राहुल गांधी को प्रधानमंत्री बनाने का सपना संजो रहे कांग्रेस को झटका लगा है। कांग्रेस को अब राज्य में न केवल भाजपा से लड़ना होगा, बल्कि सपा और बसपा के गठबंधन से भी उसे जूझना होगा। ऐसे में सभी विपक्ष को एक मंच पर लाकर महागठबंधन बनाने कोशिशों को झटका लगा है। हालांकि पिछले कुछ दिनों से कांग्रेस ने सपा और बसपा के प्रति अपने रूख को नरम किया है। जबकि सपा और बसपा कांग्रेस के खिलाफ आक्रामक हो रहे थे।
-सपा-बसपा रायबरेली और अमेठी में नहीं उतारेंगे प्रत्याशी
यूपी में सपा और बसपा के बीच गठबंधन की खबरों से राहुल गांधी को प्रधानमंत्री बनाने का सपना संजो रहे कांग्रेस को झटका लगा है। कांग्रेस को अब राज्य में न केवल भाजपा से लड़ना होगा, बल्कि सपा और बसपा के गठबंधन से भी उसे जूझना होगा। ऐसे में सभी विपक्ष को एक मंच पर लाकर महागठबंधन बनाने कोशिशों को झटका लगा है। हालांकि पिछले कुछ दिनों से कांग्रेस ने सपा और बसपा के प्रति अपने रूख को नरम किया है। जबकि सपा और बसपा कांग्रेस के खिलाफ आक्रामक हो रहे थे।
राजधानी लखनऊ की खबरों के मुताबिक सपा और बसपा के बीच लोकसभा चुनाव के लिए गठबंधन हो गया है। इस गठबंधन का ऐलान आगामी 15 जनवरी को किया जा सकता है। इस दिन बसपा प्रमुख मायावती का जन्मदिन है। लिहाजा दो दल एक साथ मिलकर चुनाव के लिए गठबंधन कर सकते हैं। इस गठबंधन के मुताबिक बसपा ज्यादा सीटों पर लड़ेग जबकि सपा के कोटे में कम सीटें आयी हं। सपा-बसपा के इस गठबंधन में अजित सिंह के राष्ट्रीय लोकदल को भी शामिल किया गया है।
जबकि कुछ सीटें छोटे दलों के भी दी जाएंगी। ऐसा खाका सपा और बसपा के रणनीतिकारों ने खींचा है। सपा और बसपा के बीच होने वाले गठबंधन से सबसे ज्यादा झटका कांग्रेस को लगा है। कांग्रेस की समूचे विपक्ष को एक मंच पर लाने की कोशिश कर रही थी। तीन राज्य मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ के शपथ ग्रहण समारोह के लिए कांग्रेस ने सपा और बसपा को भी न्योता भेजा था। लेकिन दोनों ही नेताओं ने इस समारोह से दूरी बनाई। जाहिर है कांग्रेस शपथ ग्रहण के जरिए सभी दलों को एक साथ लाने की कोशिश कर रही थी। लिहाजा कांग्रेस की महागठबंधन बनाने की रणनीति विफल हो रही है। हालांकि दोनों दल राजस्थान और मध्य प्रदेश में कांग्रेस की अगुवाई वाली सरकार को समर्थन दे रहे हैं।
असल में राजस्थान और मध्य प्रदेश में समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी ने कांग्रेस को समर्थन का ऐलान है। इसके बाद विपक्षी एकता के जरिए महागठबंधन को फिर मजबूत होने की सुगबुगाहट सुनाई देने लगी थी। कांग्रेस शपथ ग्रहण के जरिए सभी विपक्षी दलों को एकजुट करने में लगी थी। ताकि सभी दल कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी की अगुवाई में बनने वाले महागठबंधन को स्वीकार कर लें। उत्तर प्रदेश में लोकसभा की 8 सीटें हैं और पिछले लोकसभा चुनाव में भाजपा को यहां 73 सीटें मिली थी।
लिहाजा इस बार सभी दलों की नजर यूपी पर लगी है। अगर सपा और बसपा के बीच गठबंधन होता है तो इससे न केवल सत्ताधारी भाजपा को नुकसान होगा बल्कि कांग्रेस को भी जबरदस्त नुकसान उठाना पड़ेगा। लिहाजा केन्द्र में सरकार बनाने की उसकी राह में मुश्किलें आएंगी। कांग्रेस का राज्य में कोई बढ़ा जनाधार नहीं है। लेकिन वह सपा और बसपा से गठबंधन कर बेहतर प्रदर्शन की उम्मीद लगाई हुई थी।