भारत के गैर जिम्मेवार और नासमझ नेता भले पाकिस्तान विरोधी कार्रवाई का उपहास उड़ा रहे हों, लेकिन इसका गहरा असर पाकिस्तान एवं दुनिया पर हुआ है। पाकिस्तान ने जिस तेजी से भारत द्वारा चिन्हित संगठनों और व्यक्तियों के खिलाफ कार्रवाई की है, वे इस बात के प्रमाण हैं कि वह वायुसेना की कार्रवाई तथा कूटनीति के दबाव में आ गया है। पढ़िए वरिष्ठ पत्रकार अवधेश कुमार का तथ्यपूर्ण विश्लेषण-
पाकिस्तान से मिली आखिरी जानकारी के मुताबिक पंजाब प्रांत सरकार ने 7 मार्च को प्रतिबंधित संगठन जमात-उद-दावा (जेयूडी) और फलाह-ए-इंसानियत (एफआईएफ) के मुख्यालय के साथ लाहौर स्थित जेयूडी के मस्जिदों और मदरसों को अपने अधिकार में ले लिया है।
यह सामान्य कदम नहीं है। भारत के लोगों ने इन संगठनों के संचालक और भारत के लिए आतंकवाद के दो प्रमुख दुश्मनों में से एक हाफिज सईद का ऐसा दयनीय चेहरा पहली बार देखा और थरथराती आवाज भी पहली बार सुनी।
वैसे संयुक्त राष्ट्र द्वारा हाफिज सईद को प्रतिबंधित आतंकवादियों की सूची से निकालने की याचिका खारिज करने के बाद पाकिस्तान को कुछ न कुछ करना ही था। 5 मार्च को पाकिस्तान ने जमात-उद-दावा और फलाह-ए-इंसानियत फाउंडेशन को औपचारिक रूप से प्रतिबंधित सूची में डाला था। जिसके बाद इन प्रतिबंधित संगठनों की संपत्ति को कब्जे में लेने की प्रकिया आरंभ हुई। इसके साथ जैश-ए-मोहम्मद के 44 सदस्यों को हिरासत में ले लिया गया है, जिनमें मसूद अजहर का भाई और बेटा शामिल है।
ध्यान रखिए, पाकिस्तान के राष्ट्रीय आतंकवाद निरोधक प्राधिकरण (एनएसीटीए) की सूची को पाकिस्तान ने संशोधित किया है। इसके अनुसार अनुसार जमात और एफआईएफ, आतंकवाद निरोधक कानून, 1997 के तहत गृह मंत्रालय द्वारा प्रतिबंधित 70 संगठनों में शामिल हो गया है।
पाकिस्तान में आतंकवाद विरोधी अभियान के लिए राष्ट्रीय कार्य योजना (एनएपी) बना हुआ है। किंतु इनके खिलाफ कार्रवाई नहीं हो रही थी। सरकार का बयान है कि इनके खिलाफ एनएपी के तहत कानून लागू करने वाली एजेंसियों द्वारा मुहिम चलाई गई है।
पाकिस्तानी मीडिया की खबरों से पता चलता है कि पंजाब प्रांत के अतिरिक्त मुख्य सचिव की वीडियो लिंक के जरिये आयुक्तों एवं संभागीय पुलिस प्रमुखों के साथ हुई बैठक के बाद चकवाल और अटक जिलों में इन संगठनों के खिलाफ बड़ी कार्रवाई की गयी। बैठक में संबंधित अधिकारियों को उनकी संपत्ति को अपने कब्जे में लेने का आदेश दिया गया था।
6 मार्च को ही जमात-उद-दावा के रावलपिंडी स्थित अस्पताल और मदरसे को सीज कर दिया गया। पाक मीडिया के अनुसार रावलपिंडी के चकराह और आदियाला रोड पर स्थित जमात-उद-दावा के मदरसे, अस्पताल और दो डिस्पेंसरियों को सीज किया गया।
कुल मिलाकर अभी तक सभी संगठनों के 175 से ज्यादा मदरसों, मस्जिदों, कार्यालयों आदि को जब्त किया गया है, 100 के ज्यादा हिरासत में हैं।
पाकिस्तान में आंतरिक मंत्रालय आतंकवादी संगठनों को प्रतिबंधित करता है। 4 मार्च तक एनसीटीए की वेबसाइट पर इन संगठनों को निगरानी संगठनों की सूची में रखा गया था। इसके बाद इन्हें प्रतिबंधित संगठनों की सूची में डाला गया।
पाकिस्तान सरकार के राष्ट्रीय आतंकवाद रोधी प्राधिकरण (एनसीटीए) की वेबसाइट के मुताबिक, जेयूडी और एफआईएफ संगठन आतंकवाद रोधी अधिनियम 1997 की दूसरी अनुसूची की धारा 11-डी-(1) के तहत गृह मंत्रालय की निगरानी में हैं। यह वेबसाइट 4 मार्च को ही अपडेट हुई थी। एनसीटीए की वेबसाइट में लिखा था कि जेयूडी और एफआईएफ को निगरानी में रखने वाले संगठनों की सूची में डालने की अधिसूचना 21 फरवरी को जारी की गई है।
