आइये जानते है कि इस साल अदालतों ने कौन-कौन से फैसले दिए जिनका सीधा आपसे सरोकार रहा है। खास कर सुप्रीम कोर्ट की बात करें तो यह वो साल रहा जिसने दो प्रधान न्यायाधीश देखे-एक पूर्व प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा और वर्तमान मुख्य न्यायधीश रंजन गोगोई।
नई दिल्ली-- साल 2018 न्यायपालिका के हिसाब से काफी अहम रहा, क्योंकि इस साल सुप्रीम कोर्ट, दिल्ली हाइकोर्ट और निचली अदालतों से कई ऐसे ऐतेहासिक फैसले दिए जिसका राजनीतिक, आर्थिक और सामाजिक तौर पर दूरगामी प्रभाव पड़ेगा। चाहे आधार का मामला हो, सबरीमाला का हो, समलैंगिकता का हो, महिलाओं के सेक्स स्वायत्तता का मुद्दा हो, राफेल डील से संबंधित मामला हो, नेशनल हेराल्ड हो या फिर 1984 सिख दंगे से जुड़े मामले हो। सबरीमाला मंदिर में महिलाओं के प्रवेश को लेकर हो रहे भेदभाव करने वाला फैसला काफी चर्चित रहा। वही अन्य तमाम फैसलों का लोगों से सीधा सरोकार रहा है।
आइये जानते है कि इस साल अदालतों ने कौन-कौन से फैसले दिए जिनका सीधा आपसे सरोकार रहा है। खास कर सुप्रीम कोर्ट की बात करें तो यह वो साल रहा जिसने दो प्रधान न्यायाधीश देखे-एक पूर्व प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा और वर्तमान मुख्य न्यायधीश रंजन गोगोई। दीपक मिश्रा की अध्यक्षता में संविधान पीठों ने साल के कई महत्वपूर्ण फैसले दिए तो वहीं, रंजन गोगोई ने राफेल सौदे के बारे में उल्लेखनीय फैसला दिया।
सबरीमाला में महिलाओं के प्रवेश
सुप्रीम कोर्ट ने ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए केरल के स्थित अयप्पा स्वामी के मंदिर सबरीमाला में महिलाओं के प्रवेश की अनुमति दे दी। कोर्ट ने साफ कहा कि हिंदू धर्म में महिलाओं का सम्मानीय स्थान है, इन्हें देवी की तरह पूजा जाता है। भगवान अयप्पा के भक्त हिंदू हैं। ऐसे में एक अलग संप्रदाय न बनाएं। अब इस मंदिर में हर उम्र की महिलाएं जा सकती हैं।
राफेल सौदा
अब बात करे राफेल विमान के खरीद की तो इस मामले में सरकार को राहत मिल गई। राफेल खरीद प्रक्रिया और इंडियन ऑफसेट पार्टनर के चुनाव में सरकार द्वारा भारतीय कंपनी को फेवर किये जाने के आरोपों की जांच की गुहार लगाने वाली तमाम याचिकाओं को खारिज कर दिया। कोर्ट ने कहा था कि फैसला लेने की प्रक्रिया में कही भी कोई संदेह की गुंजाइश नही है। कोर्ट ने राफेल डील मामले में केस दर्ज कर कोर्ट की निगरानी में जांच की गुहार की मांग को खारिज कर दिया। आरोप लगाया गया था कि 58,000 करोड़ की डील में अनियमितता हुई है।
अयोध्या विवाद
बात विवादित मामला अयोध्या की हो तो सुप्रीम कोर्ट ने मामले में एक अहम फैसला देते हुए कहा कि मस्जिद में नमाज पढ़ना इस्लाम का अभिन्न अंग है, के बारे में 1994 के फैसले को दोबारा विचार के लिए संवैधानिक बेंच भेजने से इंकार कर दिया। कोर्ट ने साफ कहा कि मामला जमीन विवाद के तौर पर निपटाया जाएगा। जबकि मुस्लिम पक्षकारों ने कहा था कि अयोध्या के जमीन विवाद पर सुनवाई से पहले इस्माइल फारुखी मामले में सुप्रीम कोर्ट के 1994 के फैसले को दोबारा परीक्षण की जरूरत है।
नेशनल हेराल्ड मामला
