सवर्णों को नौकरियों में आर्थिक रूप से पिछड़े लोगों को 10 % आरक्षण देने के मोदी सरकार के फैसले पर रोक लगाने से सुप्रीम कोर्ट ने इंकार कर दिया। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अगली सुनवाई पर कोर्ट यह तय करेगा कि इस मामले को संविधान पीठ के समक्ष भेजे जाने की जरूरत है या नहीं?
नई दिल्ली: सवर्ण आरक्षण के मामले में कोर्ट 28 मार्च को याचिका पर सुनवाई करेगा। यूथ फॉर इक्विलिटी, जनहित अभियान और कारोबारी तहसीन पूनावाला की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट सुनवाई कर रहा है। जस्टिस रंजन गोगोई और जस्टिस संजीव खन्ना बेंच याचिका पर सुनवाई कर रही है।
कारोबारी तहसीन पूनेवाला कि ओर से दायर याचिका पर अभी सुनवाई होनी बाकी है। याचिका में कहा गया है कि ये संशोधन सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ है और आर्थिक आधार पर आरक्षण नही दिया जा सकता। वही तहसीन पूनावाला ने अपनी याचिका में कहा है कि इस संविधान संशोधन से आरक्षण के बारे में इंदिरा साहनी प्रकरण में सुप्रीम कोर्ट के 1992 के फैसले में प्रतिपादित मानदंड का उल्लंघन है।
याचिका में कहा गया है कि इस फैसले में स्पष्ट किया गया था कि आरक्षण के लिए पिछड़ेपन को सिर्फ आर्थिक आधार पर परिभाषित नहीं किया जा सकता है। पूनावाला ने याचिका में यह भी कहा है कि संविधान पीठ ने आरक्षण की अधिकतम सीमा फीसदी निर्धारित की थी, और आर्थिक आधार पर आरक्षण का प्रावधान इस सीमा को लांघता है।
याचिका में इस नए कानून पर रोक लगाने की मांग की गई है। आर्थिक रूप से कमजोर लोगों के लिये 10 फीसदी आरक्षण का प्रावधान करने संबंधी संविधान संशोधन विधेयक संसद के शीतकालीन सत्र के दौरान पारित किया गया था और इसे राष्ट्पति की मंजूरी भी मिल चुकी है। सामाजिक न्याय मंत्रालय इस संविधान संशोधन कानून को लागू करने संबंधी अधिसूचना भी जारी कर चुका है।
लोकसभा और राज्यसभा से इस बिल के पास होने पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इसे सामाजिक न्याय की जीत बताया और कहा था कि यह देश की युवा शक्ति को अपना कौशल दिखाने के लिए व्यापक मौका सुनिश्चित करेगा तथा देश मे एक बड़ा बदलाव लाने में सहायक होगा।
गौरतलब है कि 6 ऐसे मौके आए, जब कोर्ट ने संशोधन को असंवैधानिक ठहराया था। 1950 के बाद यह संविधान का 124 वां संशोधन बिल है। 6 मौके ऐसे भी आए, जब सुप्रीम कोर्ट को लगा कि संविधान में किया गया संशोधन असंवैधानिक है। इसलिए बिल निरस्त कर दिए गए।
ताजा उदाहरण जजों की नियुक्ति के लिए आयोग के गठन का है। सरकार ने अप्रैल 2015 में इसके लिए संविधान में संशोधन किया था। अक्टूबर 2015 में सुप्रीम कोर्ट ने इसे खारिज करते हुए कॉलेजियम प्रणाली बहाल कर दी थी।