सीएए का विरोध: जानिए कितने करीब पास और कितने दूर हैं विपक्षी दल

संशोधित नागरिकता कानून के विरोध को लेकर पिछले दिनों विपक्षी दलों ने बैठक बुलाई थी। इस बैठक की अगुवाई कांग्रेस से की थी। लिहाजा कई राजनैतिक दलों ने इन बैठक से दूरी बनाकर रखी थी, जबकि वह नागरिकता संसोधन कानून को लेकर इसका विरोध संसद से लेकर सड़क तक कर रह हैं। इस कानून का पश्चिम बंगाल में व्यापक तौर से विरोध रहा है और वहां की मुख्यमंत्री और तृणमूल कांग्रेस की अध्यक्ष ममता बनर्जी ने इस बैठक में हिस्सा ही नहीं लिया। 

Opposition to CAA: know how close and how far the opposition parties are Opposition

नई दिल्ली। नागरिकता संसोधन कानून को लेकर विरोध कर रहे राजनैतिक दल अब अपनी रणनीति को बदलने को मजबूत हुए हैं। इन दलों को लग रहा है कि कि कहीं इसका विरोध करते हुए उन्हें राजनैतिक तौर से नुकसान न हो जाए। हालांकि विपक्षी दल एक कानून का विरोध करते तो दिख रहे हैं। लेकिन एक मंच पर आने से कतरा रहे हैं। क्योंकि कई राज्यों में चुनाव है, जिसके कारण इस कानून का समर्थन करने वालों के कारण उन्हें चुनावों में नुकसान हो सकता है।

Opposition to CAA: know how close and how far the opposition parties are Opposition

संशोधित नागरिकता कानून के विरोध को लेकर पिछले दिनों विपक्षी दलों ने बैठक बुलाई थी। इस बैठक की अगुवाई कांग्रेस से की थी। लिहाजा कई राजनैतिक दलों ने इन बैठक से दूरी बनाकर रखी थी, जबकि वह नागरिकता संसोधन कानून को लेकर इसका विरोध संसद से लेकर सड़क तक कर रह हैं। इस कानून का पश्चिम बंगाल में व्यापक तौर से विरोध रहा है और वहां की मुख्यमंत्री और तृणमूल कांग्रेस की अध्यक्ष ममता बनर्जी ने इस बैठक में हिस्सा ही नहीं लिया।

असल में ममता ने इस बैठक से दूरी बनाकर रखी थी। क्योंकि अगले साल राज्य में विधानसभा चुनाव होने हैं और ऐसे में अगर कांग्रेस किसी भी तरह का इस कानून को लेकर श्रेय लेती है तो इसका सीधा नुकसान ममता की पार्टी को विधानसभा चुनाव में होगा। हालांकि अभी तक कांग्रेस और वाम दलों ने राज्य में ममता सरकार के खिलाफ चुनाव लड़ने का फैसला किया है। ऐसे में ममता इस बैठक से दूर रही। वहीं बहुजन समाज पार्टी ने भी विपक्ष की इस बैठक से दूरी बनाकर रखी। इसके साथ ही  महाराष्ट्र में कांग्रेस की सहयोगी शिवसेना, दिल्ली की सत्ताधारी आप, और डीएमके ने दूरी बनाई। जिसका मततब साफ है कि विपक्ष दल अभी तक इस मुद्दे के विरोध को लेकर एक मंच पर  नहीं आ सके हैं।

दिल्ली में आम आदमी पार्टी और कांग्रेस एक दूसरे के खिलाफ चुनाव लड़ रही है तो पश्चिम बंगाल में वाम दल ममता के घोर विरोधी हैं और कांग्रेस भी वामदल दलों के साथ है। इसके साथ ही यूपी में सपा, बसपा व कांग्रेस एक दूसरे के प्रतिद्वंद्वी हैं। वहीं महाराष्ट्र में शिवसेना, एनसीपी और कांग्रेस के साथ सरकार तो चला रही है। लेकिन अब शिवसेना को लग रहा है कि उसकी साख राज्य में खत्म हो रही है। क्योंकि जिस कट्टर हिंदुत्व के लिए शिवसेना पहचानी जाती थी उसको लेकर अब लोगों में सवाल उठने लगे हैं। फिलहाल कमजोर विपक्ष का फायदा भाजपा को मिल रहा है।
 

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