अब बात नेशनल हेराल्ड की हो तो कांग्रेस को दिल्ली हाइकोर्ट ने झटका देते हुए हेराल्ड हाउस को खाली करने का फरमान जारी कर दिया। केंद्रीय भूमि एवं विकास प्राधिकरण ने 30 अक्टूबर को एजेएल को बिल्डिंग खाली करने का आदेश दिया था। इसमें नेशनल हेराल्ड अखबार के प्रकाशक के द्वारा लीज नियमों के उल्लंघन की बात कही गई थी। अखबार को प्रकाशित करने वाली कंपनी एजेएल ने इस फैसले को हाइकोर्ट में चुनौती दी थी। एजेएल ने साल 2008 में घाटे के वजह से नेशनल हेराल्ड का प्रकाशन बंद कर दिया था। भाजपा का आरोप है कि प्रकाशन शुरू करने के लिए गांधी परिवार ने हजारों करोड़ रुपये एजेएल के रियल एस्टेट कारोबार में लगाये है।
1984 सिख दंगा, सज्जन कुमार को उम्रकैद
बात 1984 सिख दंगो की हो तो जेहन में तत्कालीन कांग्रेसी नेता सज्जन कुमार और जगदीश टाइटल का नाम सबसे पहले आता है। हालही में एक मामले में सज्जन कुमार को दिल्ली हाइकोर्ट ने निचली अदालत के फैसले को पलटते हुए उम्रकैद की सजा सुनाई है। अब सज्जन कुमार को जीवन भर सलाखों के पीछे रहना है। हालांकि सज्जन कुमार के इस फैसले से 1984 दंगा के पीड़ित और उनके वकील खुश नही है। वह चाहते हैं कि सज्जन कुमार को फांसी की सजा हो। उनकी माने तो कांग्रेस के वरिष्ठ नेता कमलनाथ को भी इस मामले में शिकायत दर्ज करने का प्रयास कर रहे है। इसके लिए इस मामले में गठित एसआईटी से जल्द ही मिलकर कमलनाथ के खिलाफ जांच करने की मांग करेंगे।
बता दें कि 1984 के दंगों के एक मामले में दिल्ली हाइकोर्ट ने 17 दिसंबर को 73 वर्षीय पूर्व सांसद सज्जन कुमार को शेष जीवन के लिए उम्रकैद और पांच अन्य को अलग-अलग अवधि की सजा सुनाई थी और उन्हें 31 दिसंबर तक समर्पण करने का आदेश दिया था। कोर्ट ने अपने फैसले में कहा था कि 1984 के दंगों में दिल्ली में 2700 से अधिक सिख मारे गए थे जो निश्चित ही अकल्पनीय पैमाने का नरसंहार था। कोर्ट ने यह भी कहा था कि यह मानवता के खिलाफ उन लोगों द्वारा किया गया अपराध था जिन्हें राजनीतिक संरक्षण प्राप्त था और जिनकी कानून लागू करने वाली एजेंसियां मदद कर रही थी।
अगस्ता वेस्टलैंड हेलीकॉप्टर मामला
सबसे चौकाने वाली खबर अगस्ता वेस्टलैंड हेलीकॉप्टर सौदे मामले में गिरफ्तार बिचौलिया क्रिश्चियन मिशेल ने श्रीमती गांधी का नाम लिया है। साथ ही सन ऑफ इटैलियन लेडी की बात कही है। प्रवर्तन निदेशालय ने कहा कि ये बातचीत के लिए कोड का इस्तेमाल किया गया है। कहा-कहा मीटिंग करते थे, अब यह पता करना है। साथ ही किन-किन अधिकारियों से मिलते थे वो भी पता लगाना है। मनी ट्रेल का पता लगाने में भी ईडी और सीबीआई जुटी है।
वही सुप्रीम कोर्ट ने धारा 377 हटाने से लेकर नेशनल हेराल्ड, 1984 सिख दंगों जैसे फैसलों समेत 2018 ने आइसर प्रगतिशील निणयों की लहर देखी जिसने कानूनों में बदलाव के साथ हमारी जिंदगी में भी बदलाव किया। साल 2018 महिलाओं के लिए उल्लेखनीय रहा। जस्टिस इंदु मल्होत्रा बार से सीधे सुप्रीम कोर्ट पहुचने वाली पहली महिला बनी वही महिलाओं को सबरीमाला में प्रवेश की अनुमति मिल गई। इतना ही नही इतिहास की बाधाओं को तोड़ते हुए जम्मू एवं कश्मीर हाइकोर्ट में सिंधु शर्मा पहली महिला जज बनी। सिंधु शर्मा रिटायर्ड जज ओपी शर्मा की बेटी है। दूसरी ओर जस्टिस गीता मित्तल की मुख्य न्यायाधीश के रुओ में नियुक्ति के साथ एक बार फिर इतिहास रच गया। जम्मू कश्मीर हाइकोर्ट के इतिहास में 107 न्यायधीशों में इससे पहले कोई महिला नही बनी थी।
समलैंगिकता मामला
