वैज्ञानिकों ने नई कैंसर थेरेपी विकसित की है जो मौजूदा उपचारों के प्रति कैंसर कोशिकाओं की प्रतिरोधक क्षमता पर काबू पाने में मदद करेगी। यह थेरेपी टीडीपी1 एंजाइम पर आधारित है, जो कैंसर उपचार में प्रभावी साबित हो सकती है।
नई दिल्ली। कैंसर उपचार में लगातार नए रिसर्च की जरूरत होती है, क्योंकि कैंसर सेल्स अक्सर ट्रेडिशनल मेडिसिन के प्रति प्रतिरोधक क्षमता विकसित कर लेती हैं। ऐसे में वैज्ञानिकों ने एक नया थेरेपी डेवलप की है, जो कैंसर के उपचार में मील का पत्थर साबित हो सकता है। यह शोध टीडीपी1 नामक डीएनए एंजाइम पर आधारित है, जो कैंसर के इलाज में डेवलप होने वाले प्रतिरोध को कम कर सकती हैं।
इलाज के प्रति प्रतिरोधक क्षमता विकसित कर लेते हैं कैंसर सेल्स
कैंसर कोशिकाओं की एक प्रमुख समस्या यह है कि वे समय के साथ उपचार के प्रति प्रतिरोधक क्षमता विकसित कर लेती हैं। इसका मतलब यह है कि शुरुआती चरण में जो दवाएं असरदार होती हैं, वे बाद में काम करना बंद कर देती हैं। कैम्पटोथेसिन, टोपोटेकन, और इरिनोटेकेन जैसी एंटीकैंसर दवाएं आमतौर पर कैंसर कोशिकाओं के डीएनए पर हमला करती हैं। लेकिन लगातार यूज से कैंसर कोशिकाएं इन दवाओं के प्रति प्रतिरोधक बन जाती हैं, जिससे इनका प्रभाव कम हो जाता है।
टीडीपी1 क्या है?
टीडीपी1 (टायरोसिल-डीएनए फॉस्फोडिएस्टरेज़ 1) एक डीएनए रिपेयरिंग एंजाइम है। यह उन डीएनए क्षतियों को ठीक करता है, जो कैंसर के इलाज के दौरान उत्पन्न होती हैं। रिसर्च में पाया गया कि कैंसर कोशिकाएं टीडीपी1 को एक्टिव करके खुद को बचा लेती हैं, जिससे मौजूदा एंटीकैंसर दवाओं का प्रभाव कम हो जाता है। इसको ध्यान में रखते हुए कैंसर के इलाज को और प्रभावी बनाया जा सकता है।
टॉप 1 अवरोधक दवाएं
टॉप 1 एक प्रमुख एंजाइम है जो डीएनए प्रतिकृति के लिए आवश्यक होता है। टॉप 1 को लक्षित करने वाली दवाएं, जैसे कैम्पटोथेसिन, कैंसर कोशिकाओं के डीएनए को क्षतिग्रस्त करके उन्हें नष्ट करने का काम करती हैं। हालांकि, कैंसर कोशिकाएँ इस प्रकार की दवाओं के प्रति भी प्रतिरोधक क्षमता विकसित कर सकती हैं। वे डीएनए मरम्मत की प्रक्रिया को तेज करके खुद को इन दवाओं से बचा लेती हैं। टीडीपी1 एक समर्पित एंजाइम है, जो डीएनए में आई टूट-फूट को ठीक करता है। खासकर जब टॉप 1 अवरोधक दवाओं के कारण डीएनए क्षतिग्रस्त हो जाता है, तो टीडीपी1 उसे ठीक करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
सीडीके1 द्वारा टीडीपी1 का फॉस्फोराइलेशन
शोध से पता चला है कि माइटोटिक चरण के दौरान सीडीके1 नामक एक प्रमुख प्रोटीन, टीडीपी1 को फॉस्फोराइलेट करता है। यह प्रक्रिया टीडीपी1 की डीएनए मरम्मत क्षमता को बढ़ाती है, जिससे कैंसर कोशिकाएँ टॉप 1 अवरोधक दवाओं से बच निकलती हैं। साइंटिस्ट्स के मुताबिक, कैंसर कोशिकाएं अक्सर एकल-एजेंट उपचार के लिए प्रतिरोध विकसित करती हैं। सीडीके 1 और टॉप 1 दोनों अवरोधकों का यूज करके, हम कैंसर सेल्स को खत्म कर सकते हैं। कोलकाता के इंडियन एसोसिएशन फॉर द कल्टीवेशन ऑफ साइंस (आईएसीएस) के वैज्ञानिकों ने यह खोज की है।
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