प्रवर्तन निदेशालय (ED) मनी लॉन्ड्रिंग केस में आरोपी को अरेस्ट कर सकती है या नहीं? सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को इस संबंध में अहम टिप्पणी की है। देश की शीर्ष अदालत ने साफ किया है कि मनी लॉन्ड्रिंग के तहत किन परिस्थितियों में ईडी आरोपी को अरेस्ट नहीं कर सकती।
नयी दिल्ली। प्रवर्तन निदेशालय (ED) मनी लॉन्ड्रिंग केस में आरोपी को अरेस्ट कर सकती है या नहीं? सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को इस संबंध में अहम टिप्पणी की है। देश की शीर्ष अदालत ने कहा है कि PMLA के प्रावधानों के तहत (मनी लॉन्ड्रिंग के तहत) ईडी आरोपी को अरेस्ट नहीं कर सकती। यदि स्पेशल कोर्ट ने शिकायत का संज्ञान ले लिया है। मतलब कि यदि मनी लॉन्ड्रिंग के मामले में जांच के दौरान आरोपी अरेस्ट नहीं किया गया और PMLA कोर्ट चार्जशीट पर संज्ञान लेकर आरोपी को समन जारी करता है। ऐसी स्थिति में आरोपी कोर्ट में पेश होता है तो उसे पीएमएलए एक्ट के प्रावधानों के तहत बेल के लिए दोहरी शर्तों को भी पूरा करने की आवश्यकता नहीं होगी।
सुनवाई के बाद हिरासत की अनुमति के लिए अर्जी
न्यायमूर्ति अभय एस. ओका की अध्यक्षता वाली खंडपीठ मामले की सुनवाई कर रही थी। कोर्ट ने कहा कि जांच के लिए हिरासत की मांग के लिए भी ईडी को स्पेशल कोर्ट के समक्ष अर्जी देनी होगी। कोर्ट आरोपी का पक्ष सुनेगी। उसके बाद संक्षेप में कारण बताते हुए अर्जी पर अनिवार्य रूप से फैसला देना होगा। अदालत मामले की सुनवाई के बाद हिरासत की अनुमति तभी देगी। जब वह इस बात से संतुष्ट हो कि मामले में आरोपी को हिरासत में लेकर पूछताछ करना जरूरी है। इसके अलावा जिस शख्स को मनी लॉन्ड्रिंग के केस में आरोपी नहीं बनाया गया है। उस व्यक्ति को अरेस्ट करने के लिए पीएमएलए एक्ट 2022 की धारा 19 की शर्तों को पूरा करना होगा।
बेल के लिए दोहरी शर्त की अनिवार्यता नहीं
कोर्ट ने साफ किया है कि पीएमएलए एक्ट के तहत जांच के दौरान अरेस्ट नहीं किया गया और वह स्पेशल कोर्ट की तरफ से जारी समन पर अदालत में पेश होता है तो उसकी बेल के लिए दोहरी शर्त की अनिवार्यता नहीं होगी।
पीएमएलए एक्ट के तहत बेल के लिए शर्तें क्या?
आपको बता दें कि पीएमएलए एक्ट की धारा 45 के तहत बेल पाने के लिए दो शर्तों का प्रावधान है। पहला कि आरोपी दोषी नहीं है, कोर्ट इस बात से आश्वस्त हो। दूसरा यह कि आरोपी बेल मिलने के बाद कोई अपराध कारित नहीं करेगा, इसको लेकर कोर्ट आश्वस्त हो।
क्या है मनी लॉन्ड्रिंग केस में बेल के प्रावधानों में पेंच?
दरअसल, नवम्बर 2017 में सुप्रीम कोर्ट की न्यायमूर्ति रोहिंटन नरीमन और एस.के. कौल की खंडपीठ ने पीएमएलए एक्ट की धारा 45(1) को रद्द कर दिया था। यह बेल के लिए दो अतिरिक्त शर्त जोड़ती थी। फिर जुलाई 2022 में विजय मदनलाल चौधरी केस में न्यायमूर्ति ए.एम. खानविलकर, दिनेश माहेश्वरी और सी.टी. रविकुमार की तीन जजों की खंडपीठ ने उस फैसले को पलट दिया था और पीएमएलए एक्ट, 2002 में वर्ष 2019 में किए गए संशोधनों को सही करार दिया था। तभी से पीएमएलए एक्ट के तहत बेल पाना मुश्किल हो गया था। मनी लॉन्ड्रिंग केस में खुद को निर्दोष साबित करने की जिम्मेदारी आरोपी की हो गई थी।
इन दो वजहों से ईडी की शक्तियों की समीक्षा
मनी लॉन्ड्रिंग के मामलों में एक तो आरोपी को अरेस्ट करते समय ईसीआईआर यानी एफआईआर के समान कॉपी न दिया जाना और आरोप साबित होने तक निरपराध मानने का सिद्धांत। इन दो प्रमुख कारणों से तत्कालीन चीफ जस्टिस एन.वी. रमना की अध्यक्षता वाली खंडपीठ पीएमएलए के प्रावधानों की समीक्षा के लिए सहमत हुई थी। फिर पिछले वर्ष नवम्बर महीने में न्यायमूर्ति एस.के. कौल की अध्यक्षता वाली पीठ ने उन याचिकाओं को चीफ जस्टिस के सामने रखने का आदेश दिया था। जिसमें ईडी की शक्तियों को चुनौती दी गई थी।