शीर्ष अदालत ने कहा, इतनी जल्दी क्या है, चार अप्रैल को याचिका सूचीबद्ध है, उसी दिन सुनवाई होगी। जामनगर से लोकसभा चुनाव लड़ना चाहते हैं कांग्रेस नेता हार्दिक पटेल। मेहसाणा में दंगा भड़काने के मामले में मिली है दो साल की सजा।
2019 के लोकसभा चुनाव में किस्मत आजमाने को कोशिश में जुटे कांग्रेस नेता हार्दिक पटेल की कोशिशों को बड़ा झटका लगा है। देश की सबसे बड़ी अदालत ने पाटीदार नेता हार्दिक पटेल को तत्काल राहत देने से इनकार कर दिया है। 2015 में गुजरात के मेहसाणा में दंगा भड़काने के मामले में अपनी सजा को निलंबित करने के लिए हार्दिक पटेल ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी। कोर्ट ने कहा कि इस पर तत्काल सुनवाई की कोई जरूरत नहीं है। शीर्ष अदालत ने इस पर सुनवाई के लिए 4 अप्रैल की तारीख तय की है। इससे पहले गुजरात हाई कोर्ट ने उनकी सजा को निलंबित करने की याचिका को रद्द कर दिया था। इससे पटेल के सियासी भविष्य को लेकर सवाल खड़ा हो गया है।
मामले की सुनवाई करते हुए कोर्ट ने कहा, इसमें जल्दी क्या है। 4 अप्रैल को सुनवाई के लिए मामला सूचीबद्ध है। उसी दिन सुनवाई करेंगे। वहीं केंद्र सरकार की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने हार्दिक पटेल की याचिका का विरोध किया। उन्होंने कहा, कोर्ट ने कब का फैसला दिया है और इतने दिनों बाद इसे चुनौती दे रहे हैं, लिहाजा पटेल की याचिका को खारिज किया जाए।
गुजरात हाइकोर्ट दंगा भड़काने के मामले में हार्दिक की सजा पर रोक लगाने से इनकार कर चुका है। हार्दिक को मेहसाणा के विसनगर में दंगा भड़काने के एक मामले में 2 साल की सजा सुनाई गई है। उन्हें कोर्ट से जमानत मिली हुई है।
हार्दिक पटेल ने गुजरात हाइकोर्ट में अपनी सजा पर रोक लगाने के लिए याचिका दायर की थी, ताकि आगामी लोकसभा चुनाव लड़ सके। लेकिन कोर्ट ने याचिका को खारिज करते हुए सजा पर रोक लगाने से इनकार कर दिया है। हाल ही में कांग्रेस में शामिल होने वाले पाटीदार नेता गुजरात के जामनगर से चुनाव लड़ने वाले थे।
हार्दिक पटेल को भाजपा विधायक ऋषिकेश पटेल के कार्यालय में तोड़फोड़ करने के मामले में विसनगर कोर्ट ने दोषी ठहराते हुए 2 साल की जेल की सजा सुनाई है। कोर्ट ने 17 आरोपियों में से 3 लोगों को दोषी ठहराया है, वही 14 लोगों को सबूतों के आभाव में बरी कर दिया है। 2015 के इस दंगा केस में हार्दिक पटेल के अलावा लालजी पटेल को भी दोषी करार दिया गया है। जनप्रतिनिधि कानून 1951 के मुताबिक दागी नेताओं के चुनाव लड़ने को लेकर कानून पहले से मौजूद है। जिसमें सजा के बाद 6 साल तक उनके चुनाव लड़ने पर रोक का प्रावधान है। इसी कानून के चलते चारा घोटाले में दोषी और बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव पर चुनाव लड़ने से रोक लगाई गई है।