जम्मू कश्मीर मामले में मोदी सरकार कुछ बड़ा करने जा रही है। वहां चल रही गतिविधियों से ऐसा अंदाजा लगाया जा रहा है। लेकिन ये क्या हो सकता है, इसकी सिर्फ अटकलें ही लगाई जा रही हैं। दिल्ली से लेकर कश्मीर तक अफवाहों का बाजार गर्म है। आईए आपको बताते हैं कि जम्मू कश्मीर को लेकर मोदी सरकार के प्लान के बारे में क्या 4 प्रमुख खबरें फिजाओं में तैर रही हैं-
नई दिल्ली:- कुछ ही दिन पहले राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोभाल जम्मू कश्मीर का दौरा करके गए हैं।
-जिसके बाद जम्मू कश्मीर में सुरक्षा बलों की संख्या में अचानक बढ़ोत्तरी कर दी गई है।
-उसके बाद अमरनाथ यात्रा बीच में रोक दी गई है। यात्रियों को वापस जाने का आदेश दिया गया है।
-शनिवार को खबर आई कि कश्मीर घाटी के नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी यानी एनआईटी को छात्रों से खाली कराया जा रहा है।
-जम्मू कश्मीर में आतंकियों और अलगाववादियों से गलबहियां करते हुए सत्ता सुख भोगने वाले नेशन कांफ्रेन्स और पीडीजी जैसे दल इतने घबरा गए हैं कि आपसी मतभेद भुलाकर आधी रात को बैठक करने पर मजबूर हो गए हैं।
-पंजाब से लगी सीमा पर हाई अलर्ट घोषित कर दिया गया है। सेना मुस्तैद हो गई है।
-कश्मीर घाटी में स्थानीय लोग किसी अनजान खतरे की आशंका से महीनों का राशन जमा करने में जुटे हुए हैं। हालांकि लद्दाख और जम्मू में ऐसी कोई अफरा तफरी नहीं मची हुई है।
-उंगली दिखा दिखाकर केन्द्र सरकारों को धमकाने वाली पीडीपी अध्यक्ष महबूबा मुफ्ती अपनी मजहबी कट्टरता को छोड़कर हाथ जोड़ने के लिए मजबूर हो गई हैं।
-नेशनल कांफ्रेन्स अध्यक्ष उमर अब्दुल्ला ट्विट करके बता रहे हैं कि उनके दोस्तों को गुलमर्ग से भगाया जा रहा है।
-एयर इंडिया ने घोषणा की है कि श्रीनगर जाने वाले टिकटों की कैंसिलेशन पर वह पूरा शुल्क वापस करेगी।
यानी कुछ न कुछ तो होने ही वाला है। लेकिन वास्तव में क्या होने जा रहा है, यह सिर्फ एक ही शख्स को मालूम है। वह हैं प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी। बाकी पूरी सरकारी मशीनरी केवल उनकी इच्छा के मुताबिक अपनी भूमिका निभा रही है। इन सभी की डोर है राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल के हाथों में। जो कि पीएम मोदी के इशारे पर सैन्य, खुफिया और नागरिक एजेन्सियों से काम करा रहे हैं।
लेकिन इन सबका उद्देश्य क्या है? पीएम मोदी और अजित डोभाल किस काम में जुटे हुए हैं। इसका अंदाजा लगाना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन भी है।
लेकिन राजनीति और मीडिया हलकों में कई तरह की अटकलें लगाई जा रही हैं। आईए आपको बताते हैं 4 प्रमुख कयास-
1.तीन हिस्सों में बांटा जा सकता है जम्मू कश्मीर
