सुप्रीम कोर्ट ने अयोध्या मामले में गठित मध्यस्थता पैनल का कार्यकाल 15 अगस्त तक बढ़ाया

By Gopal K  |  First Published May 10, 2019, 11:17 AM IST

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हम रिटायर्ड जस्टिस कलीफुल्ला की रिपोर्ट पर विचार कर रहे हैं। रिपोर्ट में सकारात्मक विकास की प्रक्रिया के बारे में बताया गया है। कुछ हिन्दू पक्षकारों ने मध्यस्थता की प्रक्रिया पर आपत्ति जाहिर की। उन्होंने कहा कि पक्षकारों के बीच कोई कॉर्डिनेशन नहीं है। मुस्लिम पक्षकारों की ओर से राजीव धवन ने कहा कि हम मध्यस्थता प्रक्रिया का पूरी तरह से समर्थन करते हैं।

सुप्रीम कोर्ट ने आज अयोध्या मामले के लिए गठित मध्यस्थता पैनल का कार्यकाल 15 अगस्त तक के लिए बढ़ा दिया है। आज अयोध्या राम जन्मभूमि मामले में मध्यस्थता पैनल की रिपोर्ट को सुप्रीम कोर्ट ने स्वीकार कर लिया है। मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि अभी समझौते की प्रक्रिया जारी है। कोर्ट ने कहा कि पैनल को इस मामले में अभी और समय चाहिए और इसे बढ़ाया जा रहा है।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हम रिटायर्ड जस्टिस कलीफुल्ला की रिपोर्ट पर विचार कर रहे हैं। रिपोर्ट में सकारात्मक विकास की प्रक्रिया के बारे में बताया गया है। कुछ हिन्दू पक्षकारों ने मध्यस्थता की प्रक्रिया पर आपत्ति जाहिर की। उन्होंने कहा कि पक्षकारों के बीच कोई कॉर्डिनेशन नहीं है। मुस्लिम पक्षकारों की ओर से राजीव धवन ने कहा कि हम मध्यस्थता प्रक्रिया का पूरी तरह से समर्थन करते हैं। जिस पर मुख्य न्यायाधीश ने कहा कमेटी ने मध्यस्थता प्रक्रिया के लिए अतिरिक्त समय की मांग की है।

कोर्ट ने 15  अगस्त तक पैनल का समय बढ़ा दिया है। मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई, न्यायमूर्ति एसए बोबडे, न्यायमूर्ति डीवाई चंद्रचुड़, न्यायमूर्ति अशोक भूषण और न्यायमूर्ति एस अब्दुल नजीर की पीठ मामले की सुनवाई कर रही है। बता दें की 8 मार्च को सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में मामले में मध्यस्थता को मंजूरी दे दी थी और तीन मध्यस्थों की नियुक्ति भी की थी। इन मध्यस्थों में जस्टिस कलीफुल्ला, वकील श्रीराम पंचू और आध्यात्मिक गुरु श्री-श्री रविशंकर है।

मध्यस्थता कमेटी ने 13 मार्च से सभी पक्षों को सुनना शुरू किया था। पूर्व में पीठ को निर्मोही अखाड़े को छोड़कर, हिन्दू संगठनों और यूपी सरकार द्वारा बताया गया कि वे अदालत के मध्यस्थता के सुझाव का विरोध करते है। मुस्लिम संगठनों ने प्रस्ताव का समर्थन किया था। मध्यस्थता के सुझाव का विरोध करते हुए हिंदू संगठनों ने दलील दी कि दीवानी प्रक्रिया संहिता के प्रावधानों के लिए प्रक्रिया की शुरुआत से पहले सार्वजनिक नोटिस जारी करने की जरूरत है।

गौरतलब है कि इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 2010 में अयोध्या राम जन्मभूमि विवाद में फैसला देते हुए विवादित जमीन को तीन बराबर हिस्सों में बांटने का आदेश दिया था। कोर्ट ने जमीन को रामलला, निर्मोही अखाड़ा और सुन्नी वक्फ बोर्ड में बांटने का आदेश दिया था। साथ ही साफ किया था कि रामलला विराजमान को वही हिस्सा दिया जाएगा जहां वह विराजमान है। हाईकोर्ट के इस फैसले को सभी पक्षकरो ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है। सुप्रीम कोर्ट के आदेश से फिलहाल यथास्थिति बरकरार है।
 

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