चीन में डॉ. द्वारकानाथ कोटनीस की जयंती आज भी धूमधाम से मनाई जाती है। जानिए कैसे इस भारतीय डॉक्टर ने चीन के हजारों सैनिकों की जान बचाई और चीन में भगवान की तरह पूजा जाता है।
नयी दिल्ली। चीन सरकार एक भारतीय डॉक्टर की आज भी जयंती मनाती है। भगवान की तरह सम्मान दिया जाता है। यदि कोई चीनी राष्ट्रपति, भारत के दौरे पर आता है तो उनके परिवार से मिलता है। पड़ोसी देश में चौराहों से लेकर स्कूल तक उनके नाम पर हैं। जगह-जगह मूर्तियां लगाई गई हैं। हम बात कर रहे हैं डॉ. द्वारकानाथ कोटनीस की, जिन्होंने चीन के हजारो सैनिकों की जान बचाई थी।
क्या है डॉ. द्वारकानाथ कोटनीस की कहानी?
डॉ. द्वारकानाथ कोटनीस का जन्म 1910 में महाराष्ट्र के शोलापुर में एक मध्यम वर्गीय परिवार में हुआ था। सेकेंड वर्ल्ड वॉर के साल भर पहले 1937 में जापान ने चीन पर हमला बोल दिया। चीन ने पंडित जवाहर लाल नेहरु को पत्र लिखकर मदद मांगी। तब देश आजाद नहीं हुआ था। ऐसे में वह चीन की विशेष मदद करने की स्थिति में नहीं थे। फिर भी उन्होंने चीन में डॉक्टरों की एक टीम भेजने के लिए सार्वजनिक अपील जारी कर दी। उसमें कहा गया कि यदि कोई इस टीम का हिस्सा बना चाहता है तो वह कांग्रेस को अपना नाम सौंप सकता है।
डॉ. कोटनीस कैसे पहुंचे चीन?
डॉ. कोटनिस को जब कांग्रेस के अपील की जानकारी हुई तो उन्होंने चीन जाने का निर्णय लिया। साल 1938 में 22000 रुपये चंदा जुटाकर 5 डॉक्टरों की टीम एक एम्बुलेंस के साथ चीन रवाना की गई। चीन में पहले से ही वर्ल्ड वॉर के चलते घायल सैनिकों के इलाज पर संकट था। ऐसे में भारतीय डॉक्टरों की टीम घायलों की सेवा में जी—जान से जुट गई।
टीम अलग-अलग प्रांतों में इलाज के लिए गई। डॉ. कोटनिस दिन रात घायलों की सेवा में लगे रहें। एक बार तो उन्होंने लगभग 72 घंटे तक लगातार सर्जरी का काम किया और हजारो चीनी सैनिकों की जान बचाई। हालांकि, समय के साथ भारतीय डॉक्टरों की टीम देश लौट आई। पर डॉ. कोटनीस चीन में ही रह गए।
चीन में ही ली अंतिम सांस, 32 साल की उम्र में निधन
डॉक्टर कोटनीस का चीन में ही महज 32 साल की उम्र में निधन हो गया। रिपोर्ट्स के मुताबिक, वह अपने काम में इतने बिजी रहते थे कि उन्हें समय बीतने का पता ही नहीं चलता था। 18-20 घंटे तक काम करने का उनकी सेहत पर असर पड़ा। उन्होंने चीन की ही एक नर्स क्यों किंगलान (Quo Qinglan) से शादी कर ली थी और एक बेटा भी हुआ था। पर 24 साल की उम्र में उसकी भी मौत हो गई। बहरहाल, मौत के बाद डॉ. कोटनीस चीनी-हिंदी भाईचारा के प्रतीक बनकर उभरे। उनके नाम पर पड़ोसी देश ने दो बार डाक टिकट जारी किया। चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने 2014 में अपने भारत दौरे पर डॉ. कोटनीस की बहन से भेंट की थी और झुककर उनका अभिवादन भी।
कोटनीस की मूर्ति के सामने सेवा की कसम
भले ही चीन और भारत के बीच रिश्ते मौजूद समय में तल्ख हों। पर चीन में अब भी डॉ. कोटनीस को भगवान की तरह पूजा जाता है। उनके जीवन पर फिल्में भी बन चुकी हैं। शिजियाझुआंग में उन्हीं के नाम पर मेडिकल स्कूल है और आज भी परम्परा के अनुसार, स्टूडेंटस पास होने के बाद कोटनीस की मूर्ति के सामने सेवा करने की 'कसम' लेते हैं। हेबई प्रांत में उनसे जुड़ी यादें सेफ रखी गई हैं।