एक कश्मीरी छात्र जो की अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय से जियोलॉजी में पीएचडी कर रहा होता है। वह अचानक अपनी पढ़ाई बीच में ही छोड़ देता है। वापस कश्मीर लौटता है और आतंकवादी संगठन हिज्बुल मुजाहिदीन में शामिल हो जाता है। बाद में उसे कुपवाड़ा के हंदवाड़ा में सुरक्षा बल एक मुठभेड़ में मार गिराते हैं।
इस आतंकवादी का नाम था मन्नान बशीर वानी। क्या आप जानना चाहेंगे कि उसका संरक्षक कौन था?
मायनेशन के हाथ ऐसे सबूत लगे हैं, जिससे यह स्पष्ट होता है कि वानी को संरक्षण देने वाला है अलगाववादियों के बीच शांतिदूत के नाम से मशहूर जम्मू कश्मीर का अलगाववादी नेता सैयद अली शाह गिलानी।
गिलानी ने अभी तक जांच एजेन्सियों को यह भरोसा दिला रखा था कि उसका आतंकवाद की घटनाओं से कोई सीधा संबंध नहीं रहा है। लेकिन अब उसके इस झूठ का खुलासा हो गया है।
अभी तक उसका एक बेटा नईम उल जफर और दामाद कश्मीर में आतंकियों को पैसे पहुंचाने के आरोप में राष्ट्रीय जांच एजेन्सी(एनआईए) के हत्थे चढ़े थे। तब भी गिलानी का दामन पाक साफ रहा था और वह आतंकवाद का इस्तेमाल देश के विरुद्ध जहर उगलने में और राज्य को ब्लैकमेल करने में सफल रहा था।
साल 2015 के दौरान गिलानी ने आतंकवादियों को शहीद और शेरदिल कहकर उनकी हौसला अफजाई शुरु की थी और यह कहना शुरु किया था कि शहीदों को पवित्र खून नाली में नहीं बहने दिया जाएगा। लेकिन इस तस्वीर से गिलानी पर लगे आतंकियों को आर्थिक समर्थन देने, संरक्षण देने और कट्टरपंथी विचारधारा फैलाने के आरोप साबित हो जाते हैं।
पुलवामा में हुए आतंकवादी हमले, जिसमें 40 सीआरपीएफ जवानों की जान चली गई थी, इस घटना के दौरान भी गिलानी, मीरवाइज और यासीन मलिक बहुत शातिर राजनीति चालें चल रहे थे।
इस दौरान यह सभी कह रहे थे कि ‘हम शहीदों के परिजनों का दर्द समझते हैं।’ हालांकि इस दौरान इन लोगों ने यह भी कहा कि कश्मीर में हुआ यह हमला यहां के लोगों की भावनाओं को न समझने का नतीजा है।
लेकिन अब यह स्पष्ट हो गया है कि यह लोग पूरे देश की आंखों में धूल झोंकते रहे। इन लोगों ने ही कश्मीर के युवाओं को आतंकवाद की पट्टी पढ़ाकर पूरी घाटी को कट्टरपंथ की आग में झोंक दिया है।