जम्मू कश्मीर की ताजाा गतिविधियों को देखते हुए सबसे ताजा अटकल ये लगाई जा रही है कि इस बार कश्मीर को तीन हिस्सों में बांटने की तैयारी चल रही है। सरकार जम्मू को अलग राज्य का दर्जा देते हुए अलग कर देगी। जबकि कश्मीर और लद्दाख का दर्जा केन्द्र शासित प्रदेश का हो जाएगा। यानी दोनों हिस्सों का प्रशासन हमेशा के लिए राज्यपाल के द्वारा केन्द्र सरकार संभालेगी।
इसका मतलब यह है कि कश्मीरी दलों की राजनीति हमेशा के लिए खत्म हो जाएगी या फिर वह ज्यादा से ज्यादा दिल्ली के मुख्यमंत्री केजरीवाल की तरह नख-दंत विहीन होकर रह जाएंगे।
अगर सरकार यह कदम उठा लेती है तो धारा 370 और 35ए खुद ब खुद निष्प्रभावी हो जाएंगे।
केन्द्र सरकार को देश के किसी भी राज्य के विभाजन, नाम बदलने या केन्द्र प्रशासित प्रदेश घोषित करने के लिए मामूली सी कवायद की जरुरत पड़ती है। बहुमत प्राप्त सरकार किसी भी सामान्य विधेयक से इस कार्य को कर सकती है। इसके लिए किसी संशोधन प्रस्ताव की जरुरत नहीं पड़ती। केन्द्र में मोदी सरकार के पास इस कार्य के लिए पर्याप्त बहुमत है।
लेकिन जम्मू कश्मीर राज्य के विशेष संवैधानिक दर्जे और अलगाववादी गतिविधियों को देखते हुए इस तरह के कार्यों में विशेष सतर्कता की जरुरत है। जो कि सरकार की वर्तमान कार्रवाईयों में दिखाई दे रहा है।
2. जम्मू कश्मीर में परिसीमन की तैयारी
राज्य में हमेशा जम्मू से सौतेला व्यवहार होता आया है। राज्य की पूरी राजनीति पर कश्मीर घाटी के ही राजनीतिज्ञों का कब्जा रहता है। ऐसा इसलिए है क्योंकि जम्मू इलाके में कश्मीर और लद्दाख को मिलाकर भी ज्यादा वोटर होने के बावजूद वहां लोकसभा और विधानसभा की सीटें कम हैं।
हिंदू और बौद्ध बहुल लद्दाख पूरे राज्य का 84 फीसदी इलाका है जबकि कश्मीर घाटी मात्र 16 फीसदी है। लेकिन राज्य की 87 विधानसभा सीटों में से 46 कश्मीर घाटी में हैं। यानी 16 फीसदी इलाके के कम आबादी वाले क्षेत्र में आधी से ज्यादा सीटें हैं। जबकि जम्मू में 37 और लद्दाख में 4 सीटें हैं। जबकि इन इलाकों का क्षेत्रफल 84 फीसदी है और आबादी भी कश्मीर घाटी से ज्यादा है।
संविधान के मुताबिक हर 10 साल में किसी भी प्रदेश के क्षेत्रफल और आबादी के आधार पर उसका परिसीमन किया जाना चाहिए। लेकिन जम्मू कश्मीर में 1955 के बाद परिसीमन हुआ ही नहीं है।
हाल ही में 4 जून को मंगलवार को भी जम्मू कश्मीर के परिसीमन की चर्चा चली थी। गृहमंत्री अमित शाह ने इस बारे में विशेष रुचि दिखाई थी। परिसीमन आयोग के भी गठन की खबरें सामने आई थीं।
अगर जम्मू कश्मीर का परिसीमन होता है तो कश्मीर घाटी आधारित अलगाववादी राजनीति हमेशा के लिए खत्म हो जाएगी। यही नहीं राज्य विधानसभा में अगर जम्मू के हिंदू बहुल और लद्दाख के बौद्ध क्षेत्रों का प्रतिनिधित्व बढ़ता है तो वहां की विधानसभा में खुद ही प्रस्ताव पास करके धारा 370 या 35-ए हटाने के लिए कदम उठाया जा सकता है। क्योंकि इन क्षेत्रों में न तो अलगाववाद है और ना ही पाकिस्तान परस्त आतंकवाद।
3. केन्द्र सरकार संसद में अध्यादेश लाकर खत्म कर सकती है 35-ए
