एयरसेल - मैक्सिस मामले में कांग्रेस नेता पी चिदंबरम पर केस चलाने की मंजूरी मिल गई है। यह जानकारी केंद्र सरकार की ओर से पेश सॉलिसीटर जनरल तुषार मेहता ने पटियाला हाउस कोर्ट के जज ओपी सैनी को दी।
तुषार मेहता ने बताया कि एयरसेल - मैक्सिस मामले में कुल 18 लोगों को आरोपी बनाया गया है। जिनमे से 6 आरोपियों पर मुकदमा चलाने के लिए अनुमति की जरूरत थी। इसमें से आरोपी नंबर 1 यानि पी चिदंबरम पर केस चलाने की मंजूरी मिल गई है बाकी के 5 आरोपियों पर केस चलाने के लिये अनुमति लेने का प्रयास किया जा रहा है।
साथ ही कोर्ट ने पी चिदंबरम और कार्ति चिदंबरम की अग्रिम जमानत की अवधि को 18 दिसंबर तक के लिए बढ़ा दिया है। पटियाला हाउस कोर्ट प्रवर्तन निदेशालय द्वारा दायर आरोप पत्र पर 18 दिसंबर को ही संज्ञान लेगा।
बतादें कि ईडी ने एयरसेल-मैक्सिस धन शोधन मामले में पूर्व केंद्रीय मंत्री पी चिदंबरम के खिलाफ आरोप पत्र दाखिल किया था। ईडी ने चिदंबरम पर विदेशी निवेशकों के उद्यमों को मंजूरी देने के लिए उनके साथ साठगांठ करने का आरोप लगाया था। ईडी ने इस मामले में 9 लोगो को आरोपी बनाया है। जिनमें चिदंबरम, एस भास्कररमन (कार्ति के सीए), वी श्री निवासन ( एयरसेल के पूर्व सीईओ) भी है।
उनके खिलाफ आरोप है कि मार्च 2006 में पूर्व मंत्री द्वारा विदेशी निवेशक ग्लोबल कम्युनिकेशन एंड सर्विसेज होल्डिंग्स लिमिटेड, मॉरीशस को अवैध एफआईएफबी अनुमोदन दिए जाने के बदले 1.16 करोड़ रुपये का धनशोधन किया गया। आरोप है कि यह मंजूरी भारत मे प्रत्यक्ष विदेशी निवेश नीति से जुड़े विभिन्न नियमो का उल्लंघन कर दी गई।
इससे पहले कांग्रेस के वरिष्ठ नेता पी चिदंबरम और उनके बेटे कार्ति चिदंबरम ने कोर्ट में प्रत्युत्तर दायर कर सीबीआई के उन आरोपों को झूठा और बेबुनियाद करार दिया है, जिसके तहत सीबीआई ने कहा था कि वित्त मंत्री रहने के दौरान उन्होंने एयरसेल-मैक्सिस मामले में मॉरीशस की कंपनी को एफआईपीबी की मंजूरी गैरकानूनी तरीके से दी थी।
चिदंबरम और उनके बेटे की ओर से दायर प्रत्युत्तरों में कहा है कि सीबीआई और ईडी के आरोपों में दम नहीं है और उन्हें हिरासत में लेकर पूछताछ की कोई जरुरत नही है।
कोर्ट ने सीबीआई और ईडी द्वारा दर्ज दोनों मामलों में दोनों आरोपियों की गिरफ्तारी से 26 नवंबर तक छूट दे रखी थी।
प्रत्युत्तर में यह भी कहा गया है कि बोर्ड में शामिल पांच सदस्य वरिष्ठ आईएएस अधिकारी थे, जबकि छठे आईएफएस अधिकारी थे। सामान्य प्रक्रिया के तहत बोर्ड की सिफारिशे वित्त मंत्रालय को सौंपी गई जहाँ एक बार फिर से कनिष्ठ अधिकारियों ने इसकी जांच की। इसके बाद अतिरिक्त सचिव और सचिव ने भी जांच की। फिर इसे सक्षम प्राधिकार (वित्त मंत्रालय) के समक्ष रखा गया।
इसमें कहा गया है कि एफआईपीबी यह फैसला करता है कि दिए गए मामले के लिए सक्षम प्राधिकार कौन है। ज्ञात हो की अपने जवाब में दोंनो एजेंसियों ने कहा था चिदंबरम और कार्ति को हिरासत में लेकर उनसे पूछताछ की जरूरत है। क्योंकि वे सवालों के सीधे सीधे जवाब नही दे रहे है और जांच में सहयोग नही कर रहें हैं।
सीबीआई ने चिदंबरम की अग्रिम जमानत याचिका के जवाब में आरोप लगाया था कि वह जांच में सहयोग नही कर रहे हैं।