जानें डॉ. जनक पालटा मैकगिलिगन की इंस्पिरेशनल स्टोरी, जिन्होंने 'जीरो-वेस्ट' लाइफ अपनाकर पर्यावरण संरक्षण और महिला सशक्तिकरण में अपनी अलग पहचान बनाई।
नई दिल्ली। भारत के सबसे साफ शहर, इंदौर के पास एक छोटी सी जगह सनावदिया में रहने वाली डॉ. जनक पालटा मैकगिलिगन ने अपनी पूरी लाइफ पर्यावरण संरक्षण के लिए समर्पित कर दिया है। उनकी इंस्पिरेशनल स्टोरी सस्टेनेबल लाइफ, ग्रामीण विकास और वुमेन इम्पावरमेंट का बेहतरीन उदाहरण है। 'क्वीन ऑफ सस्टेनेबिलिटी' के नाम से मशहूर जनक पालटा (Dr. Janak Palta McGilligan), न केवल जीरो-वेस्ट लाइफ जी रही हैं, बल्कि हजारों लोगों को भी इनवायरमेंट के प्रति जागरूक किया है।
जीरो-वेस्ट जीवन की मिसाल
जनक पालटा का घर एक जीरो-वेस्ट मॉडल है। इसका मतलब है कि उनके घर से कोई कचरा बाहर नहीं जाता। उनके प्रयासों ने एनवायरमेंट कंजर्वेशन और सस्टेनेबिलिटी को एक नई परिभाषा दी है।
घर में बिजली का बिल शून्य
जनक के घर में बिजली के लिए एक विंडमिल का यूज किया जाता है। यह न केवल उनके घर को रोशन करता है, बल्कि आसपास के 50 अन्य घरों को भी एनर्जी देता है।
आत्मनिर्भरता का शानदार उदाहरण
जनक पालटा ने अपने घर के गार्डन में सब्जियां, दालें, चावल और मसाले उगाए हैं। वह केवल चाय, नमक और गुड़ बाहर से खरीदती हैं। उनके गार्डन में 160 पेड़ और 13 फसलें हैं। खाना पकाने के लिए वह सोलर कुकर और गोबर-अखबार से बनी ब्रिक्स का उपयोग करती हैं।
एक बूंद भी पानी नहीं होता बर्बाद
उनके घर में रसोई और वॉशबेसिन से निकलने वाला पानी सीधे गार्डन में पौधों तक जाता है। वह एक बूंद पानी भी बर्बाद नहीं करतीं।
प्लास्टिक और डिस्पोजल का यूज नहीं
वह प्लास्टिक या डिस्पोजल सामग्री का यूज नहीं करती हैं। अपने रोजमर्रा के जीवन में यूज होने वाले सभी प्रोडक्ट जैसे फेसपैक, शैंपू, साबुन और टूथपेस्ट खुद बनाती हैं।
पर्यावरण संरक्षण की कहां से मिली प्रेरणा?
1964 में, जब जनक सिर्फ 15 साल की थीं, हार्ट की परेशानी से गुजरीं। 17 साल की उम्र में उन्हें ओपन हार्ट सर्जरी करानी पड़ी। डॉक्टरों ने कहा था कि वह केवल 6 महीने जीवित रह सकती हैं। लेकिन कनाडा से बुलाए गए डॉक्टर ने उनकी सर्जरी कर उन्हें नया जीवन दिया। इस घटना ने उनकी जिंदगी बदल दी। जनक ने यह तय कर लिया कि उनका जीवन समाज और प्रकृति की सेवा के लिए समर्पित होगा।
जनक पालटा एजूकेशन एंड करियर
पंजाबी परिवार में जन्मीं जनक की परवरिश चंडीगढ़ में हुई। उन्होंने अंग्रेजी साहित्य और पॉलिटिकल साइंस में एमए किया। साथ ही, सितार में संगीत विशारद और पॉलिटिकल साइंस में एमफिल और पीएचडी पूरी की। करियर की शुरुआत में उन्होंने भविष्य निधि कार्यालय, हाईकोर्ट, और ग्रामीण औद्योगिक विकास केंद्र में काम किया। पर जल्द ही उन्होंने अपने करियर को छोड़कर सोशल वर्क को अपने जीने का मकसद बना लिया।
6000 महिलाओं को दी ट्रेनिंग
जनक पालटा ने अपने आयरिश पति जिमी मैकगिलिगन के साथ 1985 में बारली डेवलपमेंट इंस्टीट्यूट फॉर रूरल वीमेन की स्थापना की। इस संस्थान ने आदिवासी और ग्रामीण महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाया। संस्थान के माध्यम से उन्होंने 25 साल तक महिलाओं को सोलर कुकिंग, सस्टेनेबल खेती की ट्रेनिंग दी। जनक ने 1,000 से अधिक गांवों की 6,000 महिलाओं को सोलर कुकिंग और पर्यावरण संरक्षण के लिए प्रशिक्षित किया।
पद्मश्री से सम्मानित
2015 में, भारत सरकार ने जनक पालटा को उनके सोशल वर्क और पर्यावरण संरक्षण के लिए पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित किया। 2011 में अपने पति की मृत्यु के बाद जनक ने सनावदिया में बसने का फैसला किया। वहां उन्होंने अपने घर को पूरी तरह सस्टेनेबल हाउस में बदल दिया। उन्हें 'क्वीन ऑफ सस्टेनेबिलिटी' भी कहा जाता है। आज जनक पालटा, पर्यावरण संरक्षण और सस्टेनेबिलिटी का प्रतीक हैं। उन्हें प्यार से जनक दीदी भी कहा जाता है। उनका जीवन उन सभी के लिए प्रेरणा है जो पर्यावरण संरक्षण के प्रति गंभीर हैं।
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