पाक विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता मोहम्मद फैसल ने कहा था कि अब प्रतिबंधित संगठनों की सारी संपत्ति पर सरकार का नियंत्रण होगा। इसमें उनकी चंदा जुटाने की प्रक्रिया और एम्बुलेंस सेवा भी शामिल है। किंतु उसमें निगरानी में रहने वाले संगठनों के बारे में कुछ नहीं कहा गया था। तो यह बदलाव हवाई बमबमारी के बाद हुआ। जाहिर है, यह बदलाव पाकिस्तान की मजबूरी है।
14 फरबरी को पुलवामा हमलेे के बाद भारत के तेवर को देखते हुए पाकिस्तान ने 21 फरवरी को कई संगठनों के खिलाफ कार्रवाई की घोषणा की थी। इसके बाद 4 मार्च को पाकिस्तान सरकार ने कहा कि संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (यूएनएससी) की ओर से प्रतिबंधित संगठनों की संपत्ति जब्त करने का आदेश जारी कर दिया गया है।
संयुक्त राष्ट्र के प्रतिबंधों के दायरे में आने वाले लोगों और संगठनों पर कार्रवाई के लिए एक कानून में संशोधन भी किया था। पाकिस्तान की तरफ से बताया गया था कि 1948 के सुरक्षा परिषद कानून में बदलाव किया गया है। विदेश मंत्रालय के तरफ से बताया गया कि कानून में बदलाव करके जल्द ही आतंकवादियों और उनके संगठनों की संपत्ति जब्त की जाएगी। बयान में कहा गया कि ‘‘संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (धन-संपत्ति पर रोक और जब्ती) आदेश 2019’ को पाकिस्तान के संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद अधिनियम 1948 के प्रावधानों के अनुसार जारी किया गया है।
विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने इसे स्पष्ट करते हुए कहा कि इसका मतलब है कि सरकार ने देश में चल रहे सभी अवैध संगठनों पर नियंत्रण कर लिया है। अब से सभी (प्रतिबंधित) संगठनों की सभी प्रकार की संपत्ति सरकार के नियंत्रण में रहेगी। इसका उद्देश्य आतंकवादी घोषित व्यक्तियों और संगठनों के खिलाफ सुरक्षा परिषद प्रतिबंधों को लागू करने की प्रक्रिया सुचारू बनाना है।
जाहिर है, पाकिस्तान को आगे इस तरह की और कार्रवाइयां करनी होगी। जैश के 44 सदस्यों को हिरासत में लेना भी पाकिस्तान के लिए बड़ी खबर है। हालांकि इसके बारे में हमारे पास उतनी ही सूचना है जितनी पाकिस्तान के गृह मंत्री शहरयार खान आफरीदी ने पत्रकारों को दी।
प्रधानमंत्री इमरान खान ने विपक्षी नेताओं के साथ पाकिस्तानी मीडिया के लोगों से मुलाकात कर सहयोग करने का जो अनुरोध किया उसका असर है। मीडिया भी उन्हीं खबरों को चलाता है जो सरकार देती है तथा बहस एवं विश्लेषण भी उसी अनुसार चल रहा है।
आफरीदी का बयान है कि छापामारी के दौरान हिरासत में लिए गए जैश के 44 सदस्यों में अजहर का भाई मुफ्ती अब्दुर रऊफ और बेटा हम्माद अजहर भी शामिल है। यहां भी पाकिस्तान किसी प्रकार के दबाव से इन्कार कर रहा है। उसका कहना है कि सभी प्रतिबंधित संगठनों के खिलाफ कार्रवाई के लिए बनाए गए राष्ट्रीय एक्शन प्लान के तहत यह कदम उठाया गया है।
जैश भी संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के तहत प्रतिबंधित संगठन है। पाकिस्तान में भी इस पर 2002 में ही प्रतिबंध लग गया था।
हां, आफरीदी यह कहना नहीं भूले कि भारत ने जो डोजियर सौंपा है उसको ध्यान में रखते हुए कार्रवाई की गई है। भारत की तरफ से पिछले सप्ताह दिए गए डोजियर में मसूद अजहर के भाइयों मुफ्ती अब्दुर रऊफ और बेटा हम्माद अजहर का नाम भी शामिल था।
यह भारत के साथ दुनिया को संदेश देने की कोशिश है कि हम आतंकवाद के खिलाफ कार्रवाई में पीछे नहीं हट रहे हैं। तो क्या यह मान लिया जाए कि वाकई पाकिस्तान अब रास्ते पर आ गया है और भारत केन्द्रित आतंकवाद के संसाधनिक, वैचारिक एवं मानवीय स्रोतों को ध्वस्त करने लगा है?
