बुआ बबुआ के बीच होगा गठबंधन, तो क्या होगी मुलायम की भूमिका!

By Harish Tiwari  |  First Published Jan 5, 2019, 6:50 PM IST

उत्तर प्रदेश में सपा और बसपा के बीच गठबंधन की अटकलों की खबरें तेजी से चल रही हैं। ऐसा कहा जा रहा है कि दोनों के बीच आगामी 15 जनवरी के बाद गठबंधन का ऐलान किया जाएगा। लेकिन लोकसभा चुनाव से पहले इस बड़े राजनैतिक घटनाक्रम के बीच अब सबसे बड़ा सवाल सपा संरक्षक मुलायम सिंह यादव की भूमिका को लेकर है। सवाल ये भी है क्या मुलायम से छत्तीस का आंकड़ा रखने वाली मायावती ने मुलायम सिंह के साथ अपनी दुश्मनी भूला दी है।

उत्तर प्रदेश में सपा और बसपा के बीच गठबंधन की अटकलों की खबरें तेजी से चल रही हैं। ऐसा कहा जा रहा है कि दोनों के बीच आगामी 15 जनवरी के बाद गठबंधन का ऐलान किया जाएगा। लेकिन लोकसभा चुनाव से पहले इस बड़े राजनैतिक घटनाक्रम के बीच अब सबसे बड़ा सवाल सपा संरक्षक मुलायम सिंह यादव की भूमिका को लेकर है। सवाल ये भी है क्या मुलायम से छत्तीस का आंकड़ा रखने वाली मायावती ने मुलायम सिंह के साथ अपनी दुश्मनी भूला दी है। या दोनों दलों के बीच होने वाले राजनैतिक समझौते के तहत मुलायम को राजनैतिक अज्ञातवास में भेज कर राजनैतिक दुश्मनी को हमेशा के लिए खत्म कर दिया जाएगा।

समाजवादी पार्टी में अब मुलायम सिंह का राजनैतिक भविष्य क्या होगा और सपा और बसपा के बीच गठबंधन के बाद मुलायम सिंह सपा के संरक्षक रहेंगे या मुलायम सिंह दोनों गठबंधन के बैनर तले चुनाव लड़ेगे! इस तरह के कई सवाल यूपी ही नहीं देश राजनीति में उठने लगे हैं। मुलायम सिंह आजमगढ़ से सपा के सांसद हैं और राज्य में तीन बार मुख्यमंत्री रह चुके हैं। असल में मुलायम सिंह और मायावती उत्तर प्रदेश में पहले भी सरकार बना चुके हैं।

राज्य में सरकार बनाने से पहले हुए चुनाव में सपा और बसपा ने 256 और 164 सीटों पर मिलकर चुनाव लड़ा। सपा अपने खाते में से 109 सीटें जीतने में कामयाब रही जबकि 67 सीटों पर हाथी का दांव चला। लेकिन दोनों की ये रिश्तेदारी ज़्यादा दिन नहीं चली और मायावती ने सपा से समर्थन ले लिया था।

जिसके बाद उत्तर प्रदेश की राजनीति में भूचाल आया और लखनऊ में 1995 में गेस्ट हाउस कांड हुआ। मायावती अकसर सपा पर आरोप लगाती रही कि सपा नेताओं ने उन्हें जान से मारने की कोशिश की। इस कांड के बाद मायावती ने कभी मुलायम सिंह के साथ सरकार नहीं बनाई। अखिलेश यादव के दो साल पहले पार्टी अध्यक्ष बनने के बाद फिर उत्तर प्रदेश में भाजपा की सरकार बनने के बाद दोनों दलों के बीच में नरमी आयी।

लिहाजा मायावती ने दो साल पहले गोरखपुर, फूलपुर में हुए लोकसभा उपचुनाव में सपा को समर्थन दिया। सपा इन दोनों सीटों को जीतने में कामयाब रही। जबकि कैराना लोकसभा में बसपा ने खुलकर तो नहीं लेकिन परोक्ष तौर पर रालोद के प्रत्याशी को समर्थन दिया। दो लोकसभा सीट जीतने के बाद सपा प्रमुख अखिलेश यादव मायावती से मिलने भी गए थे। इसके बाद दोनों दलों के बीच रिश्तों में नरमी आयी। अब सपा और बसपा के बीच बातचीत तकरीबन तय मानी जा रही है।

ऐसे में सपा संरक्षक मुलायम सिंह की भूमिका इस गठबंधन में क्या होगी। अभी इसका खुलासा नहीं हुआ है। सूत्रों के मुताबिक मुलायम के चुनाव लड़ने पर कोई फैसला नहीं हुआ है, लेकिन इस गठबंधन के लिए मुलायम प्रचार नहीं करेंगे। इस पर दोनों दल सहमत हैं। असल में भले ही मायावती मुलायम को माफ कर दे, लेकिन यूपी में मायावती के समर्थक मुलायम के प्रति नरम नहीं हैं।

ऐसा माना जा रहा है कि सपा की तरफ से मुलायम को चुनाव लड़ाकर उन्हें एक सीट पर सीमित किया जा सकता है। उधर कुछ सपा संरक्षक मुलायम सिंह भी राज्य में सपा और बसपा के बीच बनने वाले गठबंधन के बाद कभी अखिलेश के साथ नजर आते हैं तो अपने भाई शिवपाल सिंह यादव के साथ नजर आते हैं। मुलायम दोनों को साधने की कोशिश कर रहे हैं। राजनैतिक जानकारों का कहना है कि मुलायम की अभी भी कैडर पर पकड़ है खासतौर से मुस्लिम वोटबैंक पर जो राज्य में सपा के लिए निर्णायक मानी जाती है। 

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