महाराष्ट्र में 'मातोश्री' की राजनीति खत्म, सत्ता के लिए सोनिया के दूतों से मिलने के लिए दर दर भटक रहे हैं ठाकरे

ठाकरे परिवार पहली बार मातोश्री से बाहर निकल रहा है। वह भी राज्य में सत्ता अपने पास रखने के लिए । महाराष्ट्र में भले ही पिछले चार दशकों में सरकार किसी की भी रही हो, लेकिन सरकार का असली केन्द्र मातोश्री ही हुआ करता था। शिवसेना के संस्थापक बालासाहेब ठाकरे ने कभी चुनाव नहीं लड़ा और न ही किसी संसदीय राजनीति में रहे। लेकिन उन्होंने महाराष्ट्र में परोक्ष तौर पर सरकार चलाई है भले ही सरकार किसी भी पार्टी कि क्यों न हो। बालासाहेब ठाकरे का ही करिश्मा था कि नेता उनसे आर्शिवाद लेने के लिए मातोश्री आया करते थे।

Thackeray is wandering at the rate of 'Matoshree' politics in Maharashtra, to meet Sonia messenger for power

नई दिल्ली। जिस मातोश्री ने करीब चार दशक तक महाराष्ट्र की राजनीति में वो मुकाम हासिल किया जो शायद ही किसी को हासिल होता हो। जिस मातोश्री में देश के पीएम से लेकर राष्ट्रपति शिवसेना के सर्वोच्च नेता से मदद मांगने के जाते थे। अब उसी मातोश्री की नई पीढ़ी महाराष्ट्र में सरकार बनाने को इतनी आतुर है कि वह कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के दूतों से मिलने के लिए दर दर भटक रही है। लेकिन वहां से भी खुलेतौर पर मदद नहीं मिल रही। असल में ये बात महाराष्ट्र का आम जन मानुष भी बोलने लगा है कि मातोश्री अब सत्ता का केन्द्र नहीं रहा है।

Thackeray is wandering at the rate of 'Matoshree' politics in Maharashtra, to meet Sonia messenger for power

ठाकरे परिवार पहली बार मातोश्री से बाहर निकल रहा है। वह भी राज्य में सत्ता अपने पास रखने के लिए । महाराष्ट्र में भले ही पिछले चार दशकों में सरकार किसी की भी रही हो, लेकिन सरकार का असली केन्द्र मातोश्री ही हुआ करता था। शिवसेना के संस्थापक बालासाहेब ठाकरे ने कभी चुनाव नहीं लड़ा और न ही किसी संसदीय राजनीति में रहे। लेकिन उन्होंने महाराष्ट्र में परोक्ष तौर पर सरकार चलाई है भले ही सरकार किसी भी पार्टी कि क्यों न हो। बालासाहेब ठाकरे का ही करिश्मा था कि नेता उनसे आर्शिवाद लेने के लिए मातोश्री आया करते थे।

लेकिन अब लगता है हालात बदल गए हैं। क्योंकि जिस शिवसेना के मातोश्री में विभिन्न राजनैतिक दल समर्थन के लिए माथा टेंकते थे। अब उसी मातोश्री के उत्तराधिकारी और शिवसेना के प्रमुख उद्धव ठाकरे कांग्रेस और एनसीपी के नेताओं के दरवाजे पर जाकर समर्थन की गुहार लगा रहे हैं। यहां तक कि जिस सोनिया गांधी को बाला साहेब ठाकरें तंज कसते हुए इटैलियन मम्मी कहा करते थे। उनके दूतों से मिलने के लिए उद्धव ठाकरे इतने आतुर हैं कि वह मातोश्री से बाहर निकल कर होटल में उनसे मिलने के लिए इंतजार कर रहे हैं। क्या यही सरकार बनाने की मजबूरी है।

अगर महाराष्ट्र में शिवसेना और कांग्रेस और एनसीपी मिलकर सरकार बना भी लेते हैं तो क्या शिवसेना अपने मूल्यों और सिद्धांतों को दरकिनार कर पांच साल तक सरकार चला लेंगे। हालांकि एनसीपी ने उन्हीं शर्तों पर समर्थन देने की शर्त रखी है। जो उसने भाजपा के सामने रखी थी। यानी 50-50 का फार्मूला। इस फार्मूले के तहत पहले ढाई साल शिवसेना की सरकार रहेगी और उसके बाद एनसीपी का मुख्यमंत्री नियुक्त किया जाएगा।

महाराष्ट्र की राजनीति को समझने वाले कहते हैं कि एक दौर में 'मातोश्री' महाराष्ट्र की राजनीति का पावर सेंटर हुआ करता था। यहां तक कि कांग्रेस के राष्ट्रपति के प्रत्याशी प्रणब मुखर्जी 2012 में शरद पवार के साथ 'मातोश्री'  गए थे। जहां उन्होंने बाला साहेब ठाकरे से समर्थन मांगा था। उनका कहना है कि पहली बार ठाकरे परिवार का नेता मातोश्री से बाहर निकल कर सत्ता के लिए उनके दरवाजे पर जा रहा है। जबकि पहले लोग मातोश्री में आर्शीवाद लेने आते थे। अब मुंबई में सत्ता का केन्द्र नरीमन पॉइंट स्थित वाई बी चव्हाण सेंटर और शरद पवार का घर बन गया है और वहीं महाराष्ट्र की राजनीति दिल्ली के दस जनपथ से संचालित की जा रही है।

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