सुप्रीम कोर्ट ने अयोध्या मामले में मध्यस्थता पर फैसला सुरक्षित रखा, कहा पक्षकार पैनल का नाम सुझाएं

By Gopal KFirst Published Mar 6, 2019, 12:48 PM IST
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सुप्रीम कोर्ट ने आज अयोध्या मामले में मध्यस्थता पर अपना फैसला सुरक्षित रखा है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सभी पक्षकार मध्यस्थता के लिए पैनल के नाम सुझाए। ताकि आगे इस बार जिरह हो सके। 

सुप्रीम कोर्ट ने आज अयोध्या मामले में मध्यस्थता पर अपना फैसला सुरक्षित रखा है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सभी पक्षकार मध्यस्थता के लिए पैनल के नाम सुझाए। ताकि आगे इस बार जिरह हो सके। हालांकि हिंदू महासभा ने साफ कहा कि इस मामले में मध्यस्थता नहीं हो सकती है। 
आज सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि ये भावनाओं और विश्वास से जुड़ा मामला है और फैसले का असर जनता की भावना और राजनीति पर पड़ सकता है। मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई, जस्टिस एस. ए. बोबड़े, जस्टिस अशोक भूषण, जस्टिस धनंजय वाई. चन्द्रचूड़ और न्यायमूर्ति एस. अब्दुल नजीर की पांच सदस्यीय पीठ सुनवाई कर रही है। इस मामले की सुनवाई के दौरान हिन्दू संगठन की ओर से पेश हरि शंकर जैन ने कहा गया कि आप पहले पब्लिक नोटिस जारी कीजिए, उसके बाद ही मध्यस्थता पर कोई आदेश दीजिए। वहीं हिन्दू पक्षकार ने मध्यस्थता का विरोध किया। हिन्दू पक्षकार की दलील है कि अयोध्या मामला धार्मिक और आस्था से जुड़ा मामला है, यह केवल संपत्ति विवाद नहीं हैं।

हिन्दू पक्षकार की ओर से यह भी कहा गया कि मध्यस्थता से कोई फायदा नहीं होगा, कोई तैयार भी नहीं होगा। जिसके बाद जस्टिस बोबडे ने टिप्पणी करते हुए कहा कि अभी से यह मान लेना कि फायदा नहीं होगा ठीक नहीं है। यह दिमाग, दिल और रिश्तों को सुधारने का प्रयास है। हम मामले की गंभीरता को लेकर सचेत हैं। हम जानते हैं कि इसका क्या इम्पैक्ट होगा। यह मत सोचो कि तुम्हारे हमसे ज्यादा भरोसा है कानून प्रक्रिया पर। जस्टिस बोबडे ने यह भी कहा कि हम इतिहास भी जानते हैं। हम आपको बताना चाह रहे हैं कि बाबर ने जो किया उस पर हमारा कंट्रोल नहीं था। उसने जो किया उसे कोई बदल नहीं सकता। हमारी चिंता केवल विवाद को सुलझाने की है। इसे हम जरूर सुलझा सकते हैं।

जस्टिस बोबडे ने यह भी कहा कि जब अयोध्या विवाद को सुलझाने के लिए मध्यस्थता चल रही हो तो इसके बारे में खबरें न लिखी जाए और न ही दिखाई जाए। हम मीडिया पर प्रतिबंध नहीं लगा रहे है, परंतु मध्यस्थता का मकसद किसी भी सूरत में प्रभावित नहीं होना चाहिए। जिसके बाद जस्टिस चंद्रचुड़ ने कहा कि ये विवाद दो समुदाय का है, सबको इसके लिए तैयार करना आसान काम नहीं है। हम उन्हें मध्यस्थता रेसोलुशन में कैसे बाध्य कर सकते हैं? ये बेहतर होगा कि आपसी बातचीत से मसल हल हो पर कैसे? ये अहम सवाल हैं। करोड़ों लोगों को मध्यस्थता के लिए बाँधना आसान नहीं है। 

Supreme Court reserves order on the issue of referring Ram Janmabhoomi-Babri Masjid title dispute case to court appointed and monitored mediation for “permanent solution”. pic.twitter.com/JoC907Mgcm

— ANI (@ANI)


जबकि राजीव धवन ने कहा कि मध्यस्थता के लिए वे तैयार हैं। मध्यस्थता के लिए सबकी सहमति जरूरी नही है। मुश्लिम पक्षकार की ओर से पेश राजीव धवन ने सबरीमाला मंदिर मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले का हवाला देते हुए कहा कि सबरीमाला मामले से भी लोगों  की संवेदनाएं जुड़ी थीं लेकिन कोर्ट ने फिर भी आर्डर पास किया। जस्टिस चन्द्रचूड सबरीमाला मामले में बेंच में शामिल रहे थे। जबकि सी वैधनाथन ने कहा कि लोगों की आस्था और विश्वास यही है कि रामलला का जन्म अयोध्या में हुआ था और इस बात से कोई समझौता नहीं हो सकता। परंतु हम चाहते है कि मस्जिद को अन्य जगह बनवा दिया जाए। इसके लिए हम फण्ड देने के लिए तैयार हैं।

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