मासूम बच्चों को सीएए विरोध की अग्निकुंड में झोंक रहे हैं राजनीतिज्ञ

By Abhinav KhareFirst Published Jan 15, 2020, 3:36 PM IST
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भारत एक लोकतांत्रिक देश है जहां फ्रीडम ऑफ स्पीच वास्तव में एक मौलिक अधिकार है। लेकिन, क्या हमें उन मासूम बच्चों को इस्तेमाल करने का अधिकार है, जो शायद राजनीति के अर्थ को अपने प्रचार तंत्र के रूप में इस्तेमाल करना भी नहीं समझते हैं? मुझे नहीं लगता। उनका दिमाग अभी अपने बढ़ते चरण में है और अगर हम पहले से ही इसे जहर दें तो यह सही नहीं है।

नागरिकता संसोधन कानून का लोग विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं और अब इन विरोध प्रदर्शनों के लिए वह बच्चों को इस्तेमाल कर रहे हैं। चौंकाने वाली बात ये है कि महज 4 और 5 वर्ष की आयु के बच्चे आज़ादी के लिए नारे लगा रहे हैं और लोगों को मारने का आह्वान कर रहे हैं। पिछले कुछ दिनों के दौरान हमने विरोध प्रदर्शनों को हिंसक होते देखा है। उपद्रवियों ने इसका विरोध करते हुए बसों को जलाया है और सार्वजनिक संपत्ति को नष्ट भी किया है।

अगर शाहीन बाग में विरोध प्रदर्शन अब हिंसक हो जाए, इन बच्चों का क्या होगा। भगवान ऐसा न करे, जो इन बच्चों की सुरक्षा करता है। बच्चे हमारे समाज का भविष्य हैं, जिन्हें शिक्षा और कल्याण के अपने मौलिक अधिकार की अनुमति दी जानी चाहिए। उन्हें अपने बड़ों के एजेंडे के लिए मुखपत्र के रूप में कार्य नहीं करना चाहिए। सीएए प्रदर्शनकारी अब इन बच्चों को अपने स्वार्थ के लिए बलि के बकरा बनाने के लिए इस्तेमाल कर रहे हैं।

भारत एक लोकतांत्रिक देश है जहां फ्रीडम ऑफ स्पीच वास्तव में एक मौलिक अधिकार है। लेकिन, क्या हमें उन मासूम बच्चों को इस्तेमाल करने का अधिकार है, जो शायद राजनीति के अर्थ को अपने प्रचार तंत्र के रूप में इस्तेमाल करना भी नहीं समझते हैं? मुझे नहीं लगता। उनका दिमाग अभी अपने बढ़ते चरण में है और अगर हम पहले से ही इसे जहर दें तो यह सही नहीं है। यह बिल्कुल अमानवीय है कि हम बच्चों को लोगों की यातनापूर्ण मौत के नारे लगाने के लिए इस्तेमाल कर रहे हैं। वे शायद इस बात से भी वाकिफ नहीं हैं कि हिटलर कौन है, जब वे कहते हैं, "वो हिटलर की मौत मरेगा "।

चार या पांच वर्ष से कम उम्र के बच्चों को विरोध नहीं करना चाहिए। बल्कि उन्हें विकास के लिए एक सुरक्षित और संरक्षित वातावरण प्रदान किया जाना चाहिए। उन्हें जीवन का आंनद लेना चाहिए और घर पर अपने माता-पिता के साथ शाम के खाने का आनंद लेना चाहिए और पार्क में खेलना चाहिए। उनके हाथ में किताबें और क्रेयॉन होना चाहिए न कि शाहीन बाग में आजादी चिल्लाते हुए माइक। नफरत की दुनिया में, हमें माता-पिता के रूप में अपने बच्चों को दुनिया के सभी खतरों और बुराइयों से बचाना चाहिए और उन्हें इस गंदी राजनीति में नहीं धकेलना चाहिए। मुझे उम्मीद है कि माता-पिता को जल्दी जाग जाएंगे किसी अनहोनी से पहले।

(अभिनव खरे एशियानेट न्यूज नेटवर्क के सीईओ हैं, वह डेली शो 'डीप डाइव विद अभिनव खरे' के होस्ट भी हैं। इस शो में वह अपने दर्शकों से सीधे रूबरू होते हैं। वह किताबें पढ़ने के शौकीन हैं। उनके पास किताबों और गैजेट्स का एक बड़ा कलेक्शन है। बहुत कम उम्र में दुनिया भर के 100 से भी ज्यादा शहरों की यात्रा कर चुके अभिनव टेक्नोलॉजी की गहरी समझ रखते है। वह टेक इंटरप्रेन्योर हैं लेकिन प्राचीन भारत की नीतियों, टेक्नोलॉजी, अर्थव्यवस्था और फिलॉसफी जैसे विषयों में चर्चा और शोध को लेकर उत्साहित रहते हैं।

उन्हें प्राचीन भारत और उसकी नीतियों पर चर्चा करना पसंद है इसलिए वह एशियानेट पर भगवद् गीता के उपदेशों को लेकर एक सफल डेली शो कर चुके हैं। अंग्रेजी, हिंदी, बांग्ला, कन्नड़ और तेलुगू भाषाओं में प्रासारित एशियानेट न्यूज नेटवर्क के सीईओ अभिनव ने अपनी पढ़ाई विदेश में की हैं। उन्होंने स्विटजरलैंड के शहर ज्यूरिख सिटी की यूनिवर्सिटी ईटीएच से मास्टर ऑफ साइंस में इंजीनियरिंग की है। इसके अलावा लंदन बिजनेस स्कूल से फाइनेंस में एमबीए (एमबीए) भी किया है।)

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