जम्मू कश्मीर में चल रही गतिविधियों को देखकर यह भी अंदाजा लगाया जा रहा है कि सरकार शायद संसद के जरिए 35-ए हटाने की तैयारी कर रही है। इसके पहले तीन तलाक रोकथाम कानून पर विपक्ष के विरोध के बावजूद केन्द्र सरकार लोकसभा और राज्यसभा से इसे पास करा चुकी है। ऐसे में सरकार का मनोबल बढ़ा हुआ है।
राज्यसभा में फिलहाल विपक्ष के सांसद संख्या में तो ज्यादा हैं लेकिन बिखरे हुए हैं। ऐसा पिछले दिनों तीन तलाक बिल पर मत विभाजन के दौरान स्पष्ट हो गया है। उच्च सदन में तीन तलाक निरोधक कानून के समर्थक और विरोधी दोनों ही बराबर संख्या में थे। लेकिन मोर्चा गृहमंत्री अमित साह के हाथ में था जो कि संसद भवन में अपने कमरे औऱ राज्यसभा के भीतर लगातार व्यस्त थे।
सरकार को पहले से ये अंदेशा था कि जेडी(यू) और अन्नाद्रमुक उसके सहयोगी होने के बावजूद इस बिल के विरोध में रहेंगे। लेकिन इन दोनों ने वाक आउट करके सरकार की राह आसान कर दी।
बीजेडी ने लोकसभा में ही सरकार के इस बिल पर समर्थन कर दिया था, वो राज्यसभा में भी बरकरार रहा। तेलंगाना राष्ट्र समिति के 6 सांसदों, तेलगू देशम पार्टी के दो और बहुजन समाज पार्टी के चार सांसदों ने वोटिंग के दौरान बहिष्कार कर सरकार का काम आसान कर दिया।
कांग्रेस के 48 में से 3 सांसद अलग-अलग कारणों से अनुपस्थित थे, तो चौथे संजय सिंह ने इस्तीफा देकर कांग्रेस का दामन छोड़ दिया।
तृणमूल कांग्रेस टीएमसी के भी दो सांसद सदन में नहीं थे। राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के कुल 4 सांसद हैं, लेकिन शरद पवार और प्रफ्फुल पटेल सदन से अनुपस्थित थे।
समाजवादी पार्टी के 12 सांसदों में से अमर सिंह अलग हैं, नीरज शेखर बीजेपी में शामिल हो चुके हैं, बेनी प्रसाद वर्मा अस्वस्थ हैं। राष्ट्रीय जनता दल के राम जेठमलानी भी अस्वस्थता के कारण सदन में नहीं थे।
कमोबेश यही स्थिति राज्यसभा की फिलहाल भी है। तीन तलाक की ही तरह 35-ए पर भी विपक्ष बंटा हुआ है। लेकिन राज्यसभा की मौजूदा हालत में मोदी सरकार अपनी मर्जी के मुताबिक 35-ए को दफन करने के लिए कोई भी कदम उठा सकती है।
4. प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी लाल चौक पर फहरा सकते हैं तिरंगा
जम्मू कश्मीर में लगातार बढ़ रही सुरक्षा को देखकर यह भी कयास लगाया जा रहा है कि हर बार जनता को अपने तरीके से चौंकाने वाले प्रधानमंत्री इस बार स्वतंत्रता दिवस(15 अगस्त) को लाल चौक पर तिरंगा फहरा सकते हैं।
हालांकि इस बात की चर्चा सबसे कम हो रही है। लेकिन इतिहास गवाह है प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी हमेशा वही काम करते हैं जिसके होने की संभावना सबके कम होती है।
और आखिर में सबसे बड़ी और अहम बात कि 'हो सकता है यह सभी कार्य एक साथ भी हो जाएं। अगर ऐसा हुआ तो यह मोदी-2 सरकार का अभी तक का सबसे बड़ा सरप्राईज होगा'।