समाचार एजेंसी रॉयटर्स के मुताबिक, पाकिस्तानी सुरक्षा अधिकारी उस पहाड़ी पर जाने नहीं दे रहे हैं, जहां भारतीय वायुसेना ने हमला किया था। एजेंसी की एक टीम को बालाकोट के जाबा टॉप पर बने मदरसे और आसपास की इमारतों के करीब जाने से रोक दिया गया।
14 फरवरी को जम्मू-कश्मीर के पुलवामा में सीआरपीएफ के काफिले पर हुए फिदायीयन हमले के बाद भारतीय वायुसेना ने पाकिस्तान के बालाकोट में जैश-ए-मोहम्मद के सबसे बड़े ट्रेनिंग कैंप पर हवाई हमला किया था। मसूद अजहर के आतंकी संगठन जैश ने ही पुलवामा हमले की जिम्मेदारी ली थी। बालाकोट के जाबा टॉप पर वायुसेना के हमले में जैश के कई कमांडर और आतंकी मारे गए थे। पाकिस्तान का दावा है कि यहां कोई हवाई हमला नहीं हुआ। उसने यह भी कहा था कि वह मीडिया को घटनास्थल पर ले जाएगा। हालांकि अभी तक पाकिस्तान ने ऐसा नहीं किया है। वह लगातार बालाकोट पर दुनिया को गुमराह कर रहा है।
समाचार एजेंसी रॉयटर्स के मुताबिक, पाकिस्तान के सुरक्षा अधिकारी उस पहाड़ी पर जाने नहीं दे रहे हैं, जहां भारतीय वायुसेना ने हमला किया था। अधिकारियों ने एजेंसी की एक टीम को बालाकोट की उस पहाड़ी पर बने मदरसे और आसपास की इमारतों के करीब जाने से रोक दिया। एजेंसी के मुताबिक, पिछले नौ दिन में ऐसा तीन बार हो चुका है। दरअसल, लोगों का कहना है कि जिस इमारत को मदरसा बताया जा रहा है, वह आतंकी संगठन जैश-ए-मोहम्मद द्वारा संचालित किया जाता था।
वायुसेना की कार्रवाई के बाद विदेश सचिव विजय गोखले ने कहा था कि इस ट्रेनिंग कैंप पर की गई कार्रवाई में बड़ी संख्या में जैश-ए-मोहम्मद के आतंकी, ट्रेनर्स, सीनियर कमांडर मारे गए हैं। पाकिस्तानी सुरक्षा अधिकारी उसके बाद से ही उस रास्ते पर पहरा रखे हुए हैं, जो जाबा टॉप की तरफ जाता है। अधिकारी सुरक्षा चिंताओं का हवाला देते हुए पत्रकारों को जाने से रोक रहे हैं।
खास बात यह है कि हवाई हमले के फौरन बाद पाकिस्तानी सेना ने कहा था कि वह मीडिया को उस स्थान पर ले जाएगी, जहां एयर स्ट्राइक की बात कही जा रही है। 26 फरवरी को भारत के हमले के बाद से ही पाकिस्तान सरकार यह दावा कर रही है कि किसी भी इमारत को कोई नुकसान नहीं हुआ है। इस्लामाबाद में सेना की प्रेस विंग ने भी मौसम और संगठन के कारणों का हवाला देते हुए साइट पर जाने का दौरा रद कर दिया। एक अधिकारी ने कहा कि सुरक्षा कारणों से अगले कुछ दिनों तक उस स्थान पर जाना संभव नहीं होगा।
रॉयटर्स की टीम के मुताबिक, पहाड़ी के नीचे और मदरसे से करीब 100 मीटर की दूरी से ही उस जगह को देखना पड़ रहा है। पत्रकारों ने जो बिल्डिंग्स देखी हैं, उसके चारों तरफ चीड़ के पेड़ हैं। ऐसे में देखने से कुछ भी अंदाजा लगाना कठिन है। (इनपुट रॉयटर्स)