विश्व का पहला ऐसा देश बनेगा भारत, जहां टोल के लिए होगा इस सिस्टम का उपयोग- जानिए आम आदमी पर क्या होगा असर?

By Surya Prakash TripathiFirst Published Jun 8, 2024, 10:25 AM IST
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New Satellite-Based TOLL Collection System: भारत में GNSS और GPS का उपयोग करते हुए केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी की अभिनव सैटेलाइट आधारित टोल कलेक्शन सिस्टम टोल कलेक्शन प्रॉसेज को बदलने के लिए तैयार है। यह नया सिस्टम वाहनों से तय की गई दूरी के आधार पर शुल्क लेता है, जिससे भारतीय राजमार्गों पर यात्रियों को टोल प्लाजा बूथों पर लाइन की कतार में नहीं खड़ा होना पड़ेगा।

New Satellite-Based TOLL Collection System: भारत में GNSS और GPS का उपयोग करते हुए केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी की अभिनव सैटेलाइट आधारित टोल कलेक्शन सिस्टम टोल कलेक्शन प्रॉसेज को बदलने के लिए तैयार है। यह नया सिस्टम वाहनों से तय की गई दूरी के आधार पर शुल्क लेता है, जिससे भारतीय राजमार्गों पर यात्रियों को टोल प्लाजा बूथों पर लाइन की कतार में नहीं खड़ा होना पड़ेगा।

ETC सिस्टम लागू करने पर ग्लोबल कंपनियों को किया गया इन्वाइट
केंद्रीय परिवहन मंत्री नितिन गडकरी ने कहा, कि "यह दुनिया में पहली बार होगा जब ऐसी तकनीक पेश की जा रही है।" राष्ट्रीय राजमार्गों पर निर्बाध और बाधा-मुक्त टोलिंग अनुभव प्रदान करने के लिए, भारतीय राजमार्ग प्रबंधन कंपनी लिमिटेड (IHMCL) जिसे भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण (NHAI) द्वारा प्रवर्तित किया जाता है, ने भारत में GNSS-बेस्ड इलेक्ट्रॉनिक टोल कलेक्शन (ETC) सिस्टम विकसित करने और उसे लागू करने के लिए इनोवेशन और योग्य कंपनियों से  ग्लोबल इक्सप्रेशन ऑफ इंटरेस्ट (EOI) इन्वाइट किया है।

शुरूआत में किस मॉडल का उपयोग करने की है योजना?
NHAI की योजना में मौजूदा FASTag  इकोसिस्टम के भीतर GNSS-आधारित ETC प्रणाली को इंटीग्रेटेड करना शामिल है। शुरुआत में एक हाइब्रिड मॉडल का उपयोग किया जाएगा, जहां RFID-आधारित ETC और GNSS-आधारित ETC दोनों एक साथ काम करेंगे। टोल प्लाजा पर डेटीकेटेड GNSS लेन उपलब्ध होंगी, जिससे GNSS-आधारित ETC से लैस वाहन आसानी से गुजर सकेंगे। जैसे-जैसे GNSS-आधारित ETC सिस्टम अधिक व्यापक और स्वीकार्य होती जाएगी, टोल प्लाजा पर सभी लेन अंततः GNSS लेन में परिवर्तित हो जाएंगी, जिससे भारतीय राजमार्गों पर टोल कलेक्शन की इफेसियंसी और सुविधा और बढ़ जाएगी।

GPS-आधारित टोल संग्रह क्या है?
परंपरागत रूप से टोल टैक्स का पेमेंट टोल प्लाजा पर किया जाता था, जिसके लिए लोगों की आवश्यकता होती थी और FASTag के साथ भी ट्रैफ़िक जाम की समस्या होती है। GPS-आधारित टोल कलेक्शन सिस्टम हाईवेस पर तय की गई दूरी को मापने और उसके अनुसार टोल वसूलने के लिए कारों अन्य वाहनों में उपग्रहों और ट्रैकिंग सिस्टम का उपयोग करती है। इससे टोल प्लाजा बंद हो जाएंगे और यात्रियों का समय बचेगा।

FASTag से कैसे होगा ये सिस्टम अलग?
FASTag के विपरीत सेटेलाइट बेस्ड GPS टोल कलेक्शन सिस्टम ग्लोबल नेविगेशन सैटेलाइट सिस्टम (GNSS) पर काम करता है, जो सटीक ट्रैकिंग करने में सक्षम होता है0। यह सिस्टम सटीक दूरी-आधारित टोल कैलकुलेशन के लिए ग्लोबल पोजिशनिंग सिस्टम (GPS) और भारत के GPS एडेड GEO ऑगमेंटेड नेविगेशन (GAGAN) जैसी टेक्नोलॉजी का उपयोग करता है

ग्लोबल नेविगेशन सैटेलाइट सिस्टम कैसे काम करता है?
ऑन-बोर्ड यूनिट (OBU) या ट्रैकिंग डिवाइस वाले वाहनों को राजमार्गों पर तय की गई दूरी के आधार पर चार्ज किया जाएगा। डिजिटल इमेज प्रोसेसिंग राष्ट्रीय राजमार्गों के साथ निर्देश को रिकॉर्ड करती है, जिससे सॉफ़्टवेयर टोल रेट को निर्धारित कर सकता है। CCTV कैमरों वाली गैंट्री कंप्लायंस की निगरानी करती है, जिससे सेमलेश संचालन सुनिश्चित होता है। टोल संग्रह के लिए ट्रैकिंग डिवाइस के रूप में काम करने वाली कारों में OBU लगा होगा। OBU राजमार्गों और टोल सड़कों पर कार के निर्देशांक को ट्रैक करेगा, जिसे दूरी का कैलकुलेशन करने के लिए सैटेलाइट के साथ साझा किया जाएगा।

टोल राजस्व पर प्रभाव
वर्तमान में भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण (NHAI) लगभग 40,000 करोड़ रुपये टोल राजस्व एकत्र करता है। यह आंकड़ा अगले 2-3 वर्षों में बढ़कर 1.40 ट्रिलियन रुपये होने का अनुमान है क्योंकि भारत इस हाईटेक टोल कलेक्शन सिस्टम को अपना रहा है।


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