गौतम खेतान का मामला बनेगा काले धनपतियों के खिलाफ नजीर

By Gopal KFirst Published May 21, 2019, 6:29 PM IST
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अगस्ता वेस्टलैण्ड वीवीआईपी चॉपर घोटाले में गिरफ्तार गौतम खेतान के खिलाफ चल रहा मामला कालाधन रखने वालों के मामले में उदाहरण बन सकता है। दरअसल खेतान ने अपने खिलाफ चल रहे मामले का यह कहकर विरोध किया था कि उसकी गिरफ्तारी के समय कानून अस्तित्व में आया ही नहीं था। उसे हाईकोर्ट से इस तर्क के आधार पर राहत मिल भी गई थी। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने इसे आधार मानने से इनकार कर दिया। 

नई दिल्ली:  काला धन अधिनियम 2016 के तहत वकील गौतम खेतान के खिलाफ कार्रवाई पर रोक लगाने के दिल्ली हाइकोर्ट के आदेश पर सुप्रीम कोर्ट ने स्टे दे दिया है। अदालत ने इस मामले में गौतम खेतान को नोटिस जारी करके जवाब भी मांगा है। 

केंद्र सरकार की ओर से दायर याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने यह आदेश दिया है। केंद्र सरकार ने दिल्ली हाइकोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है। यह मामला इस अधिनियम के अस्तित्व में आने से पहले प्रभावी होने से संबंधित है।
 
जिसमें पहले हाइकोर्ट ने 16 मई को खेतान के खिलाफ चल रहे मुकदमे पर यह कहते हुए अंतिरिम रोक लगा दी थी कि प्रथम दृष्टया खेतान की दलीलों में दम है। खेतान का कहना था कि यह अधिनियम 2016 में आया है, लेकिन इसे एक जुलाई 2015 से प्रभावी बनाया गया है। इसलिए यह कानून उन पर लागू नही होता है क्योंकि यह अधिनियम गैरकानूनी है। 

जिसपर हाइकोर्ट ने केंद्र सरकार और आयकर विभाग पर खेतान के खिलाफ कार्रवाई करने पर अंतिरिम रोक लगा दिया था। दिल्ली हाइकोर्ट ने 16 मई को एक आदेश दिया था, जिसके तहत सरकार और आयकर विभाग पर काला धन काराधान अधिनियम के तहत वकील गौतम खेतान के खिलाफ कोई भी दंडात्मक कार्रवाई करने से रोक दिया गया था। 

लेकिन केन्द्र सरकार ने अदालत में हाईकोर्ट के आदेश का यह कहकर विरोध किया कि इस फैसले से कालेधन के मामले के आरोपियों को बच निकलने का मौका मिल जाएगा। जो कि भविष्य के लिए गलत परंपरा स्थापित करेगा। सुप्रीम कोर्ट ने इस तर्क का स्वीकार कर लिया और हाईकोर्ट के फैसले पर स्टे दे दिया। 

खेतान वीवीआईपी हेलीकॉप्टर सौदा घोटाला मामले में एक आरोपी है और उन्हें 26 जनवरी को प्रवर्तन निदेशालय ने गिरफ्तार किया था। खेतान ने अपनी गिरफ्तारी को चुनौती देते हुए कहा था कि केंद्र की अधिसूचना अवैध है, जिसमें कहा गया है कि अधिनियम एक अप्रैल, 2016 के बदले एक जुलाई 2015 से प्रभावी माना जाएगा।

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