अब बात करे समलैंगिकता की तो सुप्रीम कोर्ट ने यौन संबंध को यह कहते हुए अपराध के दायरे से बाहर कर दिया कि दो वयस्को के बीच रजामंदी से बना यौन संबंध निजता के अधिकार का मामला है। कोर्ट ने फैसला देते हुए कहा कि आईपीसी की धारा 377 एलजीबीटीक्यू-प्लस समुदाय के सदस्यों को परेशान करने के लिए एक हथियार के रूप में प्रयोग की जाती है और इससे उनके साथ भेदभाव होता है।
व्यभिचार-रोधी कानून
बात करे अडल्टरी कानून की तो सुप्रीम कोर्ट ने गैरसंवैधानिक करार देते हुए खारिज कर दिया। कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि अडल्टरी कानून महिला को पति का गुलाम और संपत्ति के8 तरह बनाता है। अदालत ने अदालत ने इसे गैरसंवैधानिक करार देते हुए खत्म कर दिया। कोर्ट ने कहा कि ये धारा मनमाना है और समानता के अधिकार का हनन करती है। कोर्ट ने यह भी कहा कि ये कानून महिलाओं को पसंद करने के अधिकार को वंचित करता है। अभी तक के कानून के हिसाब से अगर कोई शख्स किसी शादीशुदा महिला से संबंध बनाता था तो शादीशुदा महिला का पिता ऐसे संबंध बनाने वाले शख्स के खिलाफ आईपीसी की धारा 497 के तहत केस दर्ज किया जा सकता था। लेकिन पति की सहमति हो तो फिर उसकी पत्नी से संबंध बनाने वाले तीसरे शख्स के खिलाफ केस दर्ज नही हो सकता था। कोर्ट ने कहा कि मानवीय सेक्शुअलिटी व्यक्ति के लिए महत्वपूर्ण है।
सुप्रीम कोर्ट ने एक अन्य महत्वपूर्ण फैसले की बदौलत आने वाले समय मे हम अदालत की सीधा कार्यवाही का प्रसारण भी देख सकेंगे। कोर्ट ने कहा कि सूर्य का प्रकाश सबसे अच्छा कीटनाशक है। मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली पीठ ने अदालती कार्यवाही को लाइव स्ट्रीमिंग और वीडियो रिकार्डिंग किए जाने का फैसला सुनाया। बात करे आधार की संवैधानिकता की तो सुप्रीम कोर्ट ने इस पर विराम लगाते हुए अपने फैसले में कहा कि आधार संवैधानिक है, लेकिन ऐसे बैंक खाते, मोबाइल आदि से लिंक करना और सरकारी सेवाओं का लाभ उठाने के लिए अनिवार्य करना असंवैधानिक है। साल 2018 में सुप्रीम कोर्ट ने मरणासन्न रोगियों या लाइलाज बीमारियों से पीड़ित रोगियों के लिए अहम फैसला देते हुए दिशा-निर्देशों तय किये। 'पैसिव युथनेसिया' या निष्क्रिय इच्छामृत्यु के लिए लिखी गई वसीयत को कानूनी मान्यता दे दी। कोर्ट ने कहा हर व्यक्ति को गरिमा के साथ मरने का अधिकार है, अदालत ने अपने फैसले में कहा कि मरणासन्न रोगीयों को यह फैसला लेने का अधिकार है कि कब उनका लाइफ सपोर्ट सिस्टम हटा दिया जाए।
जजों की प्रेस कॉन्फ्रेंस
साल की सबसे चौकाने वाली खबर चार वरिष्ठ जजो की अचानक बुलाई गई प्रेस कॉन्फ्रेंस रही। इस कॉन्फ्रेंस में तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा द्वारा केसों के आवंटन यानी रोस्टर या बेंच बनाने की प्रक्रिया में पद का दुरुपयोग करने का आरोप लगाया। इतनी ही नही प्रधान न्यायधीश पर महाभियोग चलाये जाने की विपक्ष की मांग ने भी भारतीय न्यायपालिका में ही नही, बल्कि राजनीतिक गलियारों में भी हलचल मचा दिया था। कुल मिलाकर कहे तो साल 2018 न्यायपालिका के लिहाज से उल्लेखनीय रहा जिसमे हमारे देश के न्यायतंत्र की शक्तियों पर भरोसा मजबूत हुआ, तो साथ ही यह आभास भी हुआ कि अबको न्याय देने वाली न्यायपालिका में सब कुछ ठीक नही है।