वो भूखे पेट, फटे पुराने कपड़ों में अपने सपनों का पीछा करता रहा। मैदान ही उसका ओढ़ना-बिछौना सब था। 11 साल की उम्र में छोटे से शहर से मुंबई नगरी पहुंचे बालक ने 17 का होते-होते, मुसीबतों को ऐसी पटखनी दी कि आज वो तमाम लोगों के लिए खुद प्रेरणा बन गया है। पढ़िए उसकी कहानी...
भारत-श्रीलंका के बीच अंडर नाइंटीन मुकाबलों की श्रृंखला का आखिरी मैच। भारत ने शानदार तरीके से जीत हासिल करते हुए सीरीज अपने नाम कर ली। 17 साल के एक लड़के ने कमाल कर दिया, सेंचुरी जड़ी और भारत 9 विकेट से मुकाबला जीत गया। मुकाबले के हीरों का नाम है यशस्वी जायसवाल।
यशस्वी जायसवाल जैसा कि नाम है, बड़ा ही यशस्वी है। उसके यश का पताका लहरा रहा है पर शायद ही किसी को पता हो कि यश के शिखर तक पहुंचने के दौरान इस समय से पहले यशस्वी ने क्या-क्या देखा है। यशस्वी के पास पहनने के कपड़े नही होते थे, क्रिकेट के इस महंगे खेल का साजो-सामान कैसे जुटाता? यशस्वी के यशस्वी बनने की कहानी, उम्मीद और हौसले की जीत है।
नन्ही सी उम्र से ही वो मैदान पर उतर गया। कोई उसे क्रिकेट का किट दे देता तो कभी बढ़िया रन बनाने पर कोई उसे बैट, जूते या कुछ और चीजें दे देता।
वो कहावत सुनी है ना आपने जहां चाह है वहां राह है, ठीक वैसे ही 17 साल के इस क्रिकेटर के लिए जीवन संघर्षों पर विजय पाना है।
आंखों में सपने लिए यूपी के छोटे से शहर भदोही से यशस्वी सपनों की नगरी मुंबई आया, लक्ष्य मात्र एक था क्रिकेट खेलना। कोई गॉडफादर नहीं था, रहने की कोई जगह नहीं थी, इस महंगे खेल के लिए जरूरी पैसे नहीं थे लेकिन उसने हिम्मत नहीं हारी।
एक अंजाने से शहर के छोटे से दुकानदार के बेटे ने अंजान शहर में कदम रखा, जहां रहने के लिए ठिकाना था एक डेयरी दुकान। वो दिन में प्रैक्टिस करता और रात में आकर उसी अस्त-व्यस्त दुकान में आराम करता। समय की मार देखिए उसे वहां से भी भगा दिया गया। इसके बाद उसे पनाह मिली मुस्लिम यूनाइटेड क्लब के एक छोटे से टेंट में।
आंखों में बंद उम्मीदों ने नियती के सामने घुटने नहीं टेके। संघर्ष और क्रिकेट का अभ्यास दोनों साथ चलता रहा। यशस्वी ने रोटी पाने के लिए रामलीला मैदान में रात को गोलगप्पे भी बेचे। उसका सपना मरा नहीं, बस उसे देश के लिए खेलना था।
माय नेशन ने इस बहादुर बच्चे से फोन पर तब बात की जब उसका सलेक्शन अंडर नाइंटीन क्रिकेट टीम के लिए हुआ, उससे जानना चाहा कि उसका यहां तक का सफर कैसा रहा। बातचीत में पहले तो वो हिचकिचाया लेकिन धीरे-धीरे सामान्य हुआ और बताने लगा कि वो कैसे लोहे की तरह तपा। उसने बताया उन दिक्क्तों को जो टेंट में रहने के दौरान उसके सामने आईं। साफ-सफाई की बात तो छोड़िए, टेंट में उसे जमीन पर सोना पड़ता था। हालात ऐसे भी होते थे कि जमीन पर सोने के दौरान उसे कीड़े काट लेते थे। यशस्वी बताने लगा कि सोचिए कपड़े धोने और खाना बनाने के दौरान क्या मुश्किलें आती होंगी। बेरहम से बनी जिंदगी के बीच उसका लक्ष्य उसमें उत्साह भरता रहा।
यशस्वी माय नेशन को बताता है कि वो सुबह प्रैक्टिस करता था, दोपहर को मैच खेलता था, शाम को फिर प्रैक्टिस करने के लिए मैदान पर ही होता था। चूंकी वो मैदान के पास ही रहता था तो मैदान ही उसके घर के जैसा था, इससे उसको अपनी प्रतिभा को निखारने में सहूलियत मिली।
“जब भी मैं बढ़िया खेलता था, कोई ना कोई कुछ ना कुछ लेकर आ जाता था। कोई किट दे जाता, कोई बैट दे जाता तो कोई जूते तो कोई कुछ और सामान दे जाता। हर कोई जानता था कि मैं रहता कहां हूं, ये मेरे लिए कोई मुद्दा नहीं था। पर हां, वो वक्त भी रहे जब मेरे पास पहनने के लिए कपड़े तक नहीं थे, तो मैंने अपने साथियों से कपड़ों के लिए मदद मांगी” माय नेशन से बातचीत में यशस्वी ये भी कहता है।
वास्तव में यशस्वी के लिए क्रिकेट ही जीवन रहा है। उसकी आवाज में गर्व आ जाता है जब वो कहता है कि मेरे पिता क्रिकेट खेलते थे और भाई भी खेल रहा है। ये उसके बचपन का सपना था कि वो अपने देश के लिए खेले और इसी सपने ने जीवन के झंझावातों के बीच उसके सफर को जारी रहने दिया।
ये युवा क्रिकेटर मुंबई क्रिकेट संघ का आभारी है जिसने उसे प्लेटफॉर्म मुहैया कराया और पहचान दिलाई, जिसकी इसे दरकार थी।
यशस्वी ये भी जाहिर करता है कि वो कोच सतीश सामंत का कर्जदार है। ये वही शख्स हैं जिन्होंने यशस्वी के खाने-पीने से लेकर और जरूरतों का ध्यान रखा लेकिन एक लम्हा वो कभी नहीं भूलता, वो था ज्वाला सिंह से उसका मिलना। ज्वाला सिंह ने ही यशस्वी की युवा प्रतिभा को पहचाना वो उसको हर वो मदद की जिससे की उसकी प्रतिभा सही मुकाम मिल सके।
अंडर नाइंटीन में चुने जाने से लेकर टीम को सीरीज जीतवाने तक वाले इस खिलाड़ी के रोल मॉडल हैं सचिन तेंदुलकर और विराट कोहली, वो उनकी जमकर तारीफ करता है।
आज के व्यवसायिक जमाने में जहां पैसा ही सबकुछ हो गया है, वहां यशस्वी के लिए पैसे से ज्यादा क्रिकेट मायने रखता है क्योंकि वो इससे प्यार करता है। यह पूछे जाने पर कि क्या वो आईपीएल खेलेगा, यशस्वी कहता है कि उसका लक्ष्य देश के लिए खेलना बाकी चीजें अपने आप हो जाएंगी।
यशस्वी का समर्पण और उसकी विनम्रता बताती है कि वो आने वाले कल में सुपरस्टार होने जा रहा है। वो कहते हैं ना हीरा दुरूह खदानों में ही मिलता है। यशस्वी कुछ ऐसा ही दिखाई पड़ता है।
चैम्पियन तुम्हें माय नेशन की शुभकामनाएं।