार 1998, 1999, 2004 और 2009 में जीत दिलाते हुए इसे कांग्रेस के गढ़ में परिवर्तित कर दिया था।

आगामी चुनावों में कांग्रेस ने इस पूर्व गढ़ में वापसी के लिए कमर कसी है। वहीं अपने बेहतर काम और बेस्ट मिनिस्टर की छवि के साथ नितिन गडकरी को भरोसा है कि आरएसएस और बीजेपी के इस नए किले को कोई छीन नहीं सकता। गडकरी ने दावा किया है कि नागपुर में कांग्रेस कार्यकर्ता शरीर से कांग्रेस प्रचार में हैं लेकिन उनके दिल में बीजेपी राज कर रही है।

कांग्रेस ने गडकरी को गलत साबित करने के लिए यहां के 21 लाख से अधिक मतदाताओं में लगभग 12 लाख दलित, मुस्लिम और कुनबी मतदाताओं को देखते हुए नाना पटोले को मैदान में उतारा है। नाना पटोले कुनबी नेता होने के साथ-साथ नागपुर को किसी दल के किले में बदलने के अहम खिलाड़ी हैं। लिहाजा, अब चुनाव नतीजों में पता चलेगा की नागपुर का गढ़ आगामी चुनावों में किस पार्टी के नाम लिखा जाएगा।

अमेठी में 50-50?

अमेठी लोकसभा सीट कांग्रेस पार्टी का सबसे मजबूत गढ़ है। इसका अंदाजा इसी बात से लगता है कि यहां हुए 18 लोकसभा चुनावों में 16 बार कांग्रेस प्रत्याशी की जीत हुई है। वहीं पिछले लोकसभा चुनाव 2014 में जब उत्तर प्रदेश की 80 सीटों पर मोदी लहर का जादू चला तब भी कांग्रेस पार्टी के लिए राहुल गांधी इस किले को बचाने में सफल हुए। बीजेपी ने अपनी फायरब्रांड नेता स्मृति ईरानी को राहुल के खिलाफ मैदान में उतारा था।

बहरहाल, 2014 की जीत के बावजूद कांग्रेस पार्टी के लिए अमेठी सबसे बड़ा सिरदर्द बन गया है। दरअसल, 2014 के चुनावों में राहुल गांधी को 4 लाख वोट मिले थे और दूसरे नंबर पर आईं स्मृति ईरानी को 3 लाख वोट मिला था। राहुल इस चुनाव को महज 1 लाख वोट से जीत सके जबकि इससे पूर्व के चुनावों में राहुल गांधी 3।5 लाख से अधिक वोटों के अंतर से जीत चुके हैं।

इसके अलावा अमेठी का कांग्रेसी किला इसलिए भी खतरे में है क्योंकि 2014 लोकसभा चुनावों के बाद 2017 में हुए विधानसभा चुनावों में कांग्रेस पार्टी अमेठी की पांच विधानसभा सीटों में एक भी जीतने में सफल नहीं हुई। पांच में से चार सीटें बीजेपी और एक सीट पर सपा को जीत मिली थी।

गांधीनगर में सस्पेंस?

इंदिरा गांधी के कार्यकाल में गांधीनगर लोकसभा सीट पर लगातार दो बार 1980 और 1984 में कांग्रेस को जीत दिला कर कांग्रेस अपना गढ़ बनाने के बेहद करीब थी। लेकिन 1989 में हुए चुनाव से शुरू कर 2014 के चुनावों तक बीजेपी ने इसे देश की अपनी सबसे सुरक्षित सीट में बदल लिया।

बीजेपी के लिए इस सीट पर पहली बार भगवा परचम फहराने का काम शंकर सिंह वाघेला ने किया। इसके बाद बीजेपी के कद्दावर नेता लाल कृष्ण आडवाणी ने 1991 में अपनी किस्मत आजमाई और और भगवा फहराने का काम किया। गांधीनगर इस जीत के बाद बीजेपी के गढ़ में तब्दील हो गया क्योंकि इमरजेंसी के दिनों में कांग्रेस का यहां जमकर विरोध हुआ था।

बीजेपी के इस गढ़ से बीजेपी के कद्दावर नेता और पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी चुनाव जीते। जिसके बाद 1998 से लेकर 2014 तक लगातार पांच चुनाव जीतकर लाल कृष्ण आडवाणी ने रिकॉर्ड कायम किया।

आगामी चुनावों में बीजेपी ने वरिष्ठ नेता लाल कृष्ण आडवाणी का टिकट काटते हुए पार्टी अध्यक्ष अमित शाह पर दांव खेला है। इस सीट से बीजेपी की जीत का रिकॉर्ड देखते हुए कोई भी यहां अमित शाह को एक बार फिर भगवा लहराते देख सकता है। हालांकि, कांग्रेस ने आडवाणी से शाह को टिकट जानें के मौके को भुनाने के लिए पूर्व बीजेपी नेता और गांधीनगर से बीजेपी के लिए पहली जीत दर्ज करने वाले कांग्रेस नेता शंकर सिंह वाघेला पर दांव खेलने की रणनीति पर काम कर रही है। अब 23 मई का नतीजा बताएगा कि क्या सत्तारूढ़ बीजेपी अपने इस सबसे ताकतवर गढ़ पर एक बार फिर भगवा लहराने में सफल हुई?

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