क्या है 'One Nation, One Election', किसे होगा फायदा-किसे नुकसान? जानें सबकुछ

By Anshika Tiwari  |  First Published Sep 1, 2023, 11:14 AM IST

केंद्र सरकार ने वन नेशन वन इलेक्शन (One Nation, One Election) पर पहला कदम बढ़ाते हुए पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता में कमेटी गठित कर दी है। चर्चा है कि संसद के विशेष सत्र में इसे पेश किया जा सकता है।


नेशनल डेस्क। केंद्र सरकार ने 18 से 22 सितंबर तक संसद का विशेष सत्र (Parliament special Session) बुलाया है। जिसमें पांच 5 बैठकें होंगी हालांकि सरकार ने ये साफ नहीं किया है कि अचानक से ये सत्र क्यों बुलाया जा रहा है। जिससे राजनीतिक गलिायारों में सुगबुगाहट तेज हो गई है। 2024 में लोकसभा चुनाव होने है लेकिन उससे पहले इस साल के अंत तक देश में कई राज्यों में राज्यसभा चुनाव है। अटकलें हैं कि विशेष सत्र में वन नेशन वन इलेक्शन ( (One Nation, One Election) बिल लाया जा सकता है। बता दें, पीएम मोदी भी एक देश एक चुनाव की कई बार वकालत कर चुके हैं। ऐसे में ये जानना जरुरी है कि वन नेशन वन इलेक्शन क्या है? 

क्या है 'वन नेशन वन इलेक्शन'?

आसान सी भाषा में समझा जाए तो देश में एक ही समय पर लोकसभा और विधानसभा के चुनावा कराना। मौजूदा वक्त में सत्तारुण पार्टी बीजेपी इसके पक्ष में है। पार्टी का मानना है, वन नेशन वन इलेक्शन से पैसे के साथ टाइम की बचत होगी। अभी लोकसभा चुनाव और विधानसभा चुनाव अलग-अलग समय पर होते हैं। वहीं लोकसभा इलेक्शन भी अपने कार्यकाल के हिसाब से होते हैं। चुनाव में होने वाले खर्चे को कम करने के लिए मोदी सरकार (modi government) इस पर जोर दे रही है। 

'वन नेशन वन इलेक्शन' के क्या होंगे लाभ ? 

हमने बताया कि वन नेशन वन इलेक्शन की वकालत पीएम मोदी खुद कर चुके हैं। बिल के समर्थन में यही तर्क दिया जा रहा है कि इससे चुनाव में खर्च होने वाले पैसों की बचत हो सकेगी। मीडिया रिपोर्ट्स की मानें तो 1951-52 में चुनावी खर्चा 11 करोड़ का था जजो 2019 के लोकसभा चुनाव में 60 हजार करोड़ रुपए तक पहुंच गया। वन नेशन वन इलेक्शन होने से देश के संसाधन बचेंगे और विकास की गति नहीं रुकेगी। बार-बार चुनाव में आने वाले खर्चे से निजात मिलेगी। सुरक्षा बलों की तैनाती के खर्चे में कमी आएगी और ब्लैक मनी से चुनावी मैदान में उतरने वालों पर लगाम लगेगी।

'वन नेशन वन इलेक्शन' की खामियां

भले केंद्र की मोदी सरकार इसके पक्ष में हो और विरोधियों को जवाब देने के लिए कई तर्क तैयार किए जा रहे हों। पर कहा जा रहा है कि अगर ये बिल सरकार लेकर आती है तो मोदी सरकार को इसका सीधा फायदा मिल सकता है। यानी देश की सत्ता में बैठी किसी पार्टी के पक्ष में सकरात्मक माहौल बना हुआ है तो इससे पूरे देश में पार्टी का शासन हो सकता है जो भारत जैसे लोकतांत्रिक देश के पक्ष में नहीं। वहीं राजनीतिक दलों में मतभेद पैदा हो सकता है। 

