बस कंडक्टर की बेटी ने रच डाला इतिहास, 183 साल बाद किया ये काम

By Team MyNation  |  First Published Jan 27, 2019, 11:46 AM IST

बेटी पढ़ाओ और बेटी बचाओ का अभियान अब सफल हो रहा है। अब देश की बेटियां इतिहास रच रही हैं। इस बार भी गणतंत्र दिवस पर एक बेटी ने देश के इतिहास को बदला और 183 साल के इतिहास को बदल दिया। असल में इस बार गणतंत्र दिवस  की परेड में असम राइफल की महिला टुकड़ी के नेतृत्व मेजर खुशबू कंवर ने किया


बेटी पढ़ाओ और बेटी बचाओ का अभियान अब सफल हो रहा है। अब देश की बेटियां इतिहास रच रही हैं। इस बार भी गणतंत्र दिवस पर एक बेटी ने देश के इतिहास को बदला और 183 साल के इतिहास को बदल दिया। असल में इस बार गणतंत्र दिवस  की परेड में असम राइफल की महिला टुकड़ी के नेतृत्व मेजर खुशबू कंवर ने किया जिसमें ‘नारी शक्ति’ का प्रदर्शन देखने को मिला। मेजर खुशबू कंवर असम राइफल्स की महिला टुकड़ी की कमांडर थीं।

आपको ये जानकार बड़ी हैरानी होगी कि देश में इतिहास रचने वाली खुशबू के पिता एक बस कंडक्टर हैं और उन्होंने जो सपना खुशबू के लिए देखा था। खुशबू ने उसे अपनी मेहनत से साकार किया है। एक बच्चे की मां मेजर खुशबू के नेतृत्व में देश के सबसे पुराने अर्द्धसैनिक बल असम राइफल्स की 147 महिला सैनिकों की टुकड़ी ने राजपथ पर नारीशक्ति का गौरव पेश किया। राजपथ पर पहली बार राजपथ पर देश की सबसे पुरानी बटालियन में शुमार और 183 साल पुरानी असम राइफल्स के महिला दस्ते ने अपना दमखम दिखाया। असम राइफल्स की स्थापना 1835 में हुई थी।

परेड में हिस्सा लेने के बाद मेजर खुशबू कंवर ने कहा कि ये उनके लिए बड़े सम्मान की बात है और मुझे गर्व है कि मैंने अपनी बटालियन का नेतृत्व किया। इसके जरिए मैं ये बताना चाहती हूं कि लड़की अपना सपना पूरा कर सकती है और दूसरी महिलाओं को बताना चाहती हूं कि सफलता का कोई शॉर्टकट नहीं होता है। देश की बहादुर बेटी के पिता राजस्थान में एक बस कंडक्टर हैं और खुशबू कहती हैं कि मेरी इस उपलब्धि पर मेरे पिता गर्व करते हैं। मेरे पिता ने अपनी जिंदगी में जितना संघर्ष किया है, उनके लिए ये एक छोटा सा गिफ्ट है।

खुशबू वर्तमान में मणिपुर राज्य के उखरुल में तैनात हैं और उन्होंने 2012 में कमीशन प्राप्त किया और और 2018 में वह कैप्टन बनी। उनके पति राहुल तंवर भी सेना में और कैप्टन हैं। जबकि उनके ससुर महेंद्र सिंह सेना के रिटायर्ड कैप्टन हैं। मेजर खुशबू कंवर ने इस परेड के लिए तकरीबन 6 महीने तक लगातार कड़ी मेहनत की और वह महिला दस्ते के साथ सुबह जागकर मैदान में 8 से 10 घंटे अभ्यास करती थीं और रोजाना वह 12 से 18 किलोमीटर की दूरी तय करती थीं।

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