पीएम और राहुल गांधी के विवाद में मीनाक्षी लेखी की एंट्री, जानिए क्या है पूरा मामला

By Gopal K  |  First Published Apr 12, 2019, 12:00 PM IST

राहुल गांधी और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के बीच पिछले दिनों राफेल मामले को लेकर जबरदस्त विवाद हुआ। लेकिन अब इस मामले को लेकर नई दिल्ली की सांसद मीनाक्षी लेखी सुप्रीम कोर्ट पहुंच गई हैं। जहां उनकी मानहानि की याचिका को विचार के लिए स्वीकार कर लिया है। 

राफेल को लेकर सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी द्वारा दिया गया बयान अब उनके लिए मुसीबत बन कर सामने आया है। राहुल के बयान के बाद बीजेपी नेता मीनाक्षी लेखी ने राहुल गांधी के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अवमानना याचिका दायर की है। 

कोर्ट ने अवमानना याचिका को स्वीकार करते हुए इस पर सोमवार को सुनवाई करने का भरोसा दिया है। बता दें कि हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा था कि वह पुनर्विचार याचिका पर सुनवाई करेगा। जिसके बाद राहुल गांधी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर तीखा हमला बोलते हुए कहा था कि राफेल की चोरी का सच सामने आ गया है और चौकीदार को सजा जरूर मिलेगी। 

राहुल के बयान पर प्रतिक्रिया देते हुए रक्षा मंत्री निर्मला सीतारमण ने प्रेस कॉन्फ्रेंस कर कांग्रेस पर हमला बोला था। उन्होंने कहा था कि कोर्ट का फैसला सरकार के लिए कोई झटका नहीं है क्योंकि कोर्ट ने सिर्फ पुनर्विचार याचिका को स्वीकार किया है। 

ज्ञात हो कि राफेल मामले में सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा है कि गलत ढंग से (चुराये गए) प्राप्त गोपनीय दस्तावेजो के आधार पर दाखिल पुनर्विचार याचिका पर सुनवाई होगी। कोर्ट ने स्पष्ट किया था कि राफेल डील के तथ्यों पर गौर करने से पहले वह केंद्र सरकार द्वारा उठाई गई प्रारंभिक आपत्तियों पर कोर्ट फैसला करेगा। 

बता दें कि केंद्र सरकार ने राफेल लड़ाकू विमानों से संबंधित दस्तावेजों पर विशेषाधिकार का दावा किया है और सुप्रीम कोर्ट से कहा कि साक्ष्य अधिनियम के प्रावधानों के तहत कोई भी संबंधित विभाग की अनुमति के बगैर इन्हें पेश नहीं कर सकता है। 

अटॉर्नी जनरल ने कहा था कि कोई भी राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़े दस्तावेज प्रकाशित नहीं कर सकता है और राष्ट्र की सुरक्षा सर्वोपरि है। वकील प्रशांत भूषण ने कोर्ट से कहा था कि राफेल के जिन दस्तावेजों पर अटॉर्नी जनरल विशेषाधिकार का दावा कर रहे हैं, वे प्रकाशित हो चुके हैं और सार्वजनिक दायरे में हैं। उन्होंने कहा था कि सूचना के अधिकार कानून के प्रावधान कहते हैं कि जनहित अन्य चीजों से सर्वोपरि है और खुफिया एजेंसियों से संबंधित दस्तावेजों पर किसी प्रकार के विशेषाधिकार का दावा नहीं किया जा सकता। 

केंद्र सरकार का कहना था कि पुनर्विचार याचिका दायर करने वाले याचिकाकर्ता गैरकानूनी तरीके से प्राप्त किए गए विशेषाधिकार वाले दस्तावेजो को आधार नहीं बना सकते। गौरतलब है कि मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई, न्यायमूर्ति संजय किशन कौल और न्यायमूर्ति केएम जोसेफ की पीठ के समक्ष केंद्र की ओर से अटॉर्नी जनरल के के वेणुगोपाल ने अपने दावे के समर्थन में साक्ष्य कानून की धारा 123 और सूचना के अधिकार कानून के प्रावधानों का हवाला दिया।

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