राज्यसभा की सातवीं सीट के लिए महाराष्ट्र में भाजपा और शिवसेना की बीच फिर होगी जंग

By Team MyNationFirst Published Feb 13, 2020, 11:03 AM IST
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 राज्यसभा के सदस्य के लिए 37 विधायकों के समर्थन की आवश्यकता होती है। वहीं राज्य में भारतीय जनता पार्टी के 105 विधायक हैं और उसे नौ निर्दलीय विधायकों का समर्थन प्राप्त है। जबकि सत्तारूढ़ गठबंधन में, शिवसेना के 56 विधायक हैं,राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी और कांग्रेस के पास क्रमशः 54 और 44 विधायक हैं। जबकि 20 अन्य विधायकों में से कम से कम 15 विधायकों के राज्य के सत्तारूढ़ गठबंधन के पक्ष में जाने की उम्मीद की जा रही है। 
 

मुंबई। महाराष्ट्र से राज्यसभा की सात सीटें खाली हो रही हैं। इसमें चार सीट शिवसेना, कांग्रेस और एनसीपी और दो सीटें भाजपा के खाते में जाना तय है। लेकिन असल जंग सातवी सीट के लिए होनी तय है। इस सातवीं सीट के लिए तीन दलों की एकता की भी परिक्षा होगी। तो भाजपा और महाराष्ट्र विकास आगाडी गठबंधन के बीच इस सातवीं सीट के लिए मुकाबला भी दिलचस्प होगा।

 राज्यसभा के सदस्य के लिए 37 विधायकों के समर्थन की आवश्यकता होती है। वहीं राज्य में भारतीय जनता पार्टी के 105 विधायक हैं और उसे नौ निर्दलीय विधायकों का समर्थन प्राप्त है। जबकि सत्तारूढ़ गठबंधन में, शिवसेना के 56 विधायक हैं,राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी और कांग्रेस के पास क्रमशः 54 और 44 विधायक हैं। जबकि 20 अन्य विधायकों में से कम से कम 15 विधायकों के राज्य के सत्तारूढ़ गठबंधन के पक्ष में जाने की उम्मीद की जा रही है। 

अप्रैल में रिटायर होने वाले राज्यसभा सांसदों में एनसीपी प्रमुख शरद पवार, माजिद मेनन, कांग्रेस के हुसैन दलवई, शिवसेना के राजकुमार धूत, केंद्रीय मंत्री रामदास अठावले (आरपीआईए), भाजपा के अमर सब्बल और निर्दलीय सांसद संजय हैं। हालांकि एनसीपी कोटे से शरद पवार फिर से राज्यसभा जाना तय है जबकि केन्द्रीय मंत्री रामदास अठावले की भी राज्यसभा में फिर से जाने की उम्मीद है। इसके साथ ही शिवसेना कोटे से कोई नया चेहरा राज्यसभा में भेजा जा सकता है।

फिलहाल सत्तारूढ़ महाराष्ट्र विकास अगाड़ी गठबंधन के 169 विधायकों की मदद से चार सीटों पर जीत तय है जबकि दो सीटें भाजपा के कोटे में जाएंगी। हालांकि सातवीं सीट के लिए न तो सत्ताधारी पार्टी के पास बहुमत है न ही भाजपा के पास। लिहाजा सातवीं सीट के लिए जोड़तोड़ की गणित के आसार हैं। लिहाजा विधायकों की पसंद काफी अहम होगी और ऐसे में विधायकों के टूटने की आशंका भी है। क्योंकि यदि पहली वरीयता के मतों के माध्यम से एक सीट तय नहीं की जाती है, तो दूसरी वरीयता के मतों की गणना की जाती है।
 

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