असल में राजद ने अतिपिछड़ों को लुभाने के लिए नया दांव खेला है। पार्टी का दावा है कि अगर पार्टी सत्ता में आती है तो राज्य के अतिपिछड़ों को उनके अधिकार मिलेंगे। असल में बिहार में साठ फीसदी आबादी अतिपिछड़ों की है और ये फिलहाल बंटे हुए हैं। अभी तक राजद मुस्लिम और यादवों के बलबूते सत्ता पर काबिज रही लेकिन इन दोनों जातियों में कमजोर होने के बाद पार्टी को अतिपिछड़ों का याद आ गई है।
पटना। बिहार में अगले साल होने वाले विधानसभा चुनावों के लिए राष्ट्रीय जनता दल ने नया दांव चल दिया है। फिलहाल पार्टी को उम्मीद है अगर ये कार्ड चल गया तो बिहार में पार्टी की नैय्या पार हो जाएगी और पार्टी सत्ता पर काबिज हो सकती है। लिहाज पार्टी ने लालू के फार्मूले को फिर से लागू करते हुए अतिपिछड़ा का दांव चल दिया है।
असल में राजद ने अतिपिछड़ों को लुभाने के लिए नया दांव खेला है। पार्टी का दावा है कि अगर पार्टी सत्ता में आती है तो राज्य के अतिपिछड़ों को उनके अधिकार मिलेंगे। असल में बिहार में साठ फीसदी आबादी अतिपिछड़ों की है और ये फिलहाल बंटे हुए हैं। अभी तक राजद मुस्लिम और यादवों के बलबूते सत्ता पर काबिज रही लेकिन इन दोनों जातियों में कमजोर होने के बाद पार्टी को अतिपिछड़ों का याद आ गई है।
बहरहाल पार्टी के इस दांव से विपक्षी दलों की मुश्किलें बढ़ सकती हैं। लेकिन सवाल ये भी उठ रहे हैं कि महज ऐलान कर देते से क्या अति पिछड़ा वर्ग राजद के साथ आएगा। क्योंकि पार्टी में लालू यादव की तरह कोई करिश्माई नेता नहीं है। वहां राज्य में तेजस्वी और तेज प्रताप में वो राजनैतिक कौशल भी नहीं दिख रहा है। जिसके जरिए वह अतिपिछड़ा वर्ग को अपने एक बड़े वोट बैंक के तौर पर स्थापित कर सके।
बिहार विधानसभा में प्रतिपक्ष के नेता और विधानसभा चुनाव के लिए मुख्यमंत्री के प्रत्याशी बनाए गए तेजस्वी यादव ने राजद के अतिपिछड़ा प्रकोष्ठ की बैठक में अतिपिछड़ों को गोलबंद होने का आह्वान किया। तेजस्वी ने कहा कि अब राज्य को नया बिहार बनाना है तो सभी अतिपिछड़ों को एकजुट होकर राजद के झंडे के नीचे काम करना होगा। हालांकि इस बैठक में लोकसभा चुनाव के बाद पहली बार तेज प्रताप और तेजस्वी यादव बैठक में शामिल हुए। जबकि इससे पहले दोनों ने सार्वजनिक बैठकों से दूरी बनाकर रखी थी।