यह बात सही है कि 5 मार्च को पाकिस्तान के गृह मंत्रालय ने उच्च स्तरीय बैठक बुलाई जिसमें देश की सभी प्रांतीय सरकारों के प्रतिनिधि शामिल हुए। इसमें प्रतिबंधित संगठनों के खिलाफ कार्रवाई में तेजी लाने का फैसला किया गया। इसका मतलब हुआ कि जो कार्रवाई हो रही है उसमें पाकिस्तान के सभी पक्षों की सहमति है।
इसके पहले इमरान खान ने स्वयं राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद की बैठक बुलाई थी। इसमें नेशनल कमान ऑथोरिटी भी शामिन है। यहां यह समझना आवश्यक है कि पाकिस्तान इस समय अब तक के सबसे भारी दबाव में है।
भारत की हवाई बमबारी के बाद उसके सामने यह साफ हो गया है कि अगर हमने इनके भवनों को नियंत्रण में नहीं लिया तो आगे भी ऐसा होगा। यानी भारत उन सारे आतंकवादी संगठनों के भवनों तथा प्रमुख आतंकवादी चेहरों को निशाना बनाएगा।
भारतीय वायुसेना प्रमुख एअर मार्शल वी. एस.धनोआ ने स्पष्ट कर दिया है कि आतंकवाद के विरुद्ध लड़ाई जारी है। यानी एक हमाई कार्रवाई अंतिम नहीं है। भारत ने बिल्कुल साफ शब्दों कहा है कि आगे यदि आतंकवादी हमला हुआ तो वह कार्रवाई करेगा। आतंकवादी संगठनों के अंदर तो भय पैदा हो ही गया है कि भारत उनको कहीं भी निशाना बना सकता है, पाकिस्तान भी इसी मनोदशा से गुजर रहा है।
इमरान खान और उनके अन्य मंत्री बड़बोलापन जितना दिखाएं, पर उन्हें पता है कि भारत ऐसा करेगा तो उन्हें अवाम की नजर में अपनी इज्जत बचाने के लिए कुछ जवाबी कार्रवाई करनी होगी। उसमें उसे किसी का साथ नहीं मिलेगा और फिर युद्ध का परिणाम उसके लिए ज्यादा विनाशक होगा। पाकिस्तान के अंदर यह भय पैदा होना भारतीय कार्रवाई की ऐतिहासिक सफलता है। पाकिस्तानी सत्ता प्रतिष्ठान का पूरा मनोविज्ञान बदल गया है।
भारत में विपक्ष की नासमझी तथा कुछ पत्रकारों की देशविरोधी टिप्पणियों को छोड़ दें तो भारत ने एक परिपक्व और मजबूत देश का परिचय देते हुए कहीं कोई हल्कापन नहीं दिखाया है। भारत ने सामान्य गतिविधियां करते हुए यह संदेश दिया है कि यह तो उसके लिए छोटी कार्रवाई है। हमारे यहां सब कुछ सामान्य रुप से चल रहा है और आगे भी कार्रवाई से हम पर कोई अंतर नहीं आएगा। इसके साथ भारत ने कूटनीतिक गतिविधियां तेज की हैं।
संयुक्त राष्ट्र संघ सुरक्षा परिषद द्वारा जारी आतंकवादियों और चरमपंथियों की सूची में पाकिस्तान से 139 नाम शामिल हैं। इस सूची में भारत के सर्वाधिक वांछित गैंगस्टर दाऊद इब्राहिम, जैश-ए-मोहम्मद के प्रमुख मसूद अजहर और मुंबई हमले का मुख्य सूत्रधार हाफिज सईद के संगठन लश्कर-ए-तैयबा आदि शामिल हैं। अलकायदा ऐमन अल-जवाहिरी का नाम सूची में सबसे ऊपर है। अनेक संगठन पाकिस्तान की जमीन से अपनी गतिविधियां संचालित कर रहे हैं।
वीटो पावर वाले तीन देश, अमेरिका, ब्रिटेन और फ्रांस ने मसूद अजहर को वैश्विक आतंकवादी घोषित करने का प्रस्ताव सुरक्षा परिषद में पेश किया है। सूचनानुसार रुस भी इस प्रस्ताव से सहमत है।