इससे इतर पूरे देश में वन नेशन, वन इलेक्शन के तहत लोकसभा चुनाव और विधानसभा चुनाव होते हैं तो पूरी आशंका की चुनावी नतीजों में देरी हो सकती है। अगर ऐसा होता है तो विपक्षी दलों समेत यकीनन पूरे देश में अस्थिरता बढ़ेगी। जिसका खामियाजा आम जनता को भुगतना पड़ेगा। 

पहले भी थी 'वन नेशन वन इलेक्शन' की प्रकिया 

बता दें, ये पहली बार नहीं है, जब भारत में वन नेशन वन इलेक्शन कराने की बात चल रही हो। 1967 में एक देश एक चुनाव के आधार पर इलेक्शन होते थे। यानी लोकसभा और राज्यसभा का चुनाव एक साथ। हालांकि 1988 और 1969 में कुछ विधानसभाओं के भंग होने के कारण चुनाव समय से पहले कराने पड़े और 1970 में लोकसभा चुनाव हुए। 1983 में चुनाव आयोग ने एक साथ चुनाव करने का प्रस्ताव रखा हालांकि तत्कालीन सरकार ने इसके खिलाफ फैसला लिया। वहीं 1999 में विधि आयोग की रिपोर्ट में भी एक साथ चुनाव कराने पर जोर दिया गया। लेकिन अब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी फिर से इस नीति को दोहराना चाहते हैं। 

2014 में फिर मिले'वन नेशन वन इलेक्शन' के संकेत 

1999 के बाद 2014 में लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने अपने घोषणापत्र में कहा था वह राज्यों के चुनाव में स्थिरिता का कायम करने की कोशिश करेगी। वहीं 2016 में पीएम मोदी खुलकर 'वन नेशन वन इलेक्शन' पर बात की और 2017 में नीति आयोग ने वन नेशन वन इलेक्शन पर प्रस्ताव तैयार किया। 2018 में,विधि आयोग ने कहा कि एक साथ चुनाव कराने के लिए कम से कम "पांच संवैधानिक सिफारिशों" की आवश्यकता होगी।

2019 में फिर छिड़ा 'वन नेशन वन इलेक्शन' का मुद्दा

2019 में सत्ता पर दोबारा लौटने पर वन नेशन वन इलेक्शन पर पीएम मोदी ने राजनीतिक दलों के प्रमुखों से मुलाकात की। कांग्रेस, TMC, BSP, SP आदि दल इस बैठक से दूर रहे। जबकि AAP, तेलुगु देशम पार्टी और भारत राष्ट्र समीति  ने प्रतिनिधि भेजे। उस वक्त के तत्कालीन चुनाव आयुक्त ने एक बयान में कहा था कि 2022 में एक चुनाव कराने के लिए चुनाव आयोग सक्षम है लेकिन इसे लागू  करने के लिए संविधान में बदलाव की जरुरत है और ये फैसला संसद में होना चाहिए। 

'वन नेशन वन इलेक्शन' पर विपक्ष की प्रतिक्रिया

गौरतलब है, वन नेशन वन इलेक्शन पर सरकार की ओर से पहला कदम उठा लिया गा है। मुद्दे पर चर्चा के लिए कमेठी का गठन किया गया है। इसके अध्यक्ष पूर्व राष्ट्रपति राम नाथ कोविंद होंगे। ये कमेटी सभी दलों के साथ मिलकर चर्चा करेगी। हालांकि सरकार के बिल लाने से पहले ही विपक्ष ने इसका विरोध करना शुरू कर दिया है। बीते दिन शिवसेना उद्धव गुट की नेता प्रियंका चतुर्वेदी ने इस पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा था कि सरकार ने विपक्ष से कोई राय मश्वरा नहीं लिया है अगर कानून बिना चर्चा के लागू होता है हम इसका कड़ा विरोध करेंगे। वहीं आप सांसद संजय सिंह ने कहा कि बीजेपी डर गई है। इसलिए सभी राज्यों में एक साथ चुनाव कराने का प्लान बना रही है। 

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