दिल्ली से ज्यादा प्रदूषित हो गया है उत्तर प्रदेश

By Team MyNationFirst Published Oct 30, 2018, 6:57 PM IST
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वैसे तो प्रदूषण से पूरा देश जूझ रहा है। लेकिन उत्तर प्रदेश की हालत कुछ ज्यादा ही खराब है। क्योंकि इस राज्य में आबादी बेहद घनी है। जिसकी वजह से प्रदूषण की मार यहां कुछ ज्यादा ही दिखाई दे रही है। 

अक्सर प्रदूषण की खबरों में दिल्ली ही छाया रहता है। लेकिन दिल्ली से सटे उत्तर प्रदेश पर ज्यादा लोगों का ध्यान नहीं जाता। लेकिन सच तो यह है कि यूपी में प्रदूषण जानलेवा स्तर तक पहुंच रहा है। 

एयर क्वालिटी इंडेक्स के मुताबिक़, भारत के जिन 66 शहरों में सबसे ज़्यादा प्रदूषण रहा, उनमें उत्तर प्रदेश की 11 जगहें शामिल हैं। 

केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के आंकड़ों के मुताबिक वायु प्रदूषण के मामले में कानपुर और गाज़ियाबाद में हालात लगातार सबसे बुरे बने हुए हैं। दोनों जगहों पर एयर क्वालिटी इंडेक्स 420 और 415 रहा। 

सामान्य हालत में एयर क्वालिटी इंडेक्स 0-50 तक रहना चाहिए। 100 तक रहने पर भी हालात बदतर नहीं माने जाते हैं। लेकिन जैसे ही ये एयर क्वालिटी इंडेक्स 100 से ऊपर जाने लगता है, यह खतरनाक हो जाता है। 

सबसे बुरी बात तो यह है कि यूपी सहित देश के कई और हिस्सों में प्रदूषण चर्चा का मुद्दा ही नहीं बनता। प्रदूषण पर सारा विमर्श दिल्ली पर ही केन्द्रित होकर रह जाता है। जबकि यूपी सहित बिहार और बंगाल में हालात कई मायने में दिल्ली से ज्यादा बदतर होते है।  

केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के नेशनल एयर क्वालिटी इंडेक्स के मुताबिक उत्तर प्रदेश के कानपुर, गाजियाबाद, लखनऊ, आगरा और बागपत समेत कई शहरों में प्रमुख प्रदूषणकारी तत्व पार्टिकुलेट मैटर (पीएम) यानी हवा में खतरनाक कणों की मात्रा औसतन 2.5 के खतरनाक स्तर तक पहुंच गई।  

उद्योग नगरी कानपुर में पीएम 2.5 की मौजूदगी 400 से अधिक रही। गाजियाबाद में भी पीएम 2.5 का संघनन लगभग 400 ही रहा। बागपत में पीएम 2.5 का संघनन औसतन 380 के आसपास रहा। इसके अलावा नोएडा में पीएम 2.5 का संघनन 379, हापुड़ में 371, बुलंदशहर में 360, मुजफ्फरनगर में 352, ग्रेटर नोएडा में 340, आगरा में 323, लखनऊ के लालबाग में 305, तालकटोरा औद्योगिक केंद्र में 322, निशातगंज में 303 और सेंट्रल स्कूल में 284 रहा। 

इसमें से हर जगह प्रदूषण बढ़ने की वजह एक जैसी ही है। गाड़ियों से निकलने वाला प्रदूषण, ईंट के भट्ठे, घरों में कोयला जलाना, फ़ैक्ट्रियों से होने वाला प्रदूषण वगैरह वगैरह। मौसम बदलने के साथ हवा मे कार्बन की मात्रा बढ़ जाती है। सर्दियों के वक़्त हवा स्थिर हो जाती है जिसकी वजह से प्रदूषित हवा भी एक ही जगह संघनित हो जाती है। जो कि स्वास्थ्य के लिए बेहद घातक हो जाता है। 

सांस के ज़रिए प्रदूषण फेफड़ों में जाता है। जिससे दमा, एलर्जी, डायबिटिज़ के मरीज़ों को दिक्कतें होती हैं। प्रदूषण के कणों से फेफड़े जाम होने लगते हैं। खास तौर पर छोटे बच्चों और बूढ़ों के लिए यह प्रदूषण बेहद घातक होता है।

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