वस्तुतः सुरक्षा परिषद के 15 में से 14 सदस्य राष्ट्र मसूद अजहर को वैश्विक आतंकवादी घोषित करने के लिए तैयार हैं।
परिषद के दस अस्थायी सदस्य बेल्जियम, कोत दिव्वार आईवरी कोस्ट, डोमेनिकन रिपब्लिक, इक्वेटोरियल गिनी, जर्मनी, इंडोनेशिया, कुवैत, पेरू, पोलेंड और दक्षिण अफ्रीका ने मसूद अजहर को वैश्विक आतंकवादी घोषित करने के प्रस्ताव को समर्थन दे दिया है।
वीटो शक्ति के कारण चीन तीन बार इस प्रस्ताव को गिरा चुका है। 13 मार्च को यह प्रस्ताव सुरक्षा परिषद में रखा जाएगा। चीन अभी खामोश है लेकिन फ्रांस, ब्रिटेन एवं अमेरिका ने कहा है कि यदि चीन वीटो करता है तो वे भी वीटो करेंगे। एक के समानांतर तीन वीटो आने पर यह पारित हो जाएगा। पाकिस्तान को इसका आभास है।
पुलवामा हमले के बाद भारतीय कूटनीति का त्वरित परिणाम पेरिस स्थित फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स के वक्तव्य के रुप मे सामने आया। इस संस्था ने स्पष्ट शब्दों में पाकिस्तान को आतंक के वित्तपोषण पर रोक लगाने की चेतावनी दिया है। दुनिया भर में आतंक के वित्तपोषण को रोकने के लिए काम करने वाली इस संस्था ने पाकिस्तान को ग्रे लिस्ट में बनाए रखा है। इस वित्तीय निगरानी इकाई ने पाकिस्तान में 2017 में जारी 5,548 संदिग्ध लेनदेन रिपोर्ट (एसटीआर) की तुलना में 2018 में 8,707 संदिग्ध लेनदेन रिपोर्ट (एसटीआर) जारी किए हैं।
इस साल जनवरी और फरवरी में लगभग 1,136 एसटीआर जारी किए गए हैं। टास्क फोर्स के अनुसार, अक्टूबर, 2019 तक यदि पाकिस्तान उसकी 27 मांगों पर काम नहीं करता है तो उसे ब्लैकलिस्ट कर दिया जाएगा यानी काली सूची में डाल दिया जाएगा। ऐसा होते ही कोई वैश्विक वित्तीय संस्था उसे कर्ज या सहायता नहीं देगा तथा दूसरे देशों के लिए भी उसके साथ वित्तीय व्यवहार कठिन हो जाएग।
भारत की कोशिश इस दिशा में तेज है। पाकिस्तान के विदेश मंत्री ने अपने कई बयानों में इस बात को स्वीकार किया है कि भारत उसे काली सूची में डलवाने के लिए काम कर रहा है जिससे हमें बचना है।
अभी तक देशों की प्रतिक्रियाओं को देखें तो आतंकवाद पर दुनिया के साठ से ज्यादा देश भारत के साथ हैं। भारत ने पुलवामा हमले के साथ देशों से संपर्क और संवाद का जो अभियान चलाया वह हवाई बमबारी के बाद भी जारी है। अनेक देशों के प्रमुखों और दूतावासों से संवाद कर उनको या तो अपने पक्ष में लाया है या फिर ऐसी स्थिति बनाई है कि वो किसी तरह विरोध में न जाएं।
इस्लामी सम्मेलन संगठन या ओआईसी के 57 मुस्लिम देश, जो पाकिस्तान के मजहबी भाई माने जाते रहे हैं उनमें से भी कोई एक पाकिस्तान के साथ नहीं आया। किसी ने भारतीय वायुसेना द्वारा पाकिस्तान की सीमा का उल्लंघन करने की आलोचना तक नहीं की। इससे पाकिस्तान को अपनी स्थिति का अहसास हो चुका है। अमेरिका ने तो खुलकर कहा है कि भारत ने आत्मरक्षा में कार्रवाई की है। यूरोपीय संघ ने पाकिस्तान को आतंकवाद के खिलाफ कार्रवाई करने के लिए कहा।
चीन पाकिस्तान का सबसे निकट का देश है। विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने दौरा कर चीनी नेताओं के सामने अपना पक्ष रखा। चीन पाकिस्तान से हमदर्दी रखता है लेकिन भारत जैसे बड़े बाजार को खोना तथा आतंकवाद के मामले पर इसके विरुद्ध जाने की गलती वह नहीं करने वाला।
हो सकता है उसने भी पाकिस्तान को अपना मत बता दिया हो। पाकिस्तान की वायुसेना का एफ 16 लेकर नियंत्रण रेखा पार करना भी उसके लिए महंगा पड़ गया है। उसने एफ 16 के प्रयोग से इन्कार किया, जबकि भारत ने सबूत के साथ इसे साबित कर दिया। अमेरिका को भी सबूत दे दिए गए। अब अमेरिका एफ 16 के उपयोग के खिलाफ कार्रवाई कर सकता है।
प्रधानमंत्री इमरान खान का संसद में दिया गया बयान तथा देश के संबोधन में शांति एवं मेल-मिलाप की भाषा थी। 5 मार्च को पाकिस्तान के विदेश मंत्री शाह महमूद कुरैशी ने योजनापूर्वक जिओ टीवी को एक साक्षात्कार दिया। उसमें उन्होंने कहा कि अब वक्त आ गया है कि पाकिस्तान को अपने हितों को लेकर फैसला करना ही होगा। हम वही करेंगे, जो हमारे हित में होगा।
यह पूछे जाने पर कि क्या चीन मसूद अजहर के मुद्दे पर फिर से वीटो करेगा, कुरैशी ने साफ जवाब देने की जगह कहा- हम पाकिस्तान के हितों को लेकर हर पार्टियों के बीच एकराय कायम करने की कोशिश करेंगे। हमारी कुछ वैश्विक प्रतिबद्धताएं हैं। हम जो भी कार्यवाही करेंगे, उससे दुनिया में हमारी छवि को कोई नुकसान नहीं होगा।
इस बयान से ही साफ हो गया था कि पाकिस्तान अपने देश एवं दुनिया को संदेश दे रहा है। देश को संदेश है कि इस समय आतंकवादी संगठनों और इनके सदस्यो पर कार्रवाई देशहित में है। ऐसा नही करेंगे तो हमारा संकट बढ़ जाएगा। दुनिया को संदेश है कि हमसे जो वैध अपेक्षायें हैं उनको पूरा करने की दिशा में काम कर रहे हैं।
इसको संकेत मानें तो पाकिस्तान सुरक्षा परिषद में मसूद अजहर को वैश्विक आतंकी घोषित करने के प्रस्ताव को रोकने की कोशिश नहीं करेगा। हालांकि उसके हाथ में कुछ है भी नहीं। इस बयान का मतलब है कि पाकिस्तान इस समय अपने देश को बचाने के लिए सारी कार्रवाइयां कर रहा है। ध्यान दीजिए आफरीदी ने भी यही कहा कि आतंकवादियों के खिलाफ कार्रवाई किसी भी अंतरराष्ट्रीय दबाव में नहीं, बल्कि देश के हित के लिए है। देशहित शब्द में पाकिस्तान की पूरी स्थिति एवं मनोदशा निहित है।
किंतु इससे भारत को उत्साहित होने की आवश्यकता नहीं है। भारत ने कहा भी है कि आतंकवादियों को हिरासत में लेना दरअसल, उनको सुरक्षा में ले आना है। अगर आफरीदी के पूरे बयान को देखें तो उसमें इनको वाकई आतंकवादी मान लेने या सजा दिलाने को लेकर कोई प्रतिबद्धता नहीं है। उनका बयान है कि अगले दो सप्ताह तक प्रतिबंधित संगठनों के खिलाफ कार्रवाई जारी रहेगी। हिरासत में लिए गए कथित आतंकियों के खिलाफ उपलब्ध सबूतों के आधार पर आगे की कार्रवाई की जाएगी।
समस्या यहीं आ जाती है। सबूतों के आधार पर कार्रवाई होने का मतलब क्या है? सबूत क्या? जो भारत ने डोजियर में दिया है। उसके बारे में एक अधिकारी का बयान आ गया है उसमें एकदम पुख्ता सबूत नहीं हैं।
संयुक्त राष्ट्र में पाकिस्तान की स्थाई प्रतिनिधि मलीहा लोधी ने 6 मार्च को कहा कि भारत ने एक डोजियर भेजा है, जिसे हम देख रहे हैं। अगर इसमें कुछ ठोस मिलता है, तो ही हम कार्रवाई करेंगे। ऐसा कुछ नहीं मिला तो हम कुछ नहीं करेंगे। इसका क्या मतलब है? इससे पहले प्रधानमंत्री इमरान खान ने भी कहा था कि इस हमले की किसी भी तरह की जांच के लिए हम तैयार हैं और अगर कार्रवाई योग्य ठोस सबूत मिलते हैं तो कार्रवाई की जाएगी।
विचित्र तर्क है। सबूत तो आपके यहां हैं। जैश ने पुलवामा हमले की जिम्मेवारी ली, इसके पहले पठानकोट और उड़ी उनने अंजाम दिया, संसद हमले में जैश एवं लश्कर दोनों शामिल थे, मुंबई हमला पूरी तरह लश्कर की कार्रवाई थी। तो सबूत एकत्रित करना आपका काम है। हमारे पास जितनी सूचना है उतनी दे दी। कहने का तात्पर्य यह कि पाकिस्तान फिर न्यायालय में ठहरने योग्य सबूत न होने की आड़ लेगा।
जैश के आतंकवादियों को आतंकवाद रोधी कानूनों के तहत गिरफ्तार नहीं किया गया है। उन्हें जांच के लिए सिर्फ एहतियाती हिरासत में लिया गया है। ऐसी कार्रवाई पाकिस्तान ने दिखावे के लिए पहले भी की है जिसका परिणाम उनके आराम से बाहर आकर आतंकवादी गतिविधियां जारी रखने के रुप में ही आया। मसूद अजहर और हाफिज सईद को ही कई बार नजरबंद किया गया, शांति में खलल डालने से जुड़े कानून के तहत कई बार हिरासत में लिया गया था। इन दोनों को पाकिस्तान के आतंकवाद रोधी कानून, 1997 के तहत कभी अभियुक्त बनाया ही नहीं गया।
वैसा ही इस बार हो रहा है। तो ये सब आगे आराम से रिहा कर दिए जा सकते हैं। जिस तरह उसने निगरानी सूची से निकालकर संगठनों को प्रतिबंधित सूची में डाला वह भी शायद किसी बहाने आगे खत्म कर दिया जाए।
दुनिया भी इसे देख रही है। भारत की कूटनीति उस पर केन्द्रित है और सारे देशों को पाकिस्तान के एक-एक चाल से अवगत कराया जाएगा। लेकिन इस समय बदला हुआ भारत है जो यहीं तक नहीं ठहरने वाला।
पाकिस्तान क्या करता है इससे अब भारत को कोई फर्क नहीं पड़ने वला। भारत ने केवल औपचारिकता के लिए डोजियर दिया ताकि वो यह नहीं कहे कि हमें कुछ दिया नहीं गया। भारत का निर्णय साफ है, हम स्वयं सीमा पार करके हमले की जड़ों को मिटाएंगे।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने एक भाषण में कहा कि वो पाताल में छिपे होंगे वहां भी हम मारेंगे। उन्होंने यह भी कहा कि हम घर में घुसकर मारेंगे। ये बयान पाकिस्तानी मीडिया में खूब चल रहे हैं। पाकिस्तान इसको ध्यान में रखकर अपनी कार्रवाई करे यही उसके हित में होगा।
अवधेश कुमार
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार और स्तंभकार हैं। वह सामयिक विषयों की खबर के ताजा अपडेट के साथ उसका विश्लेषण प्रस्तुत करने के विशेषज्